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Monday, July 8, 2019

गजल

ले के सहारा झूठ का सुल्तान बन गए
ज्यों ताज सिर पे आ गया हैवान बन गए।

आवाम के जज़्बात की तो कद्र ही नहीं
लाठी उठाई हाथ में भगवान बन गए।

सब को बड़ी उम्मीद थी फस्लेबहार की
सपनों के सब्जेबाग़ अब वीरान बन गए।

घर में हमारे आग के शोले भड़क उठे
उनको किया जो इत्तिला नादान बन गए।

किस्मत में तेरी गम लिखा है भोग ले "अरुण"
गदहे भी अब के दौर में विद्वान बन गए।

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग, छत्तीसगढ़

3 comments:

  1. बहुत खूब...
    ले के सहारा झूठ का सुल्तान बन गए
    जब ताज सिर पे आ गया हैवान बन गए...

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (10-07-2019) को "नदी-गधेरे-गाड़" (चर्चा अंक- 3392) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. किस्मत में तेरी गम लिखा है भोग ले "अरुण"
    गदहे भी अब के दौर में विद्वान बन गए।
    बहुत ही सुन्दर...लाजवाब सृजन
    वाह!!!

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