गजल : खुशी बाँटने की कला चाहता हूँ
न पूछें मुझे आप क्या चाहता हूँ
खुशी बाँटने की कला चाहता हूँ |
गज़ल यूँ लिखूँ लोग गम भूल जायें
ये समझो सभी का भला चाहता हूँ |
बिना कुछ पिये झूमता ही रहे दिल
पुन: गीत डम-डम डिगा चाहता हूँ |
न कोला न थम्सप न फैंटा न माज़ा
मृदा का बना मैं घड़ा चाहता हूँ |
न पिज्जा न बर्गर न मैगी न नूडल
स्वदेशी कलेवा सदा चाहता हूँ |
पुरस्कार के सच लगे दण्ड जैसे
इन्हें अब नहीं भोगना चाहता हूँ |
उठा आज डॉलर गिरा क्यों रुपैया
यही प्रश्न मैं पूछना चाहता हूँ |
कहाँ खो गये प्रेम के ढाई आखर
मुझे साथ दो, ढूँढना चाहता हूँ |
हमें आ गया याद गाना पुराना
“तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ” |
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
न पूछें मुझे आप क्या चाहता हूँ
खुशी बाँटने की कला चाहता हूँ |
गज़ल यूँ लिखूँ लोग गम भूल जायें
ये समझो सभी का भला चाहता हूँ |
बिना कुछ पिये झूमता ही रहे दिल
पुन: गीत डम-डम डिगा चाहता हूँ |
न कोला न थम्सप न फैंटा न माज़ा
मृदा का बना मैं घड़ा चाहता हूँ |
न पिज्जा न बर्गर न मैगी न नूडल
स्वदेशी कलेवा सदा चाहता हूँ |
पुरस्कार के सच लगे दण्ड जैसे
इन्हें अब नहीं भोगना चाहता हूँ |
उठा आज डॉलर गिरा क्यों रुपैया
यही प्रश्न मैं पूछना चाहता हूँ |
कहाँ खो गये प्रेम के ढाई आखर
मुझे साथ दो, ढूँढना चाहता हूँ |
हमें आ गया याद गाना पुराना
“तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ” |
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
पुरस्कार के सच लगे दण्ड जैसे
ReplyDeleteइन्हें अब नहीं भोगना चाहता हूँ |. बहुत कुछ समेट लिया इस गज़ल में
वाह शानदार ग़ज़ल
ReplyDeleteस्वदेशी कलेवा सदा चाहता हूँ ...
ReplyDeleteवाह ... जानदार ग़ज़ल है अरुण जी ... बहुत बधाई ...