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Monday, July 3, 2017

गजल : खुशी बाँटने की कला चाहता हूँ

गजल : खुशी  बाँटने की  कला  चाहता हूँ

न पूछें मुझे आप  क्या  चाहता हूँ
खुशी  बाँटने की  कला  चाहता हूँ |

गज़ल यूँ लिखूँ लोग गम भूल जायें
ये समझो सभी का भला चाहता हूँ |

बिना कुछ पिये झूमता ही रहे दिल  
पुन: गीत डम-डम डिगा चाहता हूँ |

न कोला न थम्सप न फैंटा न माज़ा
मृदा का बना  मैं  घड़ा  चाहता हूँ |

न पिज्जा न बर्गर न मैगी न नूडल
स्वदेशी  कलेवा  सदा  चाहता हूँ |

पुरस्कार के सच लगे दण्ड जैसे
इन्हें अब नहीं भोगना चाहता हूँ |

उठा आज डॉलर गिरा क्यों रुपैया
यही  प्रश्न  मैं  पूछना चाहता हूँ |

कहाँ खो गये प्रेम के ढाई आखर
मुझे साथ दो, ढूँढना चाहता हूँ |

हमें आ गया याद गाना पुराना
तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ

अरुण कुमार निगम 
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

3 comments:

  1. पुरस्कार के सच लगे दण्ड जैसे
    इन्हें अब नहीं भोगना चाहता हूँ |. बहुत कुछ समेट लिया इस गज़ल में

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  2. वाह शानदार ग़ज़ल

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  3. स्वदेशी कलेवा सदा चाहता हूँ ...
    वाह ... जानदार ग़ज़ल है अरुण जी ... बहुत बधाई ...

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