Followers

Saturday, December 7, 2013

छंद - आल्हा



16, 15 मात्राओं पर यति देकर दीर्घ,लघु से अंत, अतिशयोक्ति अनिवार्य

देह  मूँगियाँ  रेंग  गई  हैं , देख  चींटियों  का  यह काम
प्रेषित उनने किया नहीं है, किन्तु मिला हमको पैगाम ।
अनुशासित  हैं  सभी  चींटियाँ, नहीं परस्पर है टकराव
मन्त्र  एकता का  बतलातीं, और  सिखाती  हैं  सद्भाव ।

बचपन में थी पढ़ी कहानी , आखेटक ने डाला जाल
फँसे कबूतर परेशान थे , दिखा सामने सबको काल ।
वृद्ध कबूतर  के कहने पर , सबने भर ली संग उड़ान
आखेटक के हाथ न आये , और बचा ली अपनी जान ।

क्या बिसात सोचो तिनकों की, हर तिनका नन्हा कमजोर
पर  हाथी  भी  तोड़  न  पाये , जब  बन  जाते  मिलकर  डोर ।
नाजुक  नन्हीं - नन्हीं   बूँदें ,  कर  बैठीं  मिल  प्रेम - प्रगाढ़
सावन  में   बरसी  भी   ना  थीं  ,  सरिताओं   में   आई  बाढ़ ।

सागर  पर  है  पुल  सिरजाना , मन  में  आया  नहीं  विचार
रघुराई   की   वानर  -  सेना  ,   झट  कर   बैठी  पुल  तैयार ।
नहीं असम्भव कुछ भी जग में,मिलजुल कर मन में लो ठान
किया   नहीं  संकल्प  कि  समझो  ,  पर्वत होवे धूल समान ।

जाति - धर्म   का भेद  भुलाके , एक बनें  हम मिलकर आज
शक्ति-स्वरूपा भारत माँ का, क्यों ना हो फिर जग पर राज ।
नन्हें  -  नन्हें  जीव  सिखाते  ,  आओ  मिलकर करें विचार
मन्त्र    एकता  का   अपनायें  ,  करें   देश  का   हम  उद्धार ।

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, छत्तीसगढ़


8 comments:

  1. bahut khoob arun ji

    kabhi humare blog par bhi padhare
    raj
    http://rajkumarchuhan.blogspot.in/

    ReplyDelete
  2. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार आदरणीय-

    ReplyDelete
  3. वाह ... लाजवाब ... आल्हा छंद ... नई विधा की जानकारी ... मज़ा आया अरुण जी ...

    ReplyDelete
  4. वाह ... लाजवाब ..बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!

    ReplyDelete
  5. बहुत ही लाजवाब रचना...
    :-)

    ReplyDelete
  6. बहुत ही सुन्दर मजा आ गया ....शिक्षा प्रद आल्हा छंद

    ReplyDelete