ग्यारह
- बारह बाद में , है तेरह का साल
अंकों
ने कैसा किया , देखो आज कमाल
देखो
आज कमाल , दिवस यह अच्छा बीते
आज
किसी के स्वप्न , नहीं रह जायें रीते
दिल
कहता है अरूण, आज तू कुंडलिया कह
है
तेरह का साल , मास- तिथि बारह-ग्यारह ||
अरूण
कुमार निगम
आदित्य
नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (12-12-13) को होशपूर्वक होने का प्रयास (चर्चा मंच : अंक-1459) में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बढ़िया है भाई जी-
ReplyDeleteक्या बात!
ReplyDeleteअच्छा संयोग है...
ReplyDeleteकमाल की सुन्दर अभिव्यक्ति...! बधाई
ReplyDeleteRECENT POST -: मजबूरी गाती है.
११ १२ १३ ...की शानदार शुभ कुण्डलिया बहुत- बहुत बधाई अरुण निगम जी.
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteग्यारह-बारह-तेरह..... दुबारा कभी नहीं आएगा।
ReplyDeleteबहुत बढिया !