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Monday, November 25, 2013

शायद प्रेम वही कहलाये.....

पूर्ण शून्य है,शून्य ब्रम्ह है
एक अंश सबको हर्षाये
आधा और अधूरा होवे,
शायद प्रेम वही कहलाये

मिट जाये तन का आकर्षण
मन चाहे बस त्याग-समर्पण
बंद लोचनों से दर्शन हो
उर में तीनों लोक समाये

उधर पुष्प चुनती प्रिय किंचित
ह्रदय-श्वास इस ओर है सुरभित
अनजानी लिपियों को बाँचे
शब्दहीन गीतों को गाये

पूर्ण प्रेम कब किसने साधा
राधा-कृष्ण प्रेम भी आधा
इसीलिये ढाई आखर के
ढाई ही पर्याय बनाये .....

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, छत्तीसगढ़

5 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार आदरणीय

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति-

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  3. प्रेम में क्या आधा क्या पूरा ... प्रेम तो सम्पूर्ण ही है ...
    गज़ब का आकर्षण है इन पंक्तियों में अरुण जी ...

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  4. कल 27/11/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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