मृत्यु सुंदरी ब्याह करोगी ?
गीत मेरे सुन वाह करोगी ?
सुख- दु:ख की आपाधापी ने,
रात-दिवस है खूब छकाया
जीवन के संग रहा खेलता,
प्रणय निवेदन कर ना पाया
क्या जीवन से डाह करोगी ?
कब आया अपनी इच्छा से,फिर
जाने का क्या मनचीता
काल-चक्र कब मेरे बस में,
कौन भला है इससे जीता
अब मुझसे क्या चाह करोगी ?
श्वेत श्याम रतनार दृगों
में, श्वेत पुतलियाँ हैं एकाकी
काले कुंतल श्वेत हो गए,
सिर्फ झुर्रियाँ तन पर बाकी
क्या इनको फिर स्याह करोगी ?
आते-जाते जल-घट घूंघट, कब
पनघट ने प्यास बुझाई
स्वप्न-पुष्प की झरी
पाँखुरी, मरघट ही अंतिम सच्चाई
अंतिम क्षण, निर्वाह करोगी ?
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग
(छत्तीसगढ़)
शब्द-शब्द में भाव का, समावेश उत्कृष्ट |
ReplyDeleteशिल्प देखते ही बने, यह सचमुच सारिष्ट ||1||
डोरे डाले सुंदरी, मनभावन मुस्कान |
आलिंगन कैसे करूँ, कैसे करूँ प्रयाण |
कैसे करूँ प्रयाण, यही गठबंधन पक्का |
चल हरिनाम पुकार, छोड़ जग हक्का बक्का |
सजी हुई है सेज, पड़े हैं कपड़े कोरे |
पढ़े आज कुल पेज, जिल्द के ढीले डोरे ||
त्वरित प्रतिक्रिया आपकी,मानों आशीर्वाद |
Deleteशब्द-शब्द है दे रहा , अंतर्मन तक स्वाद ||
जीवन एक पड़ाव है, अंतिम मंजिल और
सब आये जिस गाँव से,वही सभी का ठौर
वही सभी का ठौर , सत्य कडुवा है माना
बुन पाया है कौन ,समय का ताना-बाना
चलो मनायें हर्ष , करें हँस कर आलिंगन
जायें अपने देश , एक पड़ाव है जीवन ||
सादर.............
खुबसूरत अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteवाह.....
ReplyDeleteआते-जाते जल-घट घूंघट, कब पनघट ने प्यास बुझाई
स्वप्न-पुष्प की झरी पाँखुरी, मरघट ही अंतिम सच्चाई
अंतिम क्षण, निर्वाह करोगी ?
बहुत सुन्दर रचना है अरुण जी.....लगा पढ़ती ही जाऊं बार बार ......
सादर
अनु
बहुत बढ़िया लगा पढ़कर.
ReplyDeleteइस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :- 21/11/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक - 47 पर.
ReplyDeleteआप भी पधारें, सादर ....
ReplyDeleteTuesday, November 19, 2013
गीत..................
मृत्यु सुंदरी ब्याह करोगी ?
गीत मेरे सुन वाह करोगी ?
सुख- दु:ख की आपाधापी ने, रात-दिवस है खूब छकाया
जीवन के संग रहा खेलता, प्रणय निवेदन कर ना पाया
क्या जीवन से डाह करोगी ?
कब आया अपनी इच्छा से,फिर जाने का क्या मनचीता
काल-चक्र कब मेरे बस में, कौन भला है इससे जीता
अब मुझसे क्या चाह करोगी ?
श्वेत श्याम रतनार दृगों में, श्वेत पुतलियाँ हैं एकाकी
काले कुंतल श्वेत हो गए, सिर्फ झुर्रियाँ तन पर बाकी
क्या इनको फिर स्याह करोगी ?
आते-जाते जल-घट घूंघट, कब पनघट ने प्यास बुझाई
स्वप्न-पुष्प की झरी पाँखुरी, मरघट ही अंतिम सच्चाई
अंतिम क्षण, निर्वाह करोगी ?
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
रचना का सुन्दर संसार। किस किस को छोड़ें हैम यार ,हर बंद ,हर अर्थ शब्द का सुन्दर दर्शन साथ लिए है जीवन का विस्तार लिए है -मृत्यु
अच्छी अभिव्यक्ति है ....
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