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Sunday, November 4, 2012

आदरणीय रविकर जी की कुण्डलिया को समर्पित दो कुण्डलिया....(विचार आमंत्रित)...


परिहास रविकर..........
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जली कटी देती सुना, महीने में दो चार ।
तुम तो भूखी एक दिन, सैंयाँ बारम्बार ।
सैंयाँ बारम्बार ,  तुम्हारे  व्रत की माया ।
सौ प्रतिशत अति शुद्ध, प्रेम-विश्वास समाया ।
रविकर फांके खीज, गालियाँ भूख-लटी दे ।
कैसे मांगे दम्भ, रोटियां जली कटी दे ।।

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आदरणीय रविकर जी की कुण्डलिया को समर्पित
दो कुण्डलिया..........................
1.
सइयाँ इंगलिश बार में, मजे लूटकर आयँ
छोटी-छोटी बात पर ,सजनी से लड़ जायँ
सजनी से लड़ जायँ ,कहे हैं जली रोटियाँ
आलू का बस झोल, कहाँ हैं तली बोटियाँ
जब सजनी गुर्राय,लपक कर पड़ते पइयाँ
मजे लूटकर आयँ, इंगलिश बार से सइयाँ ||

2.
हँसके काटो चार दिन,मत दिखलाओ तैश
बाकी के  छब्बीस  दिन ,  होगी  प्यारे  ऐश
होगी प्यारे ऐश , दुखों का प्रतिशत कम है
सात जनम का साथ ,रास्ता बड़ा विषम है
पाओगे सुख-धाम ,उन्हीं जुल्फों में फँस के
मत दिखलाओ तैश,चार दिन काटो हँसके ||

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)

 
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रविकर जी का जवाब...........

दीदी-बहना  पञ्च  ये , मसला लाया खींच |
हाथ जोड़ रविकर खड़ा, नीची नजरें मींच |
नीची  नजरें  मींच , मगर  बुदबुदा  रहा है |
उनकी साड़ी फींच, सका पर  नहीं नहा है |
दीदी की क्या बात, ब्याह कर अपने रस्ते |
कहती नहीं उपाय, कि रविकर छूटे सस्ते ||


उनकी भी सुनिए -

क्यूँ  मांगू  पति की उमर, मैं तो रही कमाय ।
उनकी क्या मुहताज हूँ , काहे  रहूँ  भुखाय ।
काहे  रहूँ   भुखाय , बनाते   बढ़िया  खाना ।
टिफिन बना दें मस्त, बना ऑफिस दीवाना ।
कब  से  करवा चौथ ,  नहीं रखते पति मेरे ।
मारें   गर  अवकाश  ,  यहाँ  होटल  बहुतेरे  ।।

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48 comments:

  1. बढ़िया लेक्चर पिलाया रविकर !

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  2. सॉरी,अधूरा कमेंट उड़ गया था, कृपया इस प्रकार पढ़ें -
    बढ़िया लेक्चर पिलाया, रविकर जी को!

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  3. मजेदार:)अब रविकर सर के जवाब की प्रतीक्षा है|

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  4. दीदी-बहना पञ्च ये, मसला लाया खींच |
    हाथ जोड़ रविकर खड़ा, नीची नजरें मींच |

    नीची नजरें मींच, मगर बुदबुदा रहा है |
    उनकी साड़ी फींच, सका पर नहीं नहा है |

    दीदी की क्या बात, ब्याह कर अपने रस्ते |
    कहती नहीं उपाय, कि रविकर छूटे कैसे ||

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  5. वाह अब आएगा मज़ा - कोई तो कम नहीं

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  6. उनकी भी सुनिए -



    क्यूँ मांगू पति की उमर, मैं तो रही कमाय ।

    उनकी क्या मुहताज हूँ, काहे रहूँ भुखाय ।

    काहे रहूँ भुखाय, बनाते बढ़िया खाना ।

    टिफिन बना दें मस्त, बना ऑफिस दीवाना ।

    कब से करवा चौथ, नहीं रखता पति मेरा ।

    होवे गर बीमार, यहाँ होटल बहुतेरा ।।

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    1. दीदी-बहना पञ्च ये, मसला लाया खींच |
      हाथ जोड़ रविकर खड़ा, नीची नजरें मींच |
      नीची नजरें मींच, मगर बुदबुदा रहा है |
      उनकी साड़ी फींच, सका पर नहीं नहा है |
      दीदी की क्या बात, ब्याह कर अपने रस्ते |
      कहती नहीं उपाय, कि रविकर छूटे सस्ते ||



      उनकी भी सुनिए -



      क्यूँ मांगू पति की उमर, मैं तो रही कमाय ।

      उनकी क्या मुहताज हूँ, काहे रहूँ भुखाय ।

      काहे रहूँ भुखाय, बनाते बढ़िया खाना ।

      टिफिन बना दें मस्त, बना ऑफिस दीवाना ।

      कब से करवा चौथ, नहीं रखते पति मेरे ।

      मारे गर अवकाश, यहाँ होटल बहुतेरे ।।

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    2. @ दीदी-बहना पञ्च ये, मसला लाया खींच..........
      ***************************************
      बीबी से तो बच गये ,दीदी खींचे कान
      हँसकर बहना बोलती ,अरे सुधर शैतान !
      अरे सुधर शैतान ,थाम भाभी का पल्लू
      सँवरेगा दाम्पत्य ,एक दिन हल्लू-हल्लू
      मिल बैठे सुलझाव,मामला बड़ा करीबी
      पाओगे सुखधाम,अगर खुश होगी बीबी ||

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    3. दोनों ही जब कर रहे,हैं इनकम जनरेट
      घर में राखें कूक औ'खायें जी! भरपेट
      खायें जी! भरपेट ,हटाएँ मन की हूकें
      चूल्हा जायें भूल, मधुर बाँसुरिया फूकें
      यस-यस है इस पार,उधर है नो-नो,नो-नो
      छत्तीस को श्रीमान्, बनालें तिरसठ दोनों ||

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  7. @सइयाँ इंगलिश बार में, मजे लूटकर आयँ
    छोटी-छोटी बात पर ,सजनी से लड़ जायँ


    सारा यह झूठा प्रपंच, फैलाई अफवाह ।

    हनुमत का मैं भक्त हूँ, चलता सीधी राह ।

    चलता सीधी राह, किया मंदिर में दर्शन ।

    खाया तनिक प्रसाद, घेर लेने कुछ दुर्जन ।

    ठेला ठेली करें, गले पे चाक़ू धारा।

    कपड़ों पर ढरकाय, तमाशा करते सारा ।।

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    1. "मैं" आया क्यों बीच में,यह थी जनरल बात
      दाढ़ी में तिनका कहीं, उलझा क्या प्रिय भ्रात
      उलझा क्या प्रिय भ्रात ,आप हैं सरस जलेबी
      जानें हम परहेज , आप का माज़ा से भी
      अगर हुई कुछ भूल , हमें माफी दइ दइहैं
      यह थी जनरल बात, बीच में आया क्यों "मैं" ||

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    2. @सारा यह झूठा प्रपंच,फैलाई अफवाह
      हनुमत का मैं भक्त हूँ,चलता सीधी राह,,,
      ------------------------------------------
      लाख छुपाओ छुप नही सकता,राज है इतना गहरा
      दिल की बात बता देता है असली नकली चेहरा,,,,,,,

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    3. भोली भाली सूरतें ,मुश्किल है पहचान
      पहन मुखौटा संत का, घूम रहे शैतान
      घूम रहे शैतान ,भरोसा किस पर कीजे
      धोखा खायें आप,जरा सा अगर पसीजे
      भारी तिकड़मबाज , रूठती है घरवाली
      दिखलाते ऐयार , सूरतें भोली भाली ||



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  8. आया ऊंट पहाड़ तले तो दे रहा अब सफाई
    कर्म किए कुछ भी कभी , अब सूझी भक्ताई
    माथे टीका माँड़ कहे , मैं मंदिर जाता हूँ
    खाये छप्पन भोग कहे , तनिक प्रसाद खाता हूँ
    रवि औ अरुण दोनों हैं एक दूजे पर भारी
    दोनों की नोकझोंक लगती है हमको प्यारी .....

    छंदबद्ध रचना करना मेरे लिए दुष्कर हो जाता है ...ऊपर की टिप्पणी को किसी छंद में न देखें :):)

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    1. नोंकझोंक प्यारी लगी,दिल से है आभार
      अरुण-रवि पर्याय हैं , मना रहे रविवार
      मना रहे रविवार, जरा सी हँसी-ठिठोली
      हँसे हँसायें आज , दुखों को मारें गोली
      गत हफ्ते के आज ,भुलादें सारे टेंशन
      रचना भई पगार ,बनें टिप्पणियाँ पेंशन ||

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  9. दीदी के दरबार में, होय फजीहत मोर |
    आज दोस्त भी छोड़ता, दुश्मन सरिस खखोर |
    दुश्मन सरिस खखोर, जमाया बड़ी-बटोर है |
    अब नहिं कान मरोड़, हाथ में बड़ा जोर है |
    कान पकड़ उठ बैठ, करे रविकर उम्मीदी |
    भौजी को भी जाय, यही समझाएं दीदी ||

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    1. दुश्मन मोहे कह रहे , बदल रहे हैं बात
      जली-कटी से आपने,खुद की थी शुरुवात
      खुद की थी शुरुवात,हुई है कहाँ फजीहत
      दीदी का कर्तव्य ,सिखाना भली नसीहत
      अब जाने श्रीमान् , जरूरी क्यों है बंधन
      बदल रहे हैं बात ,कह रहे मोहे दुशमन ||

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    2. रवि अरुण तो एक हैं अलग कहाँ है बात
      मीठी सी तकरार है भला कहाँ है घात
      भला कहाँ है घात , नहीं दुश्मन कोई भी
      चुटीली सी बातें , हँसा देती सबको ही
      दोनों के नामों मे भी दीखती है एक छवि
      पक्ष लिया भाभी का ,तभी मिले अरुण रवि

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    3. @दीदी के दरबार में, होय फजीहत मोर |
      आज दोस्त भी छोड़ता, दुश्मन सरिस खखोर |
      --------------------------------------------------
      आज भरे दरबार में,है फजीहत जमकर
      मानो ये अपनी भूल,तब बचोगे रविकर,,,,

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    4. @ रवि अरुण तो एक हैं...........
      आनाकानी की मगर,लिखी कुण्डली मस्त
      शब्दों के इस वार से,रविकर जी हैं पस्त
      रविकरजी हैं पस्त,पढ़ी जब से कुण्डलिया
      गली नहीं है दाल ,पकाते हैं अब दलिया
      कान उमेठे खूब , याद आई है नानी
      गलती मानी आज , नहीं की आनाकानी ||

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  10. बढ़िया कुण्डलिया रचे, अरुण सर की क्या बात
    दीदी-बीबी के चक्कर में, रविकर सर खा गए मात

    Ravikar Sir...Sorry...इसे अन्यथा न लें...यूँ ही लिख दिया...दोनों के सवाल-जवाब बहुत रोचक लगे|

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    1. आनंदित होता जगत, ढाढस नहीं बँधाय |
      हंसी उड़ायें दीदियाँ, बहनें चुटकी आय |
      बहनें चुटकी आय, पक्ष भाभी का लेती |
      कोई तो समझाय, जीभ ना होय दरेती |
      रही रेत दिन रात, करो ना महिमा मंडित |
      भैया की भी सुनो, नहीं हो यूँ आनंदित ||

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    2. अब भाभी जी को समझाने जा रही हूँ...वे भैया को बिल्कुल भी परेशान न करें:)

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    3. "सॉरी" कहने का नहीं,नहीं "अन्यथा" प्रश्न
      सब आपस के लोग हम, मना रहे हैं जश्न
      मना रहे हैं जश्न , हायकू का स्वागत है
      सभी विधा में छूट , रविकर शरणागत है
      छंद नहीं अनिवार्य, करें हल्का मन-भारी
      खुलकर मन की बात,करें जी तजकर सॉरी ||

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    4. @-आनंदित होता जगत, ढाढस नहीं बँधाय |
      हंसी उड़ायें दीदियाँ, बहनें चुटकी आय |
      ----------------------------------------------

      मै करूँ तुमसे गिला,?मेरा ये"शेवा"ही नही,
      बात ही बात में ये बात निकल आई है,,,,,,

      ( शेवा = बातों से लुभाने का हुनर )

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    5. जश्न ने तो बना दिया, रविवार शानदार
      मन भी हल्का हो गया, बहुत बहुत आभार!!

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  11. यही नोंक-झोंक जीवन को जीवंत बनाए रखती है।

    मोहक काव्यात्मक संवाद।

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  12. कविता का जवाब कविता में!
    अच्छा रहा यह समर्पण!

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  13. बहुत बढ़िया प्रस्तुति

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  14. हकीकत खुल गई रविकर ,तेरे तर्के-मोहब्बत की,
    तुझे तो अब वो पहले से भी बढ़कर याद आते है,,,,,

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  15. आदरेया बहनों -होशियार-हा हा हा हा

    होते थे बधु-सास के, झगडे भाभी नन्द |
    करी तंग थी बेवजह, माँ बेटी मति-मन्द |
    माँ बेटी मति-मन्द, हुई माँ प्रभु को प्यारी |
    हो बहना का व्याह, पाय बदले की बारी |
    चुन चुन लेती आज, देख भैया हैं रोते |
    काली बनी प्रचंड, काश तुम दोनों होते ||


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    1. भेजा भौजी भक्ष-ती, लेती नहीं डकार |
      बहना भी नहीं बक्सती, हो दो तरफ़ा मार |
      हो दो तरफ़ा मार, दोस्त भी बदलें पाला |
      पाला किससे पड़ा, जानिये दुश्मन आला |
      खाना पीना बंद, भूनती रही कलेजा |
      काली या यमदूत, इसे किसने है भेजा ??

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    2. @ होते थे बधु-सास के..........

      झगड़े होते हैं वहाँ , विपुल जहाँ है प्यार
      क्रूर रोल कर हिट हुई,सासु ललिता पवार
      सासु ललिता पवार,हिरोइन बहु दुखियारी
      करना अपना रोल , सभी की है लाचारी
      किस-विध होय बचाव,तर्क देते रवि तगड़े
      मित्र सुधर लें आप,खत्म हो जायें झगड़े ||

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    3. @ भेजा भौजी भक्ष-ती..........

      भौजी को हम जानते,रांधे भोजन बेस्ट
      भेजे का भक्षण करे,इतना बुरा न टेस्ट
      इतना बुरा न टेस्ट, कलेजा ना रे बाबा
      नानवेज का शौक,चले जाओ तुम ढाबा
      खाना पीना बंद ,नया नाटक मनमौजी
      सहराओ निज भाग,मिली है ऐसी भौजी ||

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  16. वाह वाह वाह वाह
    क्या बात है
    आदरणीय रविकर जी आज तो आप छा गए
    चारो तरफ से आप पर हो रही ये बरसात मौसम की नजाकत बयाँ कर रही है
    बचो भ्राता बचो ....

    जली कटी ने छेड़ दी, अदभुद वाक् विवाद

    सूर्य सूर्य कर रहे, तुझमें मुझमें लाद

    तुझमें मुझमें लाद, खुश हुई राम दुलारी

    रविकर हैं बेहाल, बन रही है तरकारी

    न ऋता संगीता, सबकी बात लगे भली

    अरूण कहे शुभ शुभ, रविकर कहे कटी जली

    आदरणीय सुन्दर हास परिहास ने रंग भर दिया है

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    1. देरी से आए 'उमा' शांत करो भूचाल
      जले-कटे के वास्ते , ले आओ बर्नाल
      ले आओ बर्नाल,जिगर के ही टुकड़े हैं
      जाने क्या है बात,खूब उखड़े उखड़े हैं
      शब्द कंठ से निकल,रहे हैं रणभेरी-से
      शांत करो भूचाल ,'उमा'आए देरी से ||

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  17. घमासान मचता रहे, आदत पड़ती जाय |
    कुछ शब्दों से क्यूँ मियां, जाते हो घबराय |
    जाते हो घबराय, ओखली में सर डाला |
    रविकर पिट पिट आय, निकल अब चुका दिवाला |
    रचना इक संकेत, जगत में भरा कुहाँसा |
    रवि पर छाये मेघ, कहाँ से आय घमासा ||

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    1. @रचना--इक संकेत, जगत में भरा कुहाँसा |

      आदरेया-
      यह शब्द प्रयोग बहुत दिनों बाद किया है-
      आशा है इसके प्रयोग की इजाजत देंगी ||
      (पुरानी कहानी)

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  18. भली बहस का अंत कर, रविकर कह कर जोर |
    खुद में करूँ सुधार अब, छमहुं गलतियाँ मोर |
    छमहुं गलतियाँ मोर, खीर पूरी है खाना |
    पत्नी रही बुलाय, प्रेम से रविकर जाना |
    रही जलेबी छान, काम सब उसके बस का |
    रब की मेहर रहे, अंत अब भली बहस का ||

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    1. भले बहस का अन्तकर,लो चाहे कर जोर,
      बीस पड़े है अरुणजी,रविकर तुम कमजोर,,,

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    2. रविकर अनुभवहीन है, सुनिए मेरे मीत |
      भैया का अनुभव अधिक, जाँय तभी तो जीत |
      जाँय तभी तो जीत, हकीकत सदा जीतती |
      बनावटी अंदाज, कहाँ बकवाद खींचती |
      जीत सत्य की होय, झूठ क्या देगा टक्कर |
      अरुण शब्द ही मूल, निकलते उससे रविकर ||

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    3. शत-शत प्रणाम आपको, दोनों कवि हैं बाज !
      एक कहे दूजा रचे, दोनों पद के ’राज’ !!
      दोनों पद के ’राज’, क्रिया पर प्रतिक्रिया दें
      ऐसी छटा सुमधुर, मंच को नयी विधा दें
      सब जन लें आनन्द, कौन किससे होता नत
      किन्तु दोनों प्रकाण्ड, नमन दोनों को शत-शत.. .

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  19. सुखान्त कथाओं के अंत में कहा जाता है - 'जैसी उनकी भई तैसी सबकी होय!'
    अंत भला सो सब भला !

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  20. http://mypoeticresponse.blogspot.in/2012/07/blog-post_11.html

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