"भली बहस का अंत कर,रविकर कह कर जोर"
भाई हर चल-चित्र में , होते विविध हैं पात्र
भूल स्वयं को मंच पर , अभिनय करते मात्र
अभिनय करते मात्र,सत्य के संग हो नायक
वहीं बुराई का प्रतीक , बनता खलनायक
देने को संदेश , कहानी जाय
बनाई
अभिनेता की हार - जीत नहिं होती भाई ||
मेवा देने के लिये , खुद सहते हैं चोट
जग में सम्मानित हुए,श्रीफल औ’ अखरोट
श्रीफल औ’ अखरोट,कठिन
होता है बनना
यूँ ही मुश्किल जोकर के परिधान
पहनना
अपना कर परिहास , रविकर करते सेवा
खुद सहते हैं चोट , बाँटते सबको मेवा ||
मेरी पिछली पोस्ट का , यही है उपसंहार
ननदी का जैसे दिखा , भाभी खातिर प्यार
भाभी खातिर प्यार ,ये हर इक घर में होये
सुखी रहे घरबार , प्रेम का सूत्र पिरोये
पति - पत्नी करें प्यार,बीच ना आय कछेरी*
यही है उपसंहार , पिछली पोस्ट का मेरी ||
(कछेरी=कचहरी)
रविकर की धज्जियाँ उडाती आ. अरुण निगम की पोस्ट
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (मध्य प्रदेश)
ReplyDeleteभाई जी दिखला रहे, परंपरा से प्रीति |
खलु भी नायक बन रहे, बड़ी पुरानी रीति |
बड़ी पुरानी रीति, नीति सम्मत हैं बातें |
बता रहे तहजीब, सुधरते रिश्ते नाते |
चौथा वाद-विवाद, मजे ले जग मुस्काई |
रहे हमेशा याद, एक हैं भाभी भाई |
उपसंहार बता रहे,खीचे फिर फिर चित्र
Deleteबातों में आना नही,समझे रविकर मित्र
समझे रविकर मित्र,अरुण जी चारा डाले
लालच में खा लिया,फिर पड़ जाये न पाले
देता धीर सलाह,संभलना इस वार में
फस जाये ये अरुण,अपने उपसंहार में,,,,,
RECENT POST:..........सागर
नकारात्मक नकारे, रखते मन में धीर |
Deleteसकारात्मक पक्ष से, कभी नहीं हो पीर |
कभी नहीं हो पीर, जलधि का मंथन करके |
जलता नहीं शरीर, मिले घट अमृत भरके |
करलो प्यारे पान, पिए रविकर विष खारा |
हो सबका कल्याण, नहीं सिद्धांत नकारा ||
भाईचारा हम कहें , चारा समझें धीर
Deleteबेचारा कवि क्या करे, गुपचुप सहता पीर
गुपचुप सहता पीर , शब्द गर एक उचारा
गया नकारा हाय !मिला केवल विष खारा
पर्वत का दिल चीर,निकलती निर्मल धारा
तट दो लेकिन खूब , निभाते भाईचारा ||
शब्द संयोजन नपे तुले, दिए आंट प्रेम डोर।
ReplyDeleteएक छोर ननदी धरे, धरे भाभी दूसरो छोर।।
.......इतना बढ़िया सजाते हैं शब्द मोतियों से
पंक्तियाँ निगम भैया......लाजवाब! शानदार
रचना ......
छंदों से शुरुवात की , सूर्यकांत जी वाह
Deleteजहाँ चाह होती वहाँ ,स्वयं निकलती राह
स्वयं निकलती राह,परिश्रम व्यर्थ न जाए
रसरी आवत जात ,अरे पाहन घिस जाए
भ्रमर हुए क्यों मुग्ध ,पूछिए मकरंदों से
सूर्यकांत जी वाह , जुड़े रहिए छंदों से ||
लाज़वाब प्रस्तुति...
ReplyDeleteदो शब्दों ने आपके, दिया हमें उत्साह
Deleteनेह दीप दिखला रहा,नई नवेली राह ||
आभार........
सामाजिक विन्यास में, इंसा का हर रूप |
ReplyDeleteहर क्षण बदला जा रहा,कभु छाँव कभू धूप ||
रविकर सरल सुभाव है,चंचल मन कह जाय |
कह दिया सो कह दिया, करें नहीं परवाय ||
नदिया तरिया तैरती, रविकर कवि की नाव |
कुंडली बन है बह रहि, उमडत घुमडत भाव ||
कभी ह्रदय है रो पड़े, कभी करे परिहास |
कभी तेज चल जात है, गले पड़े है फांस ||
रिश्तों को है जोड़के, कर विनती में तात |
सूरज सम बन जात है, अपने रविकर भ्रात ||
खेला चौसर कबड्डी, क्रिकेट वालीबाल ।
Deleteगोइंयाँ कुल कमजोर ले, चलता धांसू चाल ।
चलता धांसू चाल, जीतता कहीं अगरचे ।
खुश अंतर का हाल, करे सब कोई चरचे ।
शंकर का आभार, पिए सब जहर अकेला ।
उमा करें कल्याण, रहेगा चालू खेला ।।
सुंदर परिभाषित किया,सामाजिक विन्यास
Deleteपतझर रोए है कभी, कभी हँसे मधुमास
कभी हँसे मधुमास,चले दुनियाँ का खेला
रवि दहता चुपचाप,गगन के बीच अकेला
पर्वत झरने जीव-जंतु वन झील समुंदर
वसुधा का विन्यास सजाया रवि ने सुंदर ||
बेहतरीन रचना एवं अभिव्यक्ति के लिए आभार
ReplyDeleteदया-मया धर आय हौ , संगी जय जोहार
Deleteगुरतुर लागिस गोठ हर,सुंदर लगिस विचार ||
दोहे से दोहे मिले, दोहों की आ गई बाढ़।
ReplyDeleteशब्दों की बारिश हुई, नहिं सावन नहीं आषाढ़।।
बारिश होवे प्रीति की,क्या सावन आषाढ़
Deleteजग में बाढ़े प्रेम यूँ , रिश्ते होयँ प्रगाढ़
रिश्ते होयँ प्रगाढ़ , बाढ़ में डूबें ऐसे
व्यर्थ लगे श्रृंगार ,ये दौलत रुपिये पैसे
भौतिकता की कभी,जगे ना मनमें ख्वाहिश
क्या सावन आषाढ़,प्रीति की होवे बारिश ||
what a nice combination of words and feelongs,exlnt
ReplyDeleteRAVKAR AUR NIGAM KI MUTHBHED KAR--- आज अजब सी शरारत मेरे साथ हुई,
ReplyDeleteमेरे घर को छोड़ पूरे शहर में बरसात हुई||
AABHAAR Sir Jee
Deleteमेवा देने के लिये , खुद सहते हैं चोट
ReplyDeleteजग में सम्मानित हुए,श्रीफल औ’ अखरोट
श्रीफल औ’ अखरोट,कठिन होता है बनना
यूँ ही मुश्किल जोकर के परिधान पहनना
अपना कर परिहास , रविकर करते सेवा
खुद सहते हैं चोट , बाँटते सबको मेवा ||
भीषण थे आघात, आसान नहिं था सहना|
देख आपका धैर्य, नतमस्तक हुई बहना|
सादर
नोक झोंक के रूप में बना रहे संवाद
ReplyDeleteप्रीत रीत के बीच में आए न कोई विवाद ।
बहुत सुंदर उपसंहार ।