परिहास
– रविकर..........
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जली कटी देती सुना, महीने में दो चार ।
तुम तो भूखी एक दिन, सैंयाँ बारम्बार ।
सैंयाँ बारम्बार , तुम्हारे व्रत की माया ।
सौ प्रतिशत अति शुद्ध, प्रेम-विश्वास समाया ।
रविकर फांके खीज, गालियाँ भूख-लटी दे ।
कैसे मांगे दम्भ, रोटियां जली कटी दे ।।
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जली कटी देती सुना, महीने में दो चार ।
तुम तो भूखी एक दिन, सैंयाँ बारम्बार ।
सैंयाँ बारम्बार , तुम्हारे व्रत की माया ।
सौ प्रतिशत अति शुद्ध, प्रेम-विश्वास समाया ।
रविकर फांके खीज, गालियाँ भूख-लटी दे ।
कैसे मांगे दम्भ, रोटियां जली कटी दे ।।
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आदरणीय रविकर जी की कुण्डलिया
को समर्पित
दो कुण्डलिया..........................
1.
सइयाँ इंगलिश बार में, मजे लूटकर आयँ
छोटी-छोटी बात पर ,सजनी से लड़ जायँ
सजनी से लड़ जायँ ,कहे हैं जली रोटियाँ
आलू का बस झोल, कहाँ हैं तली बोटियाँ
जब सजनी गुर्राय,लपक कर पड़ते पइयाँ
मजे लूटकर आयँ, इंगलिश बार से सइयाँ ||
सइयाँ इंगलिश बार में, मजे लूटकर आयँ
छोटी-छोटी बात पर ,सजनी से लड़ जायँ
सजनी से लड़ जायँ ,कहे हैं जली रोटियाँ
आलू का बस झोल, कहाँ हैं तली बोटियाँ
जब सजनी गुर्राय,लपक कर पड़ते पइयाँ
मजे लूटकर आयँ, इंगलिश बार से सइयाँ ||
2.
हँसके काटो चार दिन,मत दिखलाओ तैश
बाकी के छब्बीस दिन , होगी प्यारे
ऐश
होगी प्यारे ऐश , दुखों का प्रतिशत कम है
सात जनम का साथ ,रास्ता बड़ा विषम है
पाओगे सुख-धाम ,उन्हीं जुल्फों में फँस के
मत दिखलाओ तैश,चार दिन काटो हँसके ||
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)
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रविकर जी का जवाब...........
दीदी-बहना पञ्च ये
, मसला लाया
खींच |
हाथ जोड़ रविकर खड़ा, नीची नजरें मींच |
नीची नजरें मींच , मगर बुदबुदा रहा है |
उनकी साड़ी फींच, सका पर नहीं नहा है |
दीदी की क्या बात, ब्याह कर अपने रस्ते |
कहती नहीं उपाय, कि रविकर छूटे सस्ते ||
उनकी भी सुनिए -
क्यूँ मांगू पति की उमर, मैं तो रही कमाय ।
उनकी क्या मुहताज हूँ , काहे रहूँ भुखाय ।
काहे रहूँ भुखाय , बनाते बढ़िया खाना ।
टिफिन बना दें मस्त, बना ऑफिस दीवाना ।
कब से करवा चौथ , नहीं रखते पति मेरे ।
मारें गर अवकाश , यहाँ होटल बहुतेरे ।।
हाथ जोड़ रविकर खड़ा, नीची नजरें मींच |
नीची नजरें मींच , मगर बुदबुदा रहा है |
उनकी साड़ी फींच, सका पर नहीं नहा है |
दीदी की क्या बात, ब्याह कर अपने रस्ते |
कहती नहीं उपाय, कि रविकर छूटे सस्ते ||
उनकी भी सुनिए -
क्यूँ मांगू पति की उमर, मैं तो रही कमाय ।
उनकी क्या मुहताज हूँ , काहे रहूँ भुखाय ।
काहे रहूँ भुखाय , बनाते बढ़िया खाना ।
टिफिन बना दें मस्त, बना ऑफिस दीवाना ।
कब से करवा चौथ , नहीं रखते पति मेरे ।
मारें गर अवकाश , यहाँ होटल बहुतेरे ।।