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Wednesday, August 8, 2012

अधजल गगरी छलकत जाये प्राणप्रिये......


कैसे    कैसे   मंजर    आये   प्राणप्रिये
अपने    सारे    हुये   पराये   प्राणप्रिये |

सच्चे  की  किस्मत  में  तम  ही  आया है
अब  तो  झूठा  तमगे   पाये   प्राणप्रिये |

ज्ञान  भरे  घट  जाने  कितने  दफ्न हुये
अधजल गगरी छलकत जाये प्राणप्रिये |

भूखे - प्यासे  हंसों  ने  दम  तोड़  दिया
अब  कौआ  ही  मोती  खाये  प्राणप्रिये |

यहाँ  राग - दीपक  की  बातें करता था
वहाँ   राग – दरबारी   गाये  प्राणप्रिये |
 
सोने    चाँदी   की   मुद्रायें   लुप्त  हुईं
खोटे  सिक्के  चलन  में  आये  प्राणप्रिये |

सच्चाई   के    पाँव   पड़ी   हैं   जंजीरें
अब तो बस भगवान बचाये  प्राणप्रिये |

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)

12 comments:

  1. इतनी सुन्दर गजल पर |
    क्या कुछ कहे रविकर |
    पैरोडी न हो जाये कहीं
    इसीलिए चला चुप कर ||

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  2. सच्चे की किस्मत में तम ही आया है
    अब तो झूठा तमगे पाये प्राणप्रिये |
    दुखद है पर यही है

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  3. बहुत सुन्दर..गज़ल..अरुण जी..जन्म अष्टमी पर शुभकामनाएं |

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  4. ज्ञान भरे घट जाने कितने दफ्न हुये
    अधजल गगरी छलकत जाये प्राणप्रिये |

    सुन्दर,बहुत सुन्दर अरुण जी

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  5. खूबसूरत गजल...
    सादर.

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  6. बहुत सुन्दर और सार्थकता लिए
    शानदार गजल है सर जी....
    बहुत बढ़िया:-)

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  7. सच्चाई के पाँव पड़ी हैं जंजीरें
    अब तो बस भगवान बचाये प्राणप्रिये,,,

    सार्थक सटीक बेहतरीन गजल के लिए,,,,बधाई अरुण जी,,,,
    RECENT POST...: जिन्दगी,,,,

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  8. बहुत सुन्दर गज़ल........

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  9. कैसे – कैसे मंजर आये प्राणप्रिये
    अपने सारे हुये पराये प्राणप्रिये

    सटीक पंक्तियाँ

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  10. अब तो कुछ भी कहना शेष नहीं..उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति..

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  11. बहुत खूब हुज़ूर

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