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Monday, March 26, 2012

पहले - सी अब नजर न आती गौरैया.


चूँ - चूँ करती , धूल  नहाती     गौरैया.
बच्चे , बूढ़े  , सबको  भाती     गौरैया .
 
कभी द्वार से
,कभी झरोखे,खिड़की से
फुर - फुर करती , आती जाती गौरैया .
 
बीन
-बीन कर तिनके ले- लेकर आती
उस   कोने   में  नीड़   बनाती   गौरैया.
 
शीशे
  से  जब  कभी  सामना होता तो,
खुद  अपने   से  चोंच  लड़ाती   गौरैया.
 
बिही
   की शाखा से  झूलती लुटिया से
पानी  पीकर  प्यास   बुझाती   गौरैया.

साथ समय के बिही का भी पेड़ कटा  
सुख वाले दिन बीते
,     गाती गौरैया.
 
दृश्य
  सभी ये ,बचपन की स्मृतियाँ हैं
पहले - सी अब  नजर न आती गौरैया.
 
(पुनर्प्रस्तुति)

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)
 

23 comments:

  1. तरंगो का ज़माना ।
    प्रगति का बहाना ।
    ऊँची अट्टालिकाएं-
    पेड़ ही निशाना ।
    दर्पण चिढाये
    पर रंग है ज़माना ।
    बेचारी गौरैया
    गँवा दे ठिकाना ।
    पाए ना पानी
    खाए ना दाना ।
    गौरैया निवाला
    टावर का खाना ।।

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  2. सच में.....कंक्रीट के जगलों में कहीं खो गयी है गौरैया...

    सुन्दर प्रस्तुति.

    सादर.

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  3. सच में आजकल सब कुछ बदल गया है...सुंदर रचना

    http://aadhyatmikyatra.blogspot.in/

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  4. बहुत सुंदर गीत रचा है आदरणीय अरुण भईया....

    थोड़ा सा दाना दोना भर पानी हो, फिर आँगन मे
    शोर मचाती आ जाएगी फिर मुसकाती गौरैया


    सादर।

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  5. देखते रहो और ना जाने क्या-क्या गायब हो जायेगा।

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  6. बहुत ही बढ़िया सर!


    सादर

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  7. साथ समय के बिही का भी पेड़ कटा
    सुख वाले दिन बीते, गाती गौरैया.

    दृश्य सभी ये ,बचपन की स्मृतियाँ हैं
    पहले - सी अब नजर न आती गौरैया.
    बहुत ही बढि़या प्रस्‍तुति ।

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  8. यथार्थ को दर्शाती सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति....

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  9. हाय कहाँ गई वो चिड़िया

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  10. गौरैया की व्यथा की अभिव्यक्ति सार्थक प्रस्तुति

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  11. बहुत सुंदर ,बेहतरीन रचना,....

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  12. वह ..मन भी गौरैया ....
    बहुत सुंदर रचना ...

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    1. मन भाई गौरैया ...ऊपर गलत छपा है ...क्षमा करें ...

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  13. अब गौरैया कहाँ दिखती है .... सुंदर रचना

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  14. बहुत सुंदर रचना पढ़वाने का आभार.. " सवाई सिंह "

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  15. http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/03/7.html

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  16. "अब नजर न आती गौरैया"...सच में कहाँ खोगई है गैरैया.. बहुत सुन्दर..

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  17. बीन-बीन कर तिनके ले- लेकर आती
    उस कोने में नीड़ बनाती गौरैया.

    शीशे से जब कभी सामना होता तो,
    खुद अपने से चोंच लड़ाती गौरैया.

    आदमी भी जीवन भर यही सब करता है,
    खुद से लड़ने में सारी उम्र बिता देता है।

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  18. पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...बेहतरीन रचना,....!!!!!

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  19. शीशे से जब कभी सामना होता तो,
    खुद अपने से चोंच लड़ाती गौरैया.
    वाह!!!!!बहुत सुंदर रचना,क्या बात है,बेहतरीन भाव अभिव्यक्ति,

    MY RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,

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  20. गौरैया को वापस बुलाने की अच्छी मनुहार है ये ....:))

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  21. satya kaha aapne...bahut achchi rachna

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  22. बीन-बीन कर तिनके ले- लेकर आती
    उस कोने में नीड़ बनाती गौरैया.


    उत्कृष्ट रचना के लिए बधाई ...

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