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Wednesday, March 21, 2012

दिल जोड़ना ही सीखा.............


(ओबीओ तरही मुशायरा में शामिल गज़ल)

इक रोज रख गये थे वो दिल की किताब में
ताउम्र  बरकरार  है  खुशबू  गुलाब  में.

कच्ची उमर की हर अदा ओ चाल नशीली
वो मस्तियाँ ना मिल सकीं कच्ची शराब में.

दोनों रहे गुरूर में हाय मिल नहीं सके
मैं रह गया रुवाब में और वो शवाब में.

आईना तोड़ देते हैं वो खुद को देख कर
वो कुछ दिनों से दिख रहे अक्सर हिजाब में

कमबख्त नौकरी ने यूँ मजबूर कर दिया
बीबी से मुलाकात भी होती है ख्वाब में.

हुश्नोशवाब पर तो गज़ल  खूब लिखी हैं
रोटी ही नजर आती है अब माहताब में .

दिल जोड़ना ही सीखा, धन जोड़ ना सके
नाकाम रह गये जमाने के हिसाब में.

पहले से खत जवाबी लिखके भेज दे अरुण
"मैं  जानता हूँ जो वो लिखेंगे  जवाब में"

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)

26 comments:

  1. वाह!!!!

    बेहतरीन गज़ल...
    हर शेर एक अलग भाव, अलग रंग लिए हुए....

    सादर.

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  2. वाह भाई वाह ।।

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    Replies
    1. दिल के जोड़े से कहाँ, कृपण करेज जुड़ाय ।

      सौ फीसद हो मामला, जाकर तभी अघाय ।

      जाकर तभी अघाय, सीखना जारी रखिये ।

      दर्दो-गम आनन्द, मस्त तैयारी रखिये ।

      आई ना अलसाय, आईना क्यूँकर तोड़े ।

      आएगी तड़पाय, बनेंगे दिल के जोड़े ।।

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  3. आईना तोड़ देते हैं वो खुद को देख कर
    वो कुछ दिनों से दिख रहे अक्सर हिजाब में

    कमबख्त नौकरी ने यूँ मजबूर कर दिया
    बीबी से मुलाकात भी होती है ख्वाब में.

    बहुत खूब ...

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  4. जवाबी ख़त का कोई जवाब नहीं है .. अति सुन्दर सृजन..

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  5. कल 22/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल (संगीता स्वरूप जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  6. दिल जोड़ना ही सीखा, धन जोड़ ना सके
    नाकाम रह गये जमाने के हिसाब में.

    पहले से खत जवाबी लिखके भेज दे ‘अरुण’
    "मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में"

    बहुत सुंदर गजल,......

    my resent post


    काव्यान्जलि ...: अभिनन्दन पत्र............ ५० वीं पोस्ट.

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  7. दोनों रहे गुरूर में हाय मिल नहीं सके
    मैं रह गया रुवाब में और वो शवाब में...वाह

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  8. दिल जोड़ना ही सीखा, धन जोड़ ना सके
    नाकाम रह गये जमाने के हिसाब में
    वाह!!!

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  9. इक रोज रख गये थे वो दिल की किताब में
    ताउम्र बरकरार है खुशबू गुलाब में.……………वाह ………शानदार गज़ल

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  10. पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...

    कमबख्त नौकरी ने यूँ मजबूर कर दिया
    बीबी से मुलाकात भी होती है ख्वाब में.

    इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद कबूल करें.

    नीरज

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  11. गजल की एक एक लाइन तारीफ के काबिल है,

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  12. आईना तोड़ देते हैं वो खुद को देख कर
    वो कुछ दिनों से दिख रहे अक्सर हिजाब में

    कमबख्त नौकरी ने यूँ मजबूर कर दिया
    बीबी से मुलाकात भी होती है ख्वाब में.
    वाह ...बहुत खूब ।

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  13. कमबख्त नौकरी ने यूँ मजबूर कर दिया
    बीबी से मुलाकात भी होती है ख्वाब में.

    uff ye majboori!
    sundar rachna
    Saadar

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  14. वाह वाह वाह !!! क्या बात है हर एक पंक्ति लजावा है सर बहुत खूब लिखा है आपने बेहतरीन प्रस्तुति....

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  15. bahut khub, bahut sundar

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  16. आईना तोड़ देते हैं वो खुद को देख कर
    वो कुछ दिनों से दिख रहे अक्सर हिजाब में
    kya bat hai.

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  17. मजा आ गया आदरणीय अरुण भईया...
    सादर.

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  18. दोनों रहे गुरूर में हाय मिल नहीं सके
    मैं रह गया रुवाब में और वो शवाब में.

    यह गुरूर जब भी रिश्तों में आ जाता है...सब बिखर जाता है.

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  19. दिल जोड़ना ही सीखा, धन जोड़ ना सके
    नाकाम रह गये जमाने के हिसाब में.

    यह बहुत बड़ी दौलत है ...हर किसीके पास नहीं होती

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  20. आईना तोड़ देते हैं वो खुद को देख कर
    वो कुछ दिनों से दिख रहे अक्सर हिजाब में

    वाह! क्या अहसास है...बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...

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  21. .

    वाह वाह !
    बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है
    मुबारकबाद !

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  22. दिल जोड़ना ही सीखा, धन जोड़ ना सके
    नाकाम रह गये जमाने के हिसाब में.
    क्या 'मतला' और क्या 'मक्ता' यहाँ हर कोई अपने सुरूर में है .

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  23. खुबसूरत गजल...बहुत सुन्दर.. .नव संवत्सर की शुभकामनायें

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  24. बहुत सुन्दर
    बहुत बढ़िया प्रस्तुति है.....

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