(ओबीओ तरही मुशायरा में शामिल गज़ल)
इक रोज रख गये थे वो दिल की किताब में
ताउम्र बरकरार है खुशबू गुलाब में.
कच्ची उमर की हर अदा ओ चाल नशीली
वो मस्तियाँ ना मिल सकीं कच्ची शराब में.
दोनों रहे गुरूर में हाय मिल नहीं सके
मैं रह गया रुवाब में और वो शवाब में.
आईना तोड़ देते हैं वो खुद को देख कर
वो कुछ दिनों से दिख रहे अक्सर हिजाब में
कमबख्त नौकरी ने यूँ मजबूर कर दिया
बीबी से मुलाकात भी होती है ख्वाब में.
हुश्नोशवाब पर तो गज़ल खूब लिखी हैं
रोटी ही नजर आती है अब माहताब में .
दिल जोड़ना ही सीखा, धन जोड़ ना सके
नाकाम रह गये जमाने के हिसाब में.
पहले से खत जवाबी लिखके भेज दे ‘अरुण’
"मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में"
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)
वाह!!!!
ReplyDeleteबेहतरीन गज़ल...
हर शेर एक अलग भाव, अलग रंग लिए हुए....
सादर.
वाह भाई वाह ।।
ReplyDeleteदिल के जोड़े से कहाँ, कृपण करेज जुड़ाय ।
Deleteसौ फीसद हो मामला, जाकर तभी अघाय ।
जाकर तभी अघाय, सीखना जारी रखिये ।
दर्दो-गम आनन्द, मस्त तैयारी रखिये ।
आई ना अलसाय, आईना क्यूँकर तोड़े ।
आएगी तड़पाय, बनेंगे दिल के जोड़े ।।
आईना तोड़ देते हैं वो खुद को देख कर
ReplyDeleteवो कुछ दिनों से दिख रहे अक्सर हिजाब में
कमबख्त नौकरी ने यूँ मजबूर कर दिया
बीबी से मुलाकात भी होती है ख्वाब में.
बहुत खूब ...
जवाबी ख़त का कोई जवाब नहीं है .. अति सुन्दर सृजन..
ReplyDeleteकल 22/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल (संगीता स्वरूप जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
दिल जोड़ना ही सीखा, धन जोड़ ना सके
ReplyDeleteनाकाम रह गये जमाने के हिसाब में.
पहले से खत जवाबी लिखके भेज दे ‘अरुण’
"मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में"
बहुत सुंदर गजल,......
my resent post
काव्यान्जलि ...: अभिनन्दन पत्र............ ५० वीं पोस्ट.
दोनों रहे गुरूर में हाय मिल नहीं सके
ReplyDeleteमैं रह गया रुवाब में और वो शवाब में...वाह
दिल जोड़ना ही सीखा, धन जोड़ ना सके
ReplyDeleteनाकाम रह गये जमाने के हिसाब में
वाह!!!
इक रोज रख गये थे वो दिल की किताब में
ReplyDeleteताउम्र बरकरार है खुशबू गुलाब में.……………वाह ………शानदार गज़ल
पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...
ReplyDeleteकमबख्त नौकरी ने यूँ मजबूर कर दिया
बीबी से मुलाकात भी होती है ख्वाब में.
इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद कबूल करें.
नीरज
गजल की एक एक लाइन तारीफ के काबिल है,
ReplyDeleteआईना तोड़ देते हैं वो खुद को देख कर
ReplyDeleteवो कुछ दिनों से दिख रहे अक्सर हिजाब में
कमबख्त नौकरी ने यूँ मजबूर कर दिया
बीबी से मुलाकात भी होती है ख्वाब में.
वाह ...बहुत खूब ।
कमबख्त नौकरी ने यूँ मजबूर कर दिया
ReplyDeleteबीबी से मुलाकात भी होती है ख्वाब में.
uff ye majboori!
sundar rachna
Saadar
वाह वाह वाह !!! क्या बात है हर एक पंक्ति लजावा है सर बहुत खूब लिखा है आपने बेहतरीन प्रस्तुति....
ReplyDeletebahut khub, bahut sundar
ReplyDeleteआईना तोड़ देते हैं वो खुद को देख कर
ReplyDeleteवो कुछ दिनों से दिख रहे अक्सर हिजाब में
kya bat hai.
मजा आ गया आदरणीय अरुण भईया...
ReplyDeleteसादर.
दोनों रहे गुरूर में हाय मिल नहीं सके
ReplyDeleteमैं रह गया रुवाब में और वो शवाब में.
यह गुरूर जब भी रिश्तों में आ जाता है...सब बिखर जाता है.
दिल जोड़ना ही सीखा, धन जोड़ ना सके
ReplyDeleteनाकाम रह गये जमाने के हिसाब में.
यह बहुत बड़ी दौलत है ...हर किसीके पास नहीं होती
आईना तोड़ देते हैं वो खुद को देख कर
ReplyDeleteवो कुछ दिनों से दिख रहे अक्सर हिजाब में
वाह! क्या अहसास है...बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...
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ReplyDeleteवाह वाह !
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है
मुबारकबाद !
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नव संवत् का रवि नवल, दे स्नेहिल संस्पर्श !
पल प्रतिपल हो हर्षमय, पथ पथ पर उत्कर्ष !!
-राजेन्द्र स्वर्णकार
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*चैत्र नवरात्रि और नव संवत २०६९ की हार्दिक बधाई !*
*शुभकामनाएं !*
*मंगलकामनाएं !*
दिल जोड़ना ही सीखा, धन जोड़ ना सके
ReplyDeleteनाकाम रह गये जमाने के हिसाब में.
क्या 'मतला' और क्या 'मक्ता' यहाँ हर कोई अपने सुरूर में है .
खुबसूरत गजल...बहुत सुन्दर.. .नव संवत्सर की शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति है.....