सबका सुख अपना-अपना
मेरे सुख को जाने कौन ?
सब अपने-अपने में खुश हैं
मुझको अपना माने कौन ?
अब ऐसी दुनिया में यारों
जीना क्या, ना जीना क्या ?
सबकी अपनी-अपनी हस्ती
मेरी हस्ती माने कौन ?
वो युग न रहा,दुनियाँ न रही
रिश्तों पर जान लुटाते थे
ऐसे युग में जी के क्या करें
आएगा हमें मनाने कौन ?
ना घर मेरा, ना रिश्ते मेरे
मैं मान करूँ तो कैसे करूँ ?
अपने ही हँसी उड़ाये जब
फिर आए मुझे हँसाने कौन ?
मैंने खुद जला कर रौशन की
जिनकी दुनियाँ - मेरे न हुए
क्यों खुद को ही न राख करूँ
आएगा मुझे जलाने कौन ?
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छतीसगढ़)
विजय नगर,जबलपुर (मध्य प्रदेश)
बहुत मार्मिक रचना।
ReplyDeleteवो युग न रहा,दुनियाँ न रही
ReplyDeleteरिश्तों पर जान लुटाते थे
ऐसे युग में जी के क्या करें
आएगा हमें मनाने कौन ... bahut badaa prashn hai danav ki tarah munh failaye
मैंने खुद जला कर रौशन की
ReplyDeleteजिनकी दुनियाँ - मेरे न हुए
क्यों खुद को ही न राख करूँ
आएगा मुझे जलाने कौन ?
बहुत संवेदनशील प्रस्तुति ...आज कि दुनिया मतलबी ही रह गयी है .
मैंने खुद जला कर रौशन की
ReplyDeleteजिनकी दुनियाँ - मेरे न हुए
क्यों खुद को ही न राख करूँ
आएगा मुझे जलाने कौन ?
भावमय करते शब्द ।
संवेदनशील प्रस्तुति आज की दुनिया का सच यही है।
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील प्रस्तुति ||
ReplyDeleteशुभ-कामनाएं ||
क्यों खुद को ही न राख करूँ
ReplyDeleteआएगा मुझे जलाने कौन?
अरुण भाई....आप निःशब्द कर देते हैं....
बहुत भावुक रचना...
सादर...
वो युग न रहा,दुनियाँ न रही
ReplyDeleteरिश्तों पर जान लुटाते थे
ऐसे युग में जी के क्या करें
आएगा हमें मनाने कौन ?
सुन्दर पंक्तिया ,सुन्दर भाव ........
bahut sundar panktiyan
ReplyDeleteक्यों खुद को ही न राख करूँ
ReplyDeleteआएगा मुझे जलाने कौन ?
.............जीवन की वास्तविकता से रूबरू कराती प्रभावशाली रचना
ना घर मेरा, ना रिश्ते मेरे
ReplyDeleteमैं मान करूँ तो कैसे करूँ ?
अपने ही हँसी उड़ाये जब
फिर आए मुझे हँसाने कौन ?
घर और रिश्तों की परिभाषा ही बदल गई है।
यथार्थ को प्रतिबिंबित करती रचना।
मैंने खुद जला कर रौशन की
ReplyDeleteजिनकी दुनियाँ - मेरे न हुए
क्यों खुद को ही न राख करूँ
आएगा मुझे जलाने कौन ?
निरपेक्ष भाव की इन्तहा यही है .व्यक्ति को कामयाबी के लिए निरपेक्ष ही होना चाहिए ,औरों के प्रति भाव खुद के प्रति निर्भाव निरपेक्षता बचाए रहती है .अपेक्षा मारती है निरपेक्षता बचाव करती है
प्रभावशाली रचना!
ReplyDeleteरिश्तों के प्रति इमानदार लोग कम ही मिलते हैं। ये दुनिया स्वार्थी ही है।
ReplyDeleteएक संवेदनशील हृदय के उदगार.
ReplyDeleteis swarthi duniya me sab rishte bemaani ho gaye.bahut marmik rachna.bahut badhiya.
ReplyDeleteवह आपकी रचनाओं का प्रवाह ... बोध और रवानगी समा बाँध देती है ...
ReplyDeleteकल 05/08/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
वो युग न रहा,दुनियाँ न रही
ReplyDeleteरिश्तों पर जान लुटाते थे
ऐसे युग में जी के क्या करें
आएगा हमें मनाने कौन ?
सच कहा अब रिश्ते बचे ही कहा है , सब निज स्वार्थ के रिश्ते है ,
ढेरो शुभकामनाये ,
यहाँ भी पधारे
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/08/blog-post_4.html