दिल की बात दौलत तक
पहुँची और तमाम हो गई
दिलवर सौदागर बन बैठा
तो चाहत नीलाम हो गई.
चाँद-सितारे जान रहे हैं
किसने वादे किए-निभाए
और चमन की खातिर फिर तो
ऐसी बातें आम हो गई.
कभी इबादत के फूलों सी
उनकी आँखें पाक सदा थी
आज अमीरों की महफिल में
एक छलकता जाम हो गई.
बात-बात पर कहती थी जो
तुम बिन मैं मर जाऊंगी
मगर आज वो खुशी-खुशी से
और किसी के नाम हो गई.
वक़्त बदलता है कैसे ये
उस दिन हमने जाना ,जब
सुबहे बनारस हाय यकायक
एक अवध की शाम हो गई.
चलो याद की चादर ताने
अरुण कहीं सो जाते हैं
इक दिन वो आएंगे कहते
जिंदगी कोहराम हो गई.
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छतीसगढ़)
विजय नगर,जबलपुर (मध्य प्रदेश)
(रचना वर्ष – 1978)
दिल की बात दौलत तक
ReplyDeleteपहुँची और तमाम हो गई
दिलवर सौदागर बन बैठा
तो चाहत नीलाम हो गई...सुन्दर अभिवयक्ति....
bhaut hi khubsurat...
ReplyDeleteदिल की बात दौलत तक
ReplyDeleteपहुँची और तमाम हो गई ||
सुन्दर ||
बहुत सुन्दर, सार्थक रचना , बधाई.
ReplyDeleteकभी इबादत के फूलों सी
ReplyDeleteउनकी आँखें पाक सदा थी
आज अमीरों की महफिल में
एक छलकता जाम हो गई.
वाह निगाम जी अह्साशो के परत दर परत खोलती बेहतरीन काव्य रचना बधाई
वाह अरुण जी गज़ब की भावाव्यक्ति है।
ReplyDeleteदिल की बात दौलत तक
ReplyDeleteपहुँची और तमाम हो गई
दिलवर सौदागर बन बैठा
तो चाहत नीलाम हो गई.
bahut achchi lagi........
कल 14/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
वाह ..पढ़कर मजा आ गया ...लाजबाब
ReplyDeleteसमय चाहिए आज आप से |
ReplyDeleteपाई फुर्सत बाढ़ - ताप से |
परिचय पढ़िए, प्रस्तुति प्रतिपल-
शुक्रवार के इस प्रभात से ||
समालोचना टिप्पण करिए-
अपने दिल की प्रेम-माप से |
चर्चा-मंच की शोभा बढती-
भाई-भगिनी चरण-चाप से ||
शुक्रवार --चर्चा-मंच
http://charchamanch.blogspot.com/
वाह वाह!! सरस/सहज/प्रवाही गीत अरुण भाई...
ReplyDeleteसादर बधाई...
समय चाहिए आज आप से, पाई फुर्सत बाढ़ - ताप से |
ReplyDeleteपरिचय पढ़िए, प्रस्तुति प्रतिपल, शुक्रवार के इस प्रभात से ||
टिप्पणियों से धन्य कीजिए, अपने दिल की प्रेम-माप से |
चर्चा मंच
की शोभा बढे, भाई-भगिनी, चरण-चाप से ||
वक़्त बदलता है कैसे ये
ReplyDeleteउस दिन हमने जाना ,जब
सुबहे बनारस हाय यकायक
एक अवध की शाम हो गई.
Bahut Sunder....
बात-बात पर कहती थी जो
ReplyDeleteतुम बिन मैं मर जाऊंगी
मगर आज वो खुशी-खुशी से
और किसी के नाम हो गई.
बहुत सुंदर ,प्रेम विरह का समन्वय ,बधाई ।
बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteवक़्त के साथ बदलते व्यवहारों की पदचाप स्पष्ट है!
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है|
ReplyDeleteवक़्त बदलता है कैसे ये
ReplyDeleteउस दिन हमने जाना ,जब
सुबहे बनारस हाय यकायक
एक अवध की शाम हो गई.
...वाह ! रचना का प्रवाह अपने साथ बहा ले जाता है..लाज़वाब भावाभिव्यक्ति..
खूबसूरती से कही आपने अपनी बात
ReplyDeleteचलो याद की चादर ताने
ReplyDeleteअरुण कहीं सो जाते हैं
इक दिन वो आएंगे कहते
जिंदगी कोहराम हो गई.
बहुत खूब अरुण जी .... सभ्जी छंद एक से बढ़ के एक इस रचना के ...