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Thursday, October 13, 2011

वक़्त बदलता है कैसे......


दिल की बात दौलत तक
पहुँची और तमाम हो गई
दिलवर सौदागर बन बैठा
तो चाहत नीलाम हो गई.

चाँद-सितारे जान रहे हैं
किसने वादे किए-निभाए
और चमन की खातिर फिर तो
ऐसी बातें आम हो गई.

कभी इबादत के फूलों सी
उनकी आँखें पाक सदा थी
आज अमीरों की महफिल में
एक छलकता जाम हो गई.

बात-बात पर कहती थी जो
तुम बिन मैं मर जाऊंगी
मगर आज वो खुशी-खुशी से
और किसी के नाम हो गई.

वक़्त बदलता है कैसे ये
उस दिन हमने जाना ,जब
सुबहे बनारस हाय यकायक
एक अवध की शाम हो गई.

चलो याद की चादर ताने
अरुण कहीं सो जाते हैं
इक दिन वो आएंगे कहते
जिंदगी कोहराम हो गई.


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छतीसगढ़)
विजय नगर,जबलपुर (मध्य प्रदेश)
(रचना वर्ष – 1978)

19 comments:

  1. दिल की बात दौलत तक
    पहुँची और तमाम हो गई
    दिलवर सौदागर बन बैठा
    तो चाहत नीलाम हो गई...सुन्दर अभिवयक्ति....

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  2. दिल की बात दौलत तक
    पहुँची और तमाम हो गई ||

    सुन्दर ||

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  3. बहुत सुन्दर, सार्थक रचना , बधाई.

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  4. कभी इबादत के फूलों सी
    उनकी आँखें पाक सदा थी
    आज अमीरों की महफिल में
    एक छलकता जाम हो गई.

    वाह निगाम जी अह्साशो के परत दर परत खोलती बेहतरीन काव्य रचना बधाई

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  5. वाह अरुण जी गज़ब की भावाव्यक्ति है।

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  6. दिल की बात दौलत तक
    पहुँची और तमाम हो गई
    दिलवर सौदागर बन बैठा
    तो चाहत नीलाम हो गई.
    bahut achchi lagi........

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  7. कल 14/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  8. वाह ..पढ़कर मजा आ गया ...लाजबाब

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  9. समय चाहिए आज आप से |
    पाई फुर्सत बाढ़ - ताप से |
    परिचय पढ़िए, प्रस्तुति प्रतिपल-
    शुक्रवार के इस प्रभात से ||
    समालोचना टिप्पण करिए-
    अपने दिल की प्रेम-माप से |
    चर्चा-मंच की शोभा बढती-
    भाई-भगिनी चरण-चाप से ||
    शुक्रवार --चर्चा-मंच
    http://charchamanch.blogspot.com/

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  10. वाह वाह!! सरस/सहज/प्रवाही गीत अरुण भाई...
    सादर बधाई...

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  11. समय चाहिए आज आप से, पाई फुर्सत बाढ़ - ताप से |
    परिचय पढ़िए, प्रस्तुति प्रतिपल, शुक्रवार के इस प्रभात से ||
    टिप्पणियों से धन्य कीजिए, अपने दिल की प्रेम-माप से |
    चर्चा मंच

    की शोभा बढे, भाई-भगिनी, चरण-चाप से ||

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  12. वक़्त बदलता है कैसे ये
    उस दिन हमने जाना ,जब
    सुबहे बनारस हाय यकायक
    एक अवध की शाम हो गई.

    Bahut Sunder....

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  13. बात-बात पर कहती थी जो
    तुम बिन मैं मर जाऊंगी
    मगर आज वो खुशी-खुशी से
    और किसी के नाम हो गई.

    बहुत सुंदर ,प्रेम विरह का समन्वय ,बधाई ।

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  14. बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति!
    वक़्त के साथ बदलते व्यवहारों की पदचाप स्पष्ट है!

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  15. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है|

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  16. वक़्त बदलता है कैसे ये
    उस दिन हमने जाना ,जब
    सुबहे बनारस हाय यकायक
    एक अवध की शाम हो गई.

    ...वाह ! रचना का प्रवाह अपने साथ बहा ले जाता है..लाज़वाब भावाभिव्यक्ति..

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  17. खूबसूरती से कही आपने अपनी बात

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  18. चलो याद की चादर ताने
    अरुण कहीं सो जाते हैं
    इक दिन वो आएंगे कहते
    जिंदगी कोहराम हो गई.

    बहुत खूब अरुण जी .... सभ्जी छंद एक से बढ़ के एक इस रचना के ...

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