गजल : खेतों में बनी बस्ती
शहरों में नजर आती है खूब धनी बस्ती
गाँवों में मगर क्यों है अश्कों से सनी बस्ती।
कई लोग पलायन कर घर छोड़ गये सूना
मेरे गाँव में भी कल तक थी खूब घनी बस्ती।
भू-माफिया बिल्डर के चंगुल में फँसी जब से
बेमोल बिकी है फिर हीरे की कनी बस्ती।
फुटपाथ मिला कुछ को, कुछ को है मिली कुटिया
कुछ किस्मत वालों की आकाश तनी बस्ती।
बरसात भरोसे में खेती हो "अरुण" कब तक
मजबूर किसानों के खेतों में बनी बस्ती।
- अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग छत्तीसगढ़
शहरों में भी रहती हैं अश्कों से सनी बस्ती
ReplyDeleteकम ही क्षेत्र में रहती हैं शहर में धनी बस्ती ।
सूक्ष्म अवलोकन से लिखी ग़ज़ल ,👌👌👌👌👌
आपकी लिखी रचना सोमवार. 13 सितंबर 2021 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
जरूरत की बीजों से फूटी सघन या विरल
ReplyDeleteकहीं बंज़र तो कहीं लहलहाती मिली बस्ती।
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अति गहन विश्लेषण सुंदर गज़ल।
सादर।
यही तो आज की विडंबना है । प्रभावी चिंतन ।
ReplyDeleteअरुण जी..ग़ज़ल के माध्यम से कटु सत्य को उजागर किया है आपने। बहुत-बहुत शुभकामनायें आपको।
ReplyDeleteभू-माफिया बिल्डर के चंगुल में फँसी जब से
ReplyDeleteबेमोल बिकी है फिर हीरे की कनी बस्ती।
बहुत ही सुन्दर गजल
वाह!!!
कई लोग पलायन कर घर छोड़ गये सूना
ReplyDeleteमेरे गाँव में भी कल तक थी खूब घनी बस्ती।
बहुत ही सुंदर
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