सुख तेरे मन में छुपा , बाहर मत तू खोज ।
सुविधाओं को त्याग कर,खुशी मना हर रोज ।।
अपनी फेसबुक में मैंने
दिनांक ०२ मई २०१५ को इस फोटो पर एक दोहा लिख कर मित्रों से अनुरोध किया था कि
दोहे में अपनी प्रतिक्रया डालें. मित्रों का सराहनीय सहयोग मिला. आइये आप भी इन
दोहों का आनंद लीजिये.
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अरुण कुमार निगम
मेरी फेसबुक से - चित्र एक-दोहे अनेक (श्रृंखला - १, दिनांक ०२ मई २०१५)
मित्रों इस चित्र को देख कर प्रतिक्रिया बॉक्स में एक दोहा पोस्ट कर , शीर्षक *चित्र एक-दोहे अनेक* को सार्थक करने में सहयोग प्रदान करें......
[चित्र मेरे पोते यश का है]
सुखसागर
की चाह में, व्यर्थ न समय गंवाय.
घर मे सरिता प्रेम की, मन निर्मल कर जाय....
घर मे सरिता प्रेम की, मन निर्मल कर जाय....
सोलह आने
सच कही , गुप्ता जी ने बात
घर में सरिता प्रेम की, करती सुख-बरसात ||
घर में सरिता प्रेम की, करती सुख-बरसात ||
मौसम गरमी
प्यार की;पानी हाथ उलीच
'यश 'झूलेगा पालना;दादा -दादी बीच
'यश 'झूलेगा पालना;दादा -दादी बीच
स्वागत है
आदरणीय सुशील यादव जी...........
जिसमें गरमी प्यार की, वह है शीतल झील |
नेह - बूँद से भर गये , आदरणीय सुशील ||
एक दोहा
यह भी..........
तन-मन को शीतल करे, बच्चों की मुस्कान
कलुष धुले पावन करे , श्रेष्ठ यही है स्नान
तन-मन को शीतल करे, बच्चों की मुस्कान
कलुष धुले पावन करे , श्रेष्ठ यही है स्नान
भैया; मन म कई ठन उपजत जही ...यदि लगे रहिबो तौ...बहुत सुंदर अऊ
सटीक जमत जात हे...अति सुंदर
बने
गोठियाये सूर्यकांत जी , फेर ........
उपजे तेला आन दे , हरियाही मन-खेत
बिन कविता के जिंदगी, लगय सहारा-रेत ||
उपजे तेला आन दे , हरियाही मन-खेत
बिन कविता के जिंदगी, लगय सहारा-रेत ||
Saurabh
Pandey
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छपक-छपक-छप-छापछा, छपक-छपक-छप-छाप
रोक न पायेंगे मुझे, दादा हों या बाप !!
छपक-छपक-छप-छापछा, छपक-छपक-छप-छाप
रोक न पायेंगे मुझे, दादा हों या बाप !!
स्वागत है
आदरणीय सौरभ भाई जी.......
अति अनुपम अनुप्रास की, छप-छप छोड़ें छाप
चुप - चुप - चुप हैं बाप जी, दादा भी चुपचाप ||
अति अनुपम अनुप्रास की, छप-छप छोड़ें छाप
चुप - चुप - चुप हैं बाप जी, दादा भी चुपचाप ||
Bargad ki chaya, joint family me
rahne me kitna maja aata hai. Ye usi ka namuna hai
प्रिय
मुकेश राठौर जी,
बरगद-छाया दुर्ग में, पोता कनाट-प्लेस
एक जून के बाद ही , लौटेगा इस देस ||
बरगद-छाया दुर्ग में, पोता कनाट-प्लेस
एक जून के बाद ही , लौटेगा इस देस ||
बालक को स्नान करते देख मन मेंआये भाव –
स्नान करे
वह हर्ष से, बालक एक अबोध
लगे चपल मन नयन से, आल्हादित सा बोध |
ठण्डा ठण्डा जल मिला, करता छपक छपाक
भरी शरारत आँख में, छोड़ रहा है छाप |
प्यार भरे लगते सभी, नटखट सा अंदाज,
याद करे सब कृष्ण को, देख शरारत आज |
लगे चपल मन नयन से, आल्हादित सा बोध |
ठण्डा ठण्डा जल मिला, करता छपक छपाक
भरी शरारत आँख में, छोड़ रहा है छाप |
प्यार भरे लगते सभी, नटखट सा अंदाज,
याद करे सब कृष्ण को, देख शरारत आज |
आदरणीय
लक्ष्मण लडिवाला जी, स्वागत है................
तीनों दोहे आपके , बिल्कुल खासमखास
शब्द-शब्द से हो रहा, बचपन का अहसास ||
तीनों दोहे आपके , बिल्कुल खासमखास
शब्द-शब्द से हो रहा, बचपन का अहसास ||
आदरणीय
लडिवाला जी, आपके प्रथम दोहे पर..........
श्री लडिवाला आपका , पाकर आशीर्वाद
चपल नयन से बाल मन, प्रकट करे आल्हाद |
श्री लडिवाला आपका , पाकर आशीर्वाद
चपल नयन से बाल मन, प्रकट करे आल्हाद |
आदरणीय
लडिवाला जी, आपके द्वितीय दोहे पर..........
शीतल-जल की मस्तियाँ, छप-छप छईं-छपाक
यही शरारत की उमर , छोड़े मन पर छाप ||
शीतल-जल की मस्तियाँ, छप-छप छईं-छपाक
यही शरारत की उमर , छोड़े मन पर छाप ||
आदरणीय
लडिवाला जी, आपके तृतीय दोहे पर..........
कान्हा लल्ला साँवरे , नटखट नंदकिशोर
करे शरारत नित्य पर कर दे भव्-विभोर ||
कान्हा लल्ला साँवरे , नटखट नंदकिशोर
करे शरारत नित्य पर कर दे भव्-विभोर ||
पानी है
अनमोल यह, बहे भला क्यूँ व्यर्थ।
यश का यह संदेश है, समझें इसका अर्थ।।
यश का यह संदेश है, समझें इसका अर्थ।।
स्वागत है
आदरणीय दिनेश गौतम जी,
श्री दिनेश गौतम कहें, तोल मोल के बोल
देता है सन्देश यश , पानी है अनमोल ||
श्री दिनेश गौतम कहें, तोल मोल के बोल
देता है सन्देश यश , पानी है अनमोल ||
नहाने का मजा तो बस,,गरमी में ही आए
ठंडा पानी डालो मम्मी , मुझे बहुत ही भाए
ठंडा पानी डालो मम्मी , मुझे बहुत ही भाए
येल्लो यश,
दादी का आशीर्वाद
आ गया.........
दादी का दोहा मिला , अनुशंसा के साथ
यश बोले मम्मी अभी, शुरू हुआ है बाथ ||
दादी का दोहा मिला , अनुशंसा के साथ
यश बोले मम्मी अभी, शुरू हुआ है बाथ ||
बचपन हबे
बड़ सुघ्घर, यश बेटा गा तोर।
नहावत देख बाल्टी म,आथे सुरता मोर ।।
नहावत देख बाल्टी म,आथे सुरता मोर ।।
सुवागत हे
आदरनीय नोखसिंह चंद्राकर जी......
सही कहे जी नोख सिंह , रहि-रहि सुरता आय
अपन-अपन लइकाइपन , कोन भला बिसराय ||
सही कहे जी नोख सिंह , रहि-रहि सुरता आय
अपन-अपन लइकाइपन , कोन भला बिसराय ||
तेरी इस मुस्कान में, सारे सुख का मेल,
जल में तू मैं भीगता , कैसा अदभुत खेल।
जल में तू मैं भीगता , कैसा अदभुत खेल।
आदरणीय
अशोक शर्मा जी........
स्निग्ध-मुग्ध मुस्कान से , मोती बनता स्वेद
फिर चुटकी में दूर हो , तू-मैं का हर भेद ||
स्निग्ध-मुग्ध मुस्कान से , मोती बनता स्वेद
फिर चुटकी में दूर हो , तू-मैं का हर भेद ||
निश्छल
बालक की अदा, मन सबका हर्षाय.
सबकी अपनी लेखनी, अनायास चल जाय....
अरुण भैया की सुंदर सोच...इसी बहाने विद्वजनों की सुंदर रचना पढ़ने को मिली.
सबकी अपनी लेखनी, अनायास चल जाय....
अरुण भैया की सुंदर सोच...इसी बहाने विद्वजनों की सुंदर रचना पढ़ने को मिली.
आदरणीय
सूर्यकांत जी, इसीलिये तो मुख्य दोहा लिखा है..........
सुख तेरे मन में छुपा , बाहर मत तू खोज ।
सुविधाओं को त्याग कर,खुशी मना हर रोज ।।
सुख तेरे मन में छुपा , बाहर मत तू खोज ।
सुविधाओं को त्याग कर,खुशी मना हर रोज ।।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (08-05-2015) को "गूगल ब्लॉगर में आयी समस्या लाखों ब्लॉग ख़तरे में" {चर्चा अंक - 1969} पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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जितना प्यारा बच्चा उतनी ही प्यारी रचनाएँ ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteसुख और सुविधाओं मेम जो फर्क कर सके
ReplyDeleteवही सच्चा सुख भोग सकता है.
बहुत खूब, बहुत ही अच्छे दोहे।
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