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Friday, May 1, 2015

1 मई मजदूर दिवस : सपना निगम














 रोजी रोटी की जुगाड़ में -चल पड़े हैं कमाने को
छोटा-बड़ा कोई काम मिले -इन हाथों के पैमाने को
 
हमको खुद पर नाज नहीँ-जीने का है अंदाज यही
जो मिल जाए रूखी-सूखी-पेट की आग बुझाने को
 
कल की फिकर कभी करते नही-बारिश धूप से डरते नही
फुटपाथ पर कटती हैं रातें-अगली अल सुबह जगाने को
 
आँखो में ख्वाब जगाये थे-जब गाँव छोड़कर आये थे
शहरों की भीड़ में खोए ऐसे-मिले धूल धुआँ ही खाने को
 
कहने को घर होता है प्यारा-झुग्गी में होता है गुजारा
हम मेहनतकश मजदूर चले-फिर औरों का घर बनाने को ।


सपना-निगम---------

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (02-05-2015) को "सारी दुनिया का बोझ हम उठाते हैं" (चर्चा अंक-1963) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    श्रमिक दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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