चादर सी ,चूनर सी-
चैत की चंदनिया
झांझर सी,झूमर सी - चैत की चंदनिया
महुआ की मधुता सी, मनभाती-मदमाती
छिटके गुलमोहर सी - चैत की चंदनिया
अनपढ़ - अनाड़ी सी ,सल्फी सी-ताड़ी-सी
मादक-सी,मनहर सी - चैत की चंदनिया
अधपक्की इमली सी ,खटमिट्ठी -खटमिट्ठी
सरसों सी,सुन्दर सी - चैत की चंदनिया
मनभाये बैरी सी , अमुआ की कैरी सी
टेसू सी ,सेमर सी - चैत की चंदनिया
कोयल की कुहु-कुहु सी ,पपीहे की पीहु-पीहु सी
उड़ते कबूतर सी - चैत की चंदनिया
सतरंगी सपनों सी, दूर बसे अपनो सी
प्रिय की धरोहर सी - चैत की चंदनिया
मंगतू की मेहनत सी, चैतू की चाहत सी
गेहूँ सी,अरहर सी - चैत की चंदनिया
हल्बी सी,गोंड़ी सी, छत्तीसगढ़ी बोली सी
भोले से बस्तर सी - चैत की चंदनिया
ज्योति की शक्ति सी,भक्तों की भक्ति सी
माता के मंदिर सी - चैत की चंदनिया
झांझर सी,झूमर सी - चैत की चंदनिया
महुआ की मधुता सी, मनभाती-मदमाती
छिटके गुलमोहर सी - चैत की चंदनिया
अनपढ़ - अनाड़ी सी ,सल्फी सी-ताड़ी-सी
मादक-सी,मनहर सी - चैत की चंदनिया
अधपक्की इमली सी ,खटमिट्ठी -खटमिट्ठी
सरसों सी,सुन्दर सी - चैत की चंदनिया
मनभाये बैरी सी , अमुआ की कैरी सी
टेसू सी ,सेमर सी - चैत की चंदनिया
कोयल की कुहु-कुहु सी ,पपीहे की पीहु-पीहु सी
उड़ते कबूतर सी - चैत की चंदनिया
सतरंगी सपनों सी, दूर बसे अपनो सी
प्रिय की धरोहर सी - चैत की चंदनिया
मंगतू की मेहनत सी, चैतू की चाहत सी
गेहूँ सी,अरहर सी - चैत की चंदनिया
हल्बी सी,गोंड़ी सी, छत्तीसगढ़ी बोली सी
भोले से बस्तर सी - चैत की चंदनिया
ज्योति की शक्ति सी,भक्तों की भक्ति सी
माता के मंदिर सी - चैत की चंदनिया
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
-सुंदर रचना...
ReplyDeleteआपने लिखा....
मैंने भी पढ़ा...
हमारा प्रयास हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना...
दिनांक 17/04/ 2014 की
नयी पुरानी हलचल [हिंदी ब्लौग का एकमंच] पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...
आप भी आना...औरों को बतलाना...हलचल में और भी बहुत कुछ है...
हलचल में सभी का स्वागत है...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (16-04-2014) को गिरिडीह लोकसभा में रविकर पीठासीन पदाधिकारी-चर्चा मंच 1584 में "अद्यतन लिंक" पर भी है।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चैत की चाँदनी अपनी सारी भंगिमाओं में छिटका रही है - कवि की लेखनी का कमाल !
ReplyDeleteवाह, बहुत खूब, रंग अपनी पूर्णता में दिखें इस बार।
ReplyDeleteभावपूर्ण प्रस्तुति |
ReplyDeleteचैत कि चंदनिया का पूरा रँग बिखेर दिया आपने इस शब्दों में ...
ReplyDeleteलाजवाब अरुण जी ... बहुत खूब ...
छत्तीसगढ़िया डोली मा गेहूं चन्ना और चाउर अब कहाँ, कटोरा हर चाहा के चम्मच होगे हे, खेतिहार महुआ बेचत है, और बाबा महुए का रस.....
ReplyDeleteज्योति की शक्ति सी,भक्तों की भक्ति सी
ReplyDeleteमाता के मंदिर सी - चैत की चंदनिया....
बहुत उम्दा मनभावन प्रस्तुति ...!
RECENT POST - आज चली कुछ ऐसी बातें.
चैत कि चंदनिया का कहना..बहुत सुन्दर
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