“हम सुधरे तो युग सुधरेगा”
आदिकाल के मानव ने था , रखा सभ्यता के पथ पाँव
और बाँटते रहा हमेशा , अपनी नव-पीढ़ी को छाँव
कालान्तर में वही सभ्यता , चरम -शिखर पर पहुँची आज
आओ हम मूल्यांकन कर लें,कितना विकसित हुआ समाज
नैतिकता को लील रहे हैं, कितने चैनल औ’ चलचित्र
दूषित वातावरण “पीढ़ियाँ”
, कैसे खुद को रखें पवित्र
कौन दिशा सभ्यता चली है,यह उन्नति है या अवसान
बलात्कार को न्यौता देते ,खुद ही उत्तेजक परिधान
मेहनत की लुट रही कमाई , फूल रहा ‘सट्टा – बाजार’
धन-दौलत को ‘जुआ’ खा रहा, मदिरा लूट रही घर-बार
‘कर’ की लालच जोंक सरीखी,नशा कर
रहा सेहत नाश
“सत्यानाशी” “सत्ताधारी” , धरा छोड़ देखें आकाश
यदाकदा अब भी होते हैं,इस युग
में भी बाल विवाह
ऐसे माता - पिता अशिक्षित,
या होते
हैं लापरवाह
मार रहे कन्या-भ्रूणों को ,
वंश-वृद्धि की मन में चाह
पढ़े - लिखे ऐसे मूर्खों को ,
बोलो कौन दिखाये राह
कहीं चोरियाँ कहीं डकैती , कहीं राह में कटती जेब
कहीं अपहरण कहीं फिरौती , कहीं
झूठ है कहीं फरेब
कहीं बाल-श्रमिकों का शोषण, कहीं
भिखारी मांगें भीख
सदी यातना भुगत रही है , सिसक
रही है हर तारीख
किसको जिम्मेवार बतायें , किसके सर पर डालें दोष
किसके सम्मुख करें
प्रदर्शन,प्रकट करें हम किस पर रोष
दोषारोपण छोड़ चलो हम, मिलजुल कर
कर लें शुरुवात
“हम सुधरे तो युग सुधरेगा” ,
सोलह आने सच्ची बात
नैतिक शिक्षा पर बल देकर ,
बच्चों में डालें संस्कार
हंसों की पहचान करें हम , और
चुनें उत्तम सरकार
त्याग सभ्यता पश्चिम की अब, सीखें
बस पूरब का ज्ञान
फिर सोने की चिड़िया होगा, अपना
भारत देश महान
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (04-02-2014) को कैसे मेरा हिन्दुस्तान लिखूँ...चर्चा अंक:1513 में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
बसंतपंचमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अंतिम पंक्तियों पर कुछ कहना चाहती है
ReplyDeleteआप को और पूरे परिवार को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं...!!
@ संजय भास्कर
सच है हम सुधरेंगे तो युग सुधरेगा .... बहुत सुंदर प्रस्तुति ....
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, माँ सरस्वती पूजा हार्दिक मंगलकामनाएँ !
ReplyDeleteआल्हा छंद में अधिकतर वीर रस की रचनाएँ पढ़ीं थीं ,यह भी अच्छा प्रयोग है:
ReplyDeleteवसंत की शुभ कामनाएँ !
कल 06/02/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
आल्हा छंद में रची बहुत ही सुंदर प्रस्तुति...!बधाई
ReplyDeleteबसंतपंचमी की हार्दिक शुभकामनाऐ ...
RECENT POST-: बसंत ने अभी रूप संवारा नहीं है