(चित्र गूगल से साभार)
मंडी की छत पर चढ़ा , मंद-मंद मुस्काय
ढाई आखर प्याज का, सबको रहा रुलाय ||
प्यार जताना बाद में , ओ मेरे सरताज
पहले लेकर आइये, मेरी खातिर प्याज ||
बदल गये हैं देखिये
, गोरी के अंदाज
भाव दिखाये इस तरह ,ज्यों दिखलाये प्याज ||
तरकारी बिन प्याज की, ज्यों विधवा की मांग
दीवाली बिन दीप
की या होली
बिन भांग ||
महँगाई के दौर में ,हो सजनी नाराज
साजन जी ले आइये, झटपट थोड़े प्याज ||
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर,
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल गुरुवार (29-08-2013) को "ब्लॉग प्रसारण : शतकीय अंक" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.
ReplyDeleteदोहे सुंदर रच दिये , प्याज़ रही शर्माय ।
ReplyDeleteसजनी गर्वित हो गईं , पति प्याज़ घर लाय ।
:):) बहुत सुंदर दोहे । ये ढाई आखर ज़बरदस्त रहे ...
अंत में आखिर प्याज सबको रुला ही दिया... अच्छी रचना ...
ReplyDeleteबहुत खूब , शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें
वाह अरुण जी ... सामयिक प्रहार करना कोई आपसे सीखे ... तीखी कलम को सलाम ...
ReplyDeleteबहुत खुब .. सामयिक प्रस्तुति .. चलो ये एक अ्च्छी बात है जहां प्याज रुला रहा है ..आपकी रचनाये कम से कम कुछ सुकुनं ओर हसी तो तो दे रही दोस्तो को .. शुभ कामनाये ..:)
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ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना
latest postएक बार फिर आ जाओ कृष्ण।
प्याज के भी दिन फिरे, कवि की लेखनी ने गाया !
ReplyDeleteक्या बात वाह!
ReplyDeleteआपकी यह रचना आज रविवार (15 -09 -2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें
ReplyDeleteवाह क्या खूब प्याजी दोहे रचे हैं आपने आदरणीय गुरुदेव श्री आनंद आ गया और आंसू भी आ गए प्याज लग गई आँखों में हार्दिक बधाई स्वीकारें इस सुन्दर प्याजी दोहावली पर.
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