(चित्र ओपन बुक्स ऑन लाइन से साभार)
आल्हा छंद (16 और 15 मात्राओं पर यति. अंत में गुरु-लघु)
बीते कल ने आने वाले , कल का थामा झुक कर हाथ
और कहा कानों में चुपके , चलना सदा समय के साथ ||
सत्-पथ पर पग नहीं धरा औ’ कदम चूम लेती है जीत
अधर प्रकम्पित हुये नहीं औ , बात समझ लेती है प्रीत ||
है स्पर्शों की भाषा न्यारी ,
जाने सिखलाता है कौन
बिन उच्चारण बिना शब्द के, मुखरित हो जाता है मौन ||
कहें झुर्रियाँ हमें पढ़ो तो , जानोगे अपना इतिहास
नहीं भटकना तुम पाने को , कस्तूरी
की मधुर सुवास ||
बड़े - बुजुर्गों के साये में , शैशव पाता है संस्कार
जो आया की गोद पला हो , वह क्या जाने लाड़-दुलार ||
बूढ़े पर हैं अनुभव
धारे, छू कर पा
लो उच्च उड़ान
छाँव इन्हीं की सारे
तीरथ , इनमें ही
सारे भगवान ||
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)
भावों को बहुत सुन्दरता से पिरोया है आपने इस रचना में. बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteबढ़िया रचना
ReplyDeleteआभार भाई जी-
है स्पर्शों की भाषा न्यारी , जाने सिखलाता है कौन
ReplyDeleteबिन उच्चारण बिना शब्द के, मुखरित हो जाता है मौन ||
...वाह! लाज़वाब अभिव्यक्ति...
गहरी और सार्थक अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन और सार्थक भाव लिए रचना...
ReplyDelete:-)
बहुत सुंदर भाव लिए सार्थक रचना !
ReplyDeleteनई रचना : सुधि नहि आवत.( विरह गीत )
बड़े - बुजुर्गों के साये में , शैशव पाता है संस्कार
ReplyDeleteजो आया की गोद पला हो , वह क्या जाने लाड़-दुलार ||
आनंद क्या परमानंद की धार बहा दी आपने।
ReplyDeleteबड़े - बुजुर्गों के साये में , शैशव पाता है संस्कार
जो आया की गोद पला हो , वह क्या जाने लाड़-दुलार ||
आनंद क्या परमानंद की धार बहा दी आपने।
हमारे समय का यह एक बड़ा विद्रूप है।
बीते कल ने आने वाले , कल का थामा झुक कर हाथ
ReplyDeleteऔर कहा कानों में चुपके , चलना सदा समय के साथ ||
बहुत सुन्दर भाव ,सुन्दर रचना
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आदरणीय निगम सर,
ReplyDeleteसुन्दर रचना के लिए बधाई ।
बूढ़े पर हैं अनुभव धारे, छू कर पा लो उच्च उड़ान
ReplyDeleteछाँव इन्हीं की सारे तीरथ , इनमें ही सारे भगवान
.........बहुत ही बेहतरीन और सार्थक भाव लिए रचना..
कहें झुर्रियाँ हमें पढ़ो तो , जानोगे अपना इतिहास
ReplyDeleteनहीं भटकना तुम पाने को , कस्तूरी की मधुर सुवास || pate ki bat ...