[अतिशयोक्ति अलंकार अनिवार्य]
देख रहा क्या आँखें फाड़े , ओ मानव मूरख नादान
मैं ही तो तेरा सावन हूँ , आज मुझे तू ले पहचान ||
मौन खड़ा हूँ लेकिन कल तक,पवन किया करती थी शोर
शुरू नहीं होता था सावन, ,बादल देते थे झकझोर ||
उधर चमक ना पाती बिजली, इधर नाचते वन में मोर
मोर लापता वन गायब अब, कहाँ ले गए काले चोर ||
दादुर और पपीहे गायब, झींगुर भी भूला है तान
टर्र-टर्र वाले मेंढक भी, बाँध रहे अपना सामान ||
बरखा बरसी अभी नहीं थी, आती थी नदियों में बाढ़
पगडण्डी-कीचड़ का रिश्ता, इस मौसम में खूब प्रगाढ़ ||
मैं लाता हूँ नागपंचमी , तू डसता है बनकर नाग
मैं ही लाता हूँ हरियाली, जिसे जलाता तू बन आग ||
चोट लगी वृक्षों को जब भी , होता घायल यह आकाश
रो न सकी हैं आँखें इसकी , बादल इतना हुआ हताश ||
आने वाले कल से छीनी , तू ने कलसे की हर प्यास
आज मनाता जल से जलसे, कल की पीढ़ी खड़ी उदास ||
कौन करेगा अर्पण-तर्पण , कौन करेगा तुझको याद
पीढ़ी ही जब नहीं रहेगी, कौन सुनेगा तब फरियाद ||
तेरे हित में बोल रहा हूँ, कर्मों को पावन कर आज
अहम् त्याग कर फिर से मानव,सावन को सावन कर आज ||
अरूण कुमार निगम
आदित्य नगर ,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट ,विजय नगर,जबलपुर,मध्य प्रदेश
बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर और सार्थक प्रस्तुती,आभार।
ReplyDeleteचोट लगी वृक्षों को जब भी , होता घायल यह आकाश
ReplyDeleteरो न सकी हैं आँखें इसकी , बादल इतना हुआ हताश ||
वाह..
बहुत सुन्दर..
अनु
वाह बहुत सुन्दर और सार्थक रचना..
ReplyDeleteवाह .... सावन ने सच ही सारी तस्वीर रख दी है ...
ReplyDeleteवाह! वाकई ख़ूबसूरत कविता है..
ReplyDeleteऐसी मस्त लय आजकल कविताओं में कम ही देखने को मिलती है..
आने वाले कल से छीनी , तू ने कलसे की हर प्यास
ReplyDeleteआज मनाता जल से जलसे,कल की पीढ़ी खड़ी उदास ||
वाह !!! बहुत सुंदर सावन की तस्वीर आल्हा छंद दवारा पेश की,,बधाई,,,अरुण जी,,
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बहुत सुन्दर और सार्थक .....
ReplyDeletekhubsurat chand....
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव और खुबसूरत प्रस्तुति !!
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