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Saturday, March 16, 2013

पाँच रंग



लाल
रक्त  बहाता  आदमी      , करे  धरा को लाल |
मृत्यु बाँटते फिर रहा,यह कलियुग का काल ||

नीला
गौर वर्ण नीला  हुआ   ,   बाबुल है बेहाल |
बड़े जतन गत वर्ष ही,भेजा था ससुराल ||

पीला
मुखड़ा पीला पड़ गया, आँसू ठहरे गाल |
माँ कैसे  देखे भला   ,  बेटी का कंकाल ||

हरा
हरा-भरा संसार था  , राख कर गई ज्वाल |
हरा रही सुख-प्रेम को, चाँदी की टकसाल ||

गुलाबी
कभी गुलाबी नैन थे ,श्वेत पुतलियाँ आज |
इतराओ मत भूल कर , यौवन धोखेबाज ||


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)

18 comments:

  1. बहुत सुन्दर हैं पाँचों रंग !

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  2. पाँचों रंगों में सटीक चित्रण,आभार.

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  3. आप की ये सुंदर रचना शुकरवार यानी 22-03-2013 की नई पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है...
    आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस की शोभा बढ़ाएं।
    आप के सुझावों का स्वागत है। आप से मेरा निवेदन है कि आप भी इस हलचल में आकर इसकी शोभा बढ़ाएं...
    सूचनार्थ।

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  4. बहुत बढ़िया रंग-
    शुभकामनायें आदरणीय-

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  5. रंगों का सुन्दर विवेचन अरुण जी , हमेश की तरह बेहतरीन प्रस्तुति

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  6. हर रंग को लाजवाब ढंग से रंगा है आपने
    सादर !

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  7. सच निसार संसार में सभी रंगों के मायने समय के साथ बदल जाते है ..फिर भी हम इंसान जाने किस गुमां में जीते हैं ...
    बहुत बढ़िया ..

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  8. बहुत उम्दा हर रंगों के अलग अलग भाव लिए लाजबाब दोहे,,,,बधाई अरुण जी,,
    Recent Post: सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार,

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  9. वाह ..... सत्य को परिभाषित करते रंगों से सजी दोहावली के लिए बहुत बहुत साधुवाद आपको माननीय अरुण कुमार निगम जी

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  10. वाह आदरणीय गुरुदेव श्री वाह इतना सुन्दर तो रंगों का रंग भी जितनी सुन्दर आपकी प्रस्तुतिकरण है. दिन की शुरुआत बहुत ही अच्छी हुई वाह मज़ा आ गया हार्दिक बधाई स्वीकारें

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  11. आलू सब साक साजे बैगन बेगुनी गिन ।
    आम कहँ सब फलराजे पर मिलत दिवस तीन ॥

    भावार्थ: --
    आलू सभी शाक में लगता है बैगन में कोई गुन नहीं है
    (फिर भी इस के सिर पर ताज सजा है ) आम को सब
    फल का राजा कहते है, किन्तु तीन मास ही फलता है ॥
    अर्थात:--"गुणों की गणना स्वरूप से नहीं, अपितु चरित्र से होती है"

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  12. कंठ कटि कंचन कर एक नारंगी सी नार ।
    उद बाहनु उदक हर उद बिंदु उदकाति चली ॥

    भावार्थ : --
    स्वर्ण आभूषण से सुसज्जित एक नारंगी वर्ण की नारी जलपात्र में
    जल धारण कर उसकी बूंदों को फैलाती चल रही है ॥
    अर्थात : -- "सुन्दरता तो सर्वत्र व्याप्त है, केवल दृष्टि होनी चाहिए"

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  13. पांचों रंगों से बहुत सुंदर चित्रण खींचा है आपने समाज का बिलकुल सटीक प्रस्तुति

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  14. आज के हालात और रंगों की बेहतर व्याख्या ...

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