बालश्रमिक को देखकर ,मन को लागे ठेस
बचपन बँधुआ हो गया , देहरी भइ बिदेस
देहरी भइ बिदेस , भूलता खेल –खिलौने
छोटा - सा मजदूर , दाम भी औने – पौने
भेजे शाला कौन ? दुलारे कर्म–पथिक को
मन को लागे ठेस, देखकर बालश्रमिक को ||
[कुण्डलिया छंद – इसमें छ: पंक्तियाँ होती हैं . प्रथम शब्द ही अंतिम शब्द होता है. शुरु की दो पंक्तियाँ दोहा होती हैं अर्थात 13 ,11 मात्राएँ .अंत में एक गुरु और एक लघु.
अंतिम चार पंक्तियाँ रोला होती हैं अर्थात 11 ,13 मात्राएँ. दोहे का अंतिम चरण ही रोले का प्रथम चरण होता है .]
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर , जबलपुर (म.प्र.)
कल रोटी पाया नहीं, केवल मिड-डे मील ।
ReplyDeleteबापू-दारुबाज को, दारु लेती लील ।
दारु लेती लील, नोचते माँ को बच्चे ।
समझदार यह एक, शेष तो बेहद कच्चे ।
छोड़ मदरसा भाग, प्लेट धोवे इक होटल ।
जान बचा ले आज, सँवारे तब ना वह कल ।
आदरणीय प्रस्तुत है "कवित्त"वर्णात्मक छंद है इसमें चार चरण होते है प्रत्येक चरण में ८+८+८+७ वर्ण है अंत में प्रत्येक चरण में अंतिम वर्ण गुरु होता है
Deleteअपराध नहीं बाल श्रम है ये शिक्षा भाई
संवेदनशीलता किसने जतलाई है|
राजनितिक आह ने विपदा में डाल दिया
घर के चिराग यहाँ रौशनी जलाई है||
राम जी के श्रम बल ताड़का का बध हुआ
संघर्ष की शुरुवात हमें दिखलाई है|
श्रम एक बल है अनुभव से भरने का
बालपन के श्रम ने महानता पाई है||
हालत अति चिंताजनक,दिशा दिखाए कौन
ReplyDeleteप्रश्न बड़ा खुलकर खड़ा,दसों दिशायें मौन
दसों दिशायें मौन , यही वो नौनिहाल हैं
जिसके काँधे रखा,सुनहरा कल विशाल है
व्यर्थ बिखर ना जाय,कीमती है यह दौलत
मिलजुल करें विचार ,सुधारें कैसे हालत ||
बाल श्रमिक को देखकर, न हो भाई उदास
Deleteबैठा है इस श्रमिक में,छुप कर हिंदुस्थान
भूख कराती काम है ,कैसे जाएँ स्कूल
ReplyDeleteसबसे पहले उदर है , कैसे जाएँ भूल ?
बाल श्रमिक पर बहुत अच्छी कुंडली ॥ ठेस तो लगती है पर पहले जीवन है फिर बाकी कुछ चीज़।
बाल श्रमिक से हि निकले,लिंकन जैसे मान
Deleteदेगा अनुभव श्रम काज, सीखे बालक ज्ञान
नाता रोटी-भूख का , क्या-क्या ना करवाय
Deleteशाला पोथी बालपन, पल-पल फिसला जाय
पल-पल फिसला जाय,लौटकर फिर ना आए
दो पाटन के बीच , उमरिया पिसती जाए
बाट जोहते आय ,कहीं से भाग्य - विधाता
शाला - पोथी संग , जोड़ दे अपना नाता ||
आभार आदरणीया..........
क्या पड़ता है फर्क की, बालक करते काम
Deleteपहले गुरुकुल साधना,श्रम होता था दाम
नाता रोटी भूख का,जटिल किया है प्रश्न
Deleteबालक श्रम करता हुवा, मना रहा है जश्न
मना रहा है जश्न,खुशी उसके गालों पर
घर की भूख मिटाय,खुशी महिनो सालों की
यह भी है बलिदान,खुशी इसमें वह पाता
नन्हे का यह रूप,भूख का श्रम से नाता
भावमय करते शब्द
ReplyDeleteसशक्त अभिव्यक्ति ।
बेहतरीन कुण्डलियाँ बहुत-२ बधाई
ReplyDeleteप्रथम पूरती पेट की, बिन इसके पगलाय|
ReplyDeleteहाथ पैर मारे बिना, कैसे जीव अघाय |
कैसे जीव अघाय, भजन भी हो नहिं पावे |
भूखा बच्चा विकल, मदरसा कैसे जावे |
बिना किये कुछ काम, करोड़ों खाय मूरती |
किन्तु करोड़ों बाल, होय ना प्रथम पूरती ||
क्षुधा पूर्ति क्या सिर्फ है ,जीवन का उद्देश्य
Deleteफिर तो देश समाज का ,गठन है निरुद्देश्य
गठन है निरुद्देश्य, सबल के मन है दुविधा
समझें यदि दायित्व,मिलेगी सबको सुविधा
नहीं असम्भव काज , करें समवेत प्रतिज्ञा
जीवन का उद्देश्य ,सिर्फ है क्षुधा पूर्ति क्या ?
पेट बिन जब नर बना,सोता था दिन रात
Deleteब्रम्हा जी भी डर गए,क्यों ये कृति अनाथ
क्यों ये कृति अनाथ,डरे ब्रम्हा निरमाता
डाला उसमें पेट ,भूख से जब हो नाता
भागा करने काम ,ये ज्वाला भूख समेट
बनी सृष्टि सार्थक,उद्देश्य जीवन का पेट
सारी प्लेटें थालियाँ, करता बढ़िया साफ़ |
ReplyDeleteबाल श्रमिक के नियंता, करना हमको माफ़ |
करना हमको माफ़, सुबह में चाय समोसे |
फिर दुपहर में भात, रात में राम भरोसे |
छोटे छोटे हाथ, माथ पर बोझा भारी |
रूपये रहा कमाय, खरीदू साड़ी सारी ||
चाय समोसे भात तक,ना सिमटी है बात
Deleteघिर जाते दुर्व्यसन में , गहरी सोचें तात्
गहरी सोचें तात् , तँबाखू दारू बीड़ी
लील रही है आज , देश की भावी पीढ़ी
धरे हाथ में हाथ , न बैठें राम भरोसे
महँगे ना पड़ जायँ ,कहीं ये चाय समोसे |
भावपूर्ण सटीक कुण्डलियाँ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक कुण्डलियाँ....
ReplyDeleteसादर
अनु
खाने को रोटी नहीं
ReplyDeleteना तन पे कपडा - फिर कैसा स्वास्थ्य दिवस !
श्रम करे नन्हीं उम्र
2 पैसे की प्रत्याशा में - कैसी समानता !
खाने को रोटी नहीं ,ना तन पर परिधान
Deleteबाल श्रमिक के वास्ते ,कोई नहीं मकान
कोई नहीं मकान, स्वास्थ्य है राम भरोसे
नन्हीं कोमल उम्र,भला किसको अब कोसे
हुई योजना ध्वस्त , कागजी कोरी खोटी
ना तन पर परिधान,न ही खाने को रोटी |
तुलसी दास जी कह गए, लाख टेक की बात
Deleteचिंता से मर जात है, ये मानव की जात
तुलसी :- मुर्दन को भी देत है,कपड़न लत्तन आग
जिन्दा नर चिंता करे वह है बड़ा अभाग
बालक श्रम है कर रहा,जाने उसका मूल
पढ़ने में भी श्रम लगे,क्यों जाते हो भूल
शिक्षा के अधिकार की, उड़ी धज्जियां मान |
ReplyDeleteकान्वेंट में इण्डिया, शाला हिन्दुस्तान |
शाला हिन्दुस्तान, नक्सली रहे ठहरते |
या तो गुरु-घंटाल, बैठ बेगारी करते |
केवल मिड डे मील, समझकर लेते भिक्षा |
विश्व संगठन आज, गिने बच्चों की शिक्षा ||
अपने जीवन में हुई , दोहरायें ना भूल
Deleteबच्चों को तो भेजिये , पढ़ने को स्कूल
पढ़ने को स्कूल, हुई क्यों मन में दुविधा
सहिये थोड़ी आप,इनकी खातिर असुविधा
निश्चित मानें बात ,पूर्ण होंगे सब सपने
दोहरायें ना भूल , हुई जीवन में अपने |
कहीं चूड़ियाँ लाख की, कहीं बगीचे जाय |
ReplyDeleteकहीं कारपेट बन रहे, बीड़ी कहीं बनाय |
बीड़ी कहीं बनाय, आय में करे इजाफा |
सत्ता का सब स्वांग, देखकर भांप लिफाफा |
होमवर्क को भूल, घरों में तले पूड़ियाँ |
चौका बर्तन करे, टूटती नहीं चूड़ियाँ ||
सारी उम्र श्रम के लिये,बचपन को तो बख्स
Deleteपढ़ा लिखा बलवान हो ,हर समाज हर शख्स
हर समाज हर शख्स , तभी तो देश बढ़ेगा
नये - नये आयाम , विश्व में तभी गढ़ेगा
बाल - श्रमिक ना बने , करें ऐसी तैयारी
बचपन को तो बख्स,उम्र श्रम के लिये सारी |
बढ़िया रचना किए लिए बधाई |
ReplyDeleteआशा
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ReplyDeleteमज़बूरी के नाम पर,दुह गया हिंदुस्थान
Deleteजिसको मौका मिल गया, मज़बूरी का नाम
बंधुवा बचपन ना करें,दे खुल के आजाद
आगे चलकर देखना, बचपन हो आबाद
हर पल हर क्षण शिकछिका,देती नित नित ज्ञान
श्रम इसमें भी साध है,रखियो इतना ध्यान
बालश्रमिक मिल जायगें,गली गली चहु ओर
Deleteमजबूरी है भूख की, नही उन्हें कहि ठौर
नही उन्हें कहि ठौर,होटल में बर्तन धोते
नही मिला यदि काम,मिलेगे कार पोछते
देख धीर ये हाल,मिलता क्या पारिश्रामिक
कैसे हो ये दूर हिन्दुस्ता से बाल श्रमिक,,,,,
बाल श्रम का कारुणिक मानवीकरण .
ReplyDeleteबालश्रमिक को देखकर ,मन को लागे ठेस
बचपन बँधुआ हो गया , देहरी भइ बिदेस
देहरी भइ बिदेस , भूलता खेल –खिलौने
छोटा - सा मजदूर , दाम भी औने – पौने
भेजे शाला कौन ? दुलारे कर्म–पथिक को
मन को लागे ठेस, देखकर बालश्रमिक को ||
कहीं चूड़ियाँ लाख की, कहीं बगीचे जाय |
कहीं कारपेट बन रहे, बीड़ी कहीं बनाय |
बीड़ी कहीं बनाय, आय में करे इजाफा |
सत्ता का सब स्वांग, देखकर भांप लिफाफा |
होमवर्क को भूल, घरों में तले पूड़ियाँ |
चौका बर्तन करे, टूटती नहीं चूड़ियाँ ||
इन दोनों महारथियों ने (रविकर जी ,अरुण निगम जी ने )बाल श्रम के पूरे विस्तृत क्षेत्र की पूर्ण पड़ताल की है इस विमर्श में .
छोटी सी गाड़ी लुढ़कती जाए ,
यही बाल श्रमिक कहलाए .
घरु रामू मल्टीटासकर है ,
कहीं पर है रामू ,कहीं बहादुर .
भाई साहब बाल श्रम पर एक सार्थक विमर्श चलाया है आप महानुभावों ने
छोटी सी गाड़ी बनी, कहीं लुढकती जाय
Deleteबाल श्रमिक के रूप में,बचपन रहा गुमाय
बचपन रहा गुमाय, रामू राजु क्यों बनकर
हाथी कहीं चढाय,बहादुर बैठा सजकर
बच्चों के ये रूप, खुजाते नेता दाड़ी
अदभुत कर्म दिखाय,बड़ी छोटी सी गाड़ी
बचपन बंधुआ हो गया देहरी भई कता है ।विदेस । सटीक वर्णन ।
ReplyDeleteकूडा बीनते । चाय की दुकान पर कप धोते, चूडियां बनाते, खेतों में काम करते बाजारों में सामान उठवाने की मनुहार करते ये बाल श्रमिक आपको जगह जगह मिल जायेंगे । अनिवार्य शिक्षा और वह भी कम लागत पर कुछ हल निकाल सकता है ।
नौनिहाल मजबूरी में काम करें,न जाने कितनी यातनाएं भोगी|
ReplyDeleteजिस देश का बचपन भूखा हो.फिर उसकी जवानी क्या होगी|
भेजे शाला कौन ? दुलारे कर्मपथिक को
ReplyDeleteमन को लागे ठेस, देखकर बालश्रमिक को ।
आपकी संवेदना बालश्रमिक की व्यथा के साथ शब्दों में रची-बसी है।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति!
ReplyDeleteबहुत सार्थक और सटीक प्रस्तुति...
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