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Tuesday, November 29, 2011

मटर दिलों में प्रेम बढ़ाता......



मटर, भाव की हद को चूमें
मटरगश्ती कर मद में झूमे.

मटक-मटक कर है मदमाता
जेब को  मेरी रोज चिढ़ाता.

मटर –फली  के जलवे देखो
सिर्फ देख कर  आँखें सेंको.

स्टेटस  दिखलाना  है तो
पर्स  निकालो , पैसे फेंको.

दुनियाँ का दस्तूर रहा है
जो भी मद में चूर रहा है.

आज चढ़ा, कल नीचे आया
ताज हमेशा पहन न पाया.

नया-नया है, अभी अड़ा है
लेकिन यह स्वादिष्ट बड़ा है.

मिलनसार भी है यह भारी
गले लगाती हर तरकारी.

चाट, कोफ्ते या बिरयानी
मटर पराठे !! मुँह में पानी.

बैगन –मटर -मसाला भाये
मटर -पनीरी मन ललचाये.

भाँति-भाँति के इसके व्यंजन
इसका भी इतिहास पुरातन.

रूठे बीबी , खौफ न खाओ
महँगी मटर फली ले जाओ.

मुस्काएगी -  प्यार जगेगा
सौदा सस्ता बहुत लगेगा.

फल्ली में दाने संग रहते
सुख-दुख साथ-साथ हैं सहते.

मटर दिलों में प्रेम बढ़ाता
मिलनसार बनना सिखलाता.

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग ( छत्तीसगढ़ )
विजय नगर , जबलपुर ( मध्य प्रदेश )

18 comments:

  1. यह भी खूब रही।
    जायकेदार रचना के लिए बधाई।

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  2. बधाई! मटर की महिमा प्यारी भी और न्यारी भी....

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  3. वाह जी क्या बात काही है आपने बहुत खूब ....समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है ...

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  4. वाह!!! बहुत बहुत बधाई ||


    सुन्दर प्रस्तुति ||

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  5. आपने आज बेहद ही ज्ञानी शब्दों से हमें बताया है। वैसे मैं मटर कम ही खाता हूँ, लेकिन लगती जोरदार है।

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  6. सरल और सुन्दर रचना.

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  7. वाह ...बहुत ही जायकेदार है

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  8. हर वस्तु में कोई न कोई सीख होती है... बस दृष्टि होनी चाहिए!
    आपका अवलोकन बहुत सुन्दर है!

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  9. अपने चर्चा मंच पर, कुछ लिंकों की धूम।
    अपने चिट्ठे के लिए, उपवन में लो घूम।।

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  10. आपने तो मटर के माध्यम से बहुत सुन्दर गुणगान कर दिया।

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  11. बहुत स्वादिष्ट रचना...

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  12. वाह आदरणीय अरुण भईया....क्या बात है... मजा आ गया...

    मेथी गयी मटर है आया| हरियल, मीठा रूप दिखाया||
    कल किसकी बारी आयेगी| क्या मिर्ची सी सी गायेगी||
    या पालक या फिर चौलाई, भिन्डी ने क्या भेष बनाई||
    पका टमाटर नाज दिखाए| शलजम गाजर संग इठलाये||
    अजी उठा लो टिंडे को भी| सब के सब ना बोलो गोभी||
    बंधु अरुण जी खूब निभायें| नितनव सब्जी लेकर आयें||

    अरुण काव्य आँगन में, हरियाली का राज|
    सब्जियों के गीतों पर, दाम बेसुरा साज ||


    सादर बधाई...

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  13. स्वाद से भरा, मसालेदार और ज़ायकेदार रचना ! नये अंदाज़ के साथ बेहद ख़ूबसूरत रचना!

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  14. लगता है मटर अब जरूर और महंगी हो जायेगी.
    आपकी सुन्दर प्रस्तुति हर किसी को मटर खाने का चाव बढ़ा देगी.
    बाजार में आग लग जायेगी जी.

    अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,अरुण भाई.

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  15. बहुत सुंदर मटर पुराण,..अगली पोस्ट का इंतजार ....

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  16. स्वाद आ गया इस रचना को पढ़ के ... खेत खलिहानो से निकल कर जेब से होते रसोई तक पहुँच गई ...

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