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Wednesday, November 23, 2011

माया......


कुण्ठाएं तो अमरबेल सी
लिपट रहीं
मायावी इच्छाएं उर में
सिमट रहीं.
रीझ गया मन इंद्रजाल पर
यदि सखा !
प्रज्ञा हो अस्तित्वहीन
खो जाएगी.

भाग्य मृगतृष्णा-सा
सत्य कर्म है
तीव्र प्रवाहित जीवन का
प्रीत धर्म है .
लालच , ईर्ष्या , द्वेष
सँहारे नहीं गये तो
मीत ! सृष्टि अनुरक्तिहीन
हो जाएगी.

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़ )
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)

17 comments:

  1. लालच , ईर्ष्या , द्वेष ... आज की ज़िंदगी में यही रह गयाहै ... संवेदनाएं खत्म होने को हैं ..

    सार्थक सन्देश देती अच्छी रचना

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  2. भाग्य’ मृगतृष्णा-सा
    ‘सत्य’ कर्म है
    तीव्र प्रवाहित जीवन का
    ‘प्रीत’ धर्म है .
    लालच , ईर्ष्या , द्वेष
    सँहारे नहीं गये तो
    मीत ! सृष्टि अनुरक्तिहीन
    हो जाएगी... nihsandeh

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  3. सटीक बात, अक्षरश सत्य बात मर्मपूर्ण काव्य बधाई अरुण जी

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  4. सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  5. लालच , ईर्ष्या , द्वेष
    सँहारे नहीं गये तो
    मीत ! सृष्टि अनुरक्तिहीन
    हो जाएगी.………बिल्कुल सही कहा।

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  6. लालच , ईर्ष्या , द्वेष
    सँहारे नहीं गये तो
    मीत ! सृष्टि अनुरक्तिहीन
    हो जाएगी.

    बहुत अच्छा लिखे हैं सर!

    सादर

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||

    बधाई महोदय ||

    dcgpthravikar.blogspot.com

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  8. कुण्ठाएं तो अमरबेल सी
    लिपट रहीं
    मायावी इच्छाएं उर में
    सिमट रहीं.

    बहुत सार्थक चिंतन करती रचना है आदरणीय अरुण भईया....
    सादर बधाई....

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  9. कुण्ठाएं तो अमरबेल सी
    लिपट रहीं
    मायावी इच्छाएं उर में
    सिमट रहीं.....बहुत ही अच्छी रचना है......बधाई.....

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  10. बिलकुल सही और सटीक लिखा है आपने ..

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  11. @संगीता स्वरुप ( गीत ) has left a new comment on your post "माया......":

    लालच , ईर्ष्या , द्वेष ... आज की ज़िंदगी में यही रह गयाहै ... संवेदनाएं खत्म होने को हैं ..

    सार्थक सन्देश देती अच्छी रचना

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  12. लालच , ईर्ष्या , द्वेष
    सँहारे नहीं गये तो
    मीत ! सृष्टि अनुरक्तिहीन
    हो जाएगी....

    सत्य कहा है अरुण जी .... ये सब बातें जीवन का रस खींच लेती हैं ...

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  13. गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने जो सराहनीय है!

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  14. लालच , ईर्ष्या , द्वेष
    सँहारे नहीं गये तो
    मीत ! सृष्टि अनुरक्तिहीन
    हो जाएगी.

    ...बहुत सच कहा है...गहन भावों की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति..

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  15. रीझ गया मन इंद्रजाल पर
    यदि सखा !
    प्रज्ञा हो अस्तित्वहीन
    खो जाएगी.

    गहरी बात ...बेहतरीन रचना ....

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  16. लालच , ईर्ष्या , द्वेष
    सँहारे नहीं गये तो
    मीत ! सृष्टि अनुरक्तिहीन
    हो जाएगी.
    गहन शब्‍दो के साथ बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  17. बेहतरीन रचना....

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