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Friday, November 11, 2011

11-11-11


ग्यारह  है  दृष्टि- भरम ,  अंक  मूलत:  एक
हम सब भी तो एक हैं, सबका मालिक एक.

सौ  वर्षों  के  बाद  में , आती  यह  तारीख
कर्म  सदा  ऐसे  करें  ,   हों   वर्षों  तारीफ.

एक एक मिल कर बनी,, तिथि आज की खास
बड़ा विलक्षण दिख रहा ,  अंकों का अनुप्रास.

आज किसी सत्कर्म का , करें हृदय अभिषेक
दुष्कर्मों को त्याग कर  ,  काम करें बस नेक.

सात  रंग  तो  अंश हैं ,  मूल  एक  है  श्वेत
शक्तिवान  बन  जायेंगे , मिल  बैठें  समवेत.

एक  के  चक्कर में होवे  ,  निन्यान्बे का फेर
एक  की  शक्ति  परखने   में न करें अब देर.

नौ दो ग्यारह दु:ख हों ,  तीन  पाँच दें छोड़
रस्सी सम मजबूत हो, तिनका-तिनका जोड़.

लाख पच्चासी योनियाँ, काट मिली नर देह
पुण्य कर्म कर हृदय बसा प्रेम प्रीत और नेह.

माया तज औ कर पगले ,प्रभु संग नैना चार
ज्योतिर्मय  हो  जायेगा  ,  यह सारा संसार.

बावन पत्तों का महल , कभी ना आवे काम
श्रम से निर्मित झोपड़ा ,  ही  देगा  आराम.

एक -एक कर हो गए , ग्यारह  पद के छंद
अब तो आप बताइये  ,  आया कौन पसंद.

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छतीसगढ़)
विजय नगर,जबलपुर (मध्य प्रदेश)

18 comments:

  1. सौ वर्षों के बाद में , आती यह तारीख
    कर्म सदा ऐसे करें , हों वर्षों तारीफ.
    एक एक मिल कर बनी,, तिथि आज की खास
    बड़ा विलक्षण दिख रहा , अंकों का अनुप्रास...
    सटीक पंक्तियाँ! बिल्कुल सही कहा है आपने कि आजका दिन बहुत ख़ास है क्यूंकि ये तारीख सौ वर्षों के बाद आता है! सुन्दर शब्दों से सुसज्जित उम्दा रचना लिखा है आपने ! आपकी लेखनी को सलाम!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/

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  2. सारे पसंद आए .. ग्‍यारह के ग्‍यारहों !!

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  3. पढ़ा सभी मन लगा कर, ग्यारह के ग्यारह छंद।
    ग्यारहों एक से एक हैं, आये सभी पसंद॥

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  4. वाह ...बहुत खूब ।

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  5. निगम जी ..
    आपकी तारीफ़ में कुछ कहना आसन काम नहीं है .
    अब एक ही चुनना है तो हम इसे चुनते है

    बावन पत्तों का महल , कभी ना आवे काम
    श्रम से निर्मित झोपड़ा , ही देगा आराम.

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  6. आज किसी सत्कर्म का , करें हृदय अभिषेक
    दुष्कर्मों को त्याग कर , काम करें बस नेक.

    वैसे तो सारे के सारे ही लाजबाब हैं ..बहुत ही सुन्दर

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  7. सभी पद बहुत अच्छे व सभी में गहरे भाव !
    उत्कृष्ट प्रस्तुति !

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  8. सभी के सभी पद पसंद आये ११.११.११. पर लिखे छंद के!
    निश्चित ही एक ही मूल है, ग्यारह तो दृष्टि भ्रम ही है...
    सुन्दर!

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  9. अंकों का अनुप्रास.
    वाह अरुण भाई... बहुत खूब...
    सुन्दर दोहे.... सादर बधाई....

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  10. आदरणीय अरुण निगम जी मन भावन दोहे आज ११-११-११ को अमर कर गए ..किस किस का उल्लेख किया जाया क्या पसंद बताएं ..सुन्दर सन्देश देते ये दोहे आप के मन में घर कर गए ..बधाई .अपना सुझाव और समर्थन हमें भी दें हो सके तो
    भ्रमर ५
    भ्रमर का दर्द और दर्पण

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  11. sabhi chhand ek se badh kar ek
    kisko bisar k chhod de..kiko kahe nahi pasand.

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  12. प्रिय बंधुवर
    आदरणीय अरुण कुमार निगम जी

    सस्नेहाभिवादन !

    आहाऽऽहाऽऽ … ! ग्यारह के अंक के संयोग से प्रेरणा ले'कर कोई इतने सुंदर दोहों का सृजन भी कर सकता है !
    अद्भुत ! अनुपम !
    एक एक मिल कर बनी,, तिथि आज की खास
    बड़ा विलक्षण दिख रहा , अंकों का अनुप्रास


    आज की तिथि ख़ास है … लेकिन हम तो मात्र अपने दोनों ब्लॉग्स की पोस्ट 11:11:11 बजे लगा कर ही संतुष्ट हो गए … और आपने इतने सुंदर दोहे रच कर लगाए … वो भी पूरे 11
    एक -एक कर हो गए , ग्यारह पद के छंद
    अब तो आप बताइये , आया कौन पसंद


    अजी ! सब एक से बढ़ कर एक हैं …

    बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  13. किसको चुनुं और किसे छोड़ दूँ...सभी एक से बढ़कर एक ...

    सार्थक सुन्दर सकारात्मक इस सन्देश के लिए आपका साधुवाद...

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  14. सारे एक से बढ़ कर एक हैं ..ग्यारह की ग्यारह पसंद आए ..कोई एक नहीं चुन सकती

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  15. जहां न जाए रवि, वहां पहुंचे कवि।
    आपने इस उक्ति को फलित कर दिया।
    सभी दोहे बेहतरीन।

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  16. विलक्षण दोहे हैं अरुण जी ... एक से बढ़ के एक ... मज़ा आ गया ...

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  17. ग्यारह है दृष्टि- भरम , अंक मूलत: एक
    हम सब भी तो एक हैं, सबका मालिक एक.

    एक -एक कर हो गए , ग्यारह पद के छंद
    अब तो आप बताइये , आया कौन पसंद.
    सब के सब बेहतरीन हैं । बधाई स्वीकारें ।

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  18. अद्भुत दोहे. एक से बढ़कर एक.

    बधाई.

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