# मधुर छत्तीसगढ़ी गीतों का स्वर्णिम इतिहास #
"मोर संग चलव........" (भाग - 2)
मोर संग चलव श्रृंखला भाग 1 के अंत में मैंने लिखा था -
"मोर संग चलव" गीत ने वर्ष 1982 में छत्तीसगढ़ी गीत और संगीत को न केवल छत्तीसगढ़ के गाँव-गाँव तक पहुँचाने में क्रांतिकारी भूमिका निभायी बल्कि देश की सीमाओं से दूर सात समुन्दर पार तक पहुँचा दिया।
आइए आज बताता हूँ कि 1982 में ऐसी कौन सी क्रांति हुई थी जिसके कारण छत्तीसगढ़ी गीत और संगीत छत्तीसगढ़ के गाँव से लेकर सात समुन्दर पार तक गूँज उठा था।
दुर्ग निवासी ताज अली थारानी जी, जिनके परिवार की गाँधी चौक दुर्ग में एच एम वी, पॉलीडोर आदि रिकार्ड्स की डीलरशिप थी, "मोर संग चलव" गीत के दीवाने थे। उन्होंने लक्ष्मण मस्तुरिया जी से मुलाकात करके इस गीत के साथ ही कुछ और छत्तीसगढ़ी गीतों के रिकार्ड्स बनाने की इच्छा जाहिर की। मस्तुरिया जी ने कहा कि विचार अच्छा है, मेरी सहमति भी है चलिए (मोर संग चलव) इस संदर्भ में चंदैनी गोंदा के संस्थापक दाऊ रामचंद्र देशमुख जी से चर्चा कर लेते हैं। लक्ष्मण मस्तुरिया जी के साथ थारानी जी दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के पास गए। उन्होंने भी प्रस्ताव पर अपनी सहमति प्रदान कर दी। इस तरह से पॉलीडोर जो म्यूज़िक इंडिया कंपनी बन चुकी थी, के स्टूडियो में लक्ष्मण मस्तुरिया के छत्तीसगढ़ी गीतों का पहला ई.पी. रिकॉर्ड तैयार हुआ।
आप में से बहुत से मित्र जानते ही होंगे कि पहले 78 स्पीड के तवे हुआ करते थे जिनके एक साइड में एक गीत और दूसरी साइड में एक गीत अर्थात एक तवे में कुल दो गीत हुआ करते थे। ग्रामोफोन चाबी वाला हुआ करता था और लोहे की नुकीली निडिल होती थी। बाद में इलेक्ट्रिक मोटर वाले रिकॉर्ड प्लेयर आ गए जिसमें क्वार्ट्ज़ की निडिल हुआ करती थी। इन रिकॉर्ड प्लेयर्स के साथ ही 45 आरपीएम स्पीड के ई पी रिकॉर्ड बनने लगे थे जिनके प्रत्येक साइड में दो गाने अर्थात एक रिकॉर्ड में कुल 4 गाने होते थे। इससे बड़े आकार के रिकॉर्ड माने एल पी रिकॉर्ड भी बनने लगे थे जिनकी स्पीड 33 आरपीएम हुआ करती थी। एक एल पी रिकॉर्ड के प्रत्येक साइड में 6 गीत अर्थात कुल 12 गीत हुआ करते थे। सन् 1982 में इलेक्ट्रिक मोटर वाले रिकॉर्ड प्लेयर और ई पी, एल पी रिकार्ड्स (तवा) का प्रचलन हो चुका था। लक्ष्मण मस्तुरिया के गीत ई पी रिकार्ड्स में ही बने थे।
हाँ तो मैं बता रहा था कि म्यूज़िक इंडिया कम्पनी द्वारा जारी, लक्ष्मण मस्तुरिया के छत्तीसगढ़ी गीतों का पहला रिकॉर्ड ई पी रिकॉर्ड था जिसके साइड A में "मोर संग चलव" और साइड B में दो गीत क्रमशः "पता दे जा रे, पता ले जा रे गाड़ी वाला" और "हम तोरे सँगवारी कबीरा हो, हम तोरे सँगवारी" था। मोर संग चलव गीत के गायक स्वयं लक्ष्मण मस्तुरिया थे। गीत लंबा होने के कारण साइड A में यही इकलौता गीत है। साइड B के पहले गीत "पता दे जा रे, पता ले जा रे गाड़ी वाला" को गायिका कविता हिरकने (अब कविता वासनिक) ने स्वर दिया था। म्यूज़िक इंडिया कं. द्वारा यह रिकॉर्ड लॉन्च होते ही इस गीत का प्रसारण बी बी सी लंदन से हुआ और हमारी छत्तीसगढ़ी भाषा सात समुन्दर पार से सम्पूर्ण विश्व में गूँज उठी। तब से आज तक यही गीत कविता वासनिक का मास्टर गीत बना हुआ है। साइड B के दूसरे गीत "हम तोरे सँगवारी कबीरा हो" को गायक भैया लाल हेड़ाऊ ने स्वर दिया था। यह गीत आज भी भैयालाल हेड़ाऊ का मास्टर गीत बना हुआ है।
इस प्रथम रिकॉर्ड के तीनों ही गीतों के गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिया हैं। संगीतकार हैं खुमान-गिरिजा अर्थात खुमानलाल साव और गिरिजा कुमार सिन्हा। निर्माता कम्पनी है "म्यूज़िक इंडिया लि.। कंपनी द्वारा जारी ई पी रिकॉर्ड का नम्बर है 2222830. इंट्रोड्यूसर - ताज अली थारानी और प्रोड्यूसर - संगीतम, गाँधी चौक दुर्ग। इस प्रथम ई पी रिकॉर्ड का नाम दिया गया - "लक्ष्मण मस्तुरिया के छत्तीसगढ़ी गीत"। यह रिकॉर्ड स्टीरियो साउण्ड में था। रविकान्त वर्मा ने इस रिकॉर्ड का कव्हर पेज बनाया था।
ऐसी ही छोटी-छोटी जानकारियों के कारण आलेख बड़ा हो जा रहा है, इसीलिए इन स्मृतियों को एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ ताकि नयी पीढ़ी के लोग इन गीतों के इतिहास के बारे में जान सकें। आप इस श्रृंखला से जुड़े रहिए। प्रत्येक अंक में अनेक महत्वपूर्ण जानकारियाँ मिलेंगी।
आलेख - अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग छत्तीसगढ़
सुन्दर
ReplyDeleteसुंदर जानकारी।
ReplyDeleteGeat work RAJASTHAN GK
ReplyDeleteआपने बहुत ही शानदार पोस्ट लिखी है. इस पोस्ट के लिए Ankit Badigar की तरफ से धन्यवाद.
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