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Friday, June 19, 2020

जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया को काव्यांजलि


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विगत पाँच दशकों से छत्तीसगढ़ी गीत और संगीत के शिखर पर विराजमान "जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया की 71 वीं जन्म-जयंती (07 जून 2020) के अवसर पर छत्तीसगढ़ के 32 नवोदित समर्थ कवियों ने अपने गीतों व छन्दों के माध्यम से कुल 64 काव्य-सुमन समर्पित किए"। यह ऐतिहासिक संकलन आपके लिए प्रस्तुत किया जा रहा है -
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(1 ) लावणी छन्द - अरुण कुमार निगम

छत्तीसगढ़ के संस्कृति ला, देख अमावस खावत हे
लछमन मस्तुरिया के सुरता, मन मा रहि-रहि आवत हे।

दया मया के निरमल छइहाँ, कोन इहाँ बगराही रे
साभिमान के दिया बार ले, नवा सुरुज फेर आही रे।।

गिरे परे हपटे मन खातिर, सुरहुति का ?  देवारी का ?
मुरदा बन के परे रहे मा, सांगन धरे कटारी का ?

जुगुर-बुगुर दियना बन गाना, उजियारी बगरावत हे
लछमन मस्तुरिया के सुरता, मन मा रहि-रहि आवत हे।

- अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर दुर्ग छत्तीसगढ़
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(2) सार छ्न्द - सूर्यकान्त गुप्ता 'कांत'

रहिन नहीं गा हवँय आज भी, अमर  हमर मस्तुरिया।
राज   बने के  पहिली एकर,  पीरा के सुमरइया।।

बड़े  बड़े साहित्य  मनीषी, मानँय इनकर  लोहा।
रतन  हमर छत्तिसगढ़  के जी, आवय बड़का ओहा।।

गिरे   परे हपटे  मन के वो, हरदम  संग चलइया।
हिरदे  मा उन राज करत हें, सबके ख्याल रखइया।।

पुरस्कार  सम्मान पाय  बर, करिन फिकर नइ भाई।
लगे  रहिन उन पाटे  बर जी, ऊँच नीच  के खाई।।

श्रद्धा सुमन करत हन अर्पित, सुरता अड़बड़ आथे।
जीव छोड़ काया ला जाथे, जस अपजस रहि जाथे।।

अमर निशानी गीत तुँहर हे,  जन जन जेला गाथें।
कभू  नई दुरिहाये  हावव, संग अपन  सब पाथें ।।

सूर्यकान्त गुप्ता 'कांत'
सिंधिया नगर दुर्ग, छत्तीसगढ़
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(3) आल्हा छन्द - हेमलाल साहू

माटी के हमर दुलरु बेटा, लिखत रहिस जन मन के पीर।
हमर राज के मस्तुरिया जी, रहिस हवे जन नायक वीर।1।

गीत लिखे ओ सदा मीत के, बाँटय सदा मया के खीर।
आडम्बर के घोर विरोधी, कहिले जेला हमर कबीर।2।

मस्तुरिया के सबो गीत ला, गाँव गाँव अउ शहर बजाँय।
अमर रत्न भारत माता के, सब जन मन ला जौन जगाँय।3।

रहिस स्वाभिमानी सच्चा जे, करतिस देश हितैषी गोठ।
ठेठ ठेठ छत्तीसगढ़ी मा, रचना करतिस ओ हर पोठ।4।

लोक कला ले जुड़के भइया, बगराइस सुघ्घर अंजोर।
गिरे थके मनखे मनके अउ, परे डरे मन के लेवय सोर।5।

नमन आज दिल से उनला हे, हाथ जोड़ के बारम्बार।
मस्तुरिया जी के सपना ला, आवव करबो हम साकार।6।

-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, पोस्ट नगधा, तहसील नवागढ़, जिला बेमेतरा
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(4) कुण्डलिया छन्द -  हेमलाल साहू

जन नायक कवि तोर जस, जघा कौन ले पाय।
देश राज के तोर बिन, कोने हाल सुनाय।
कोने हाल सुनाय, इहाँ कौन स्वाभिमानी।
जन पीड़ा ला कौन, रचे बनके बलिदानी।
राज हितैषी आज, तोर कस नइहे लायक।
भारत माँ के रत्न, देश के तहि जन नायक।

-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, पोस्ट नगधा, तहसील नवागढ़, जिला बेमेतरा

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(5) रोला छन्द - मिलन मलरिहा

मस्तुरिया के गीत, बसे हे सब जनजन मा।
जनकवि के गोहार, रमे हे सबके मन मा।।
मस्तुरिया वो नाम, शान ग छत्तीसगढ़ के।
मैं लेथौं जी सीख, लिखे ला ओकर पढ़ के।।

मिलन मलरिहा
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(6) कुण्डलिया छन्द - चोवाराम वर्मा "बादल"

पावन हे छत्तीसगढ़ ,भुइयाँ सरग समान ।
खेलिन जेकर गोद मा ,कतको मनुज महान ।
कतको मनुज महान, रहिन लक्ष्मण मस्तुरिया ।
कलमकार वो नेक, लिखिन बड़ गीत लहरिया ।
गावयँ गुरतुर गीत, सुहावय जइसे सावन।
चल दिन सरग सिधार, अमर रइही जस पावन।।
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(7) कुण्डलिया छन्द - चोवाराम वर्मा "बादल"

जन-जन के हिरदे बसे, अमर लिखे तैं गीत ।
परे डरे के संग मा ,सदा बढ़ाये मीत।
सदा बढ़ाये मीत, लिखे धरती के पीरा।
नइ माँगे सम्मान ,कभू तैं खाँटी हीरा ।
श्रद्धा के दो फूल, चरण मा हावय अरपन।
आबे ले अवतार ,पुकारत हावयँ जन-जन ।।

- चोवा राम 'बादल '
ग्राम - हथबन्द जिला - भाटापारा बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़
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(8) सार छंद - चोवा राम 'बादल '

ए भुइयाँ के हीरा बेटा, हे लक्ष्मण मस्तुरिहा।
हमला छोड़े तैं ह सिधारे, चढ़े सरग के सिढ़िहा।।

गाँव गाँव के गली खोर मा, तोरे चर्चा हाबय।
कतको झन मनखें सुसकत हे, अन पानी नइ भावय।
जन जन के तैं अबड़ पिरोहिल,माथ मुकुट कस बढ़िहा।
ए भुइयाँ के हीरा बेटा, हे लक्ष्मण मस्तुरिहा।

तुमानार बखरी के घपटे ,दुख मा तोर सुखागे।
पता छोंड़ के पता लगइया,रद्दा अपन भुलागे।
रोवत हाबय खेत खार अउ, नागर धरे नँगरिहा ।
ए भुइयाँ के हीरा बेटा, हे लक्ष्मण मस्तुरिहा।

संग चले बर कोन कहै अब, हपटे गिरे परे ला।
पँड़की मैना मन जोहत हें, गुरतुर राग धरे ला।
फागुन मा अब मन नइ डोलै, कहत हवै रइपुरिहा।
ए भुइयाँ के हीरा बेटा, हे लक्ष्मण मस्तुरिहा।

'बादल' के अरजी बिनती हे, लहुट इहाँ तैं आबे।
अरपा पैरी महानदी मा, सुग्घर तउँर नहाबे।
श्रद्धांजलि अरपित हे तोला, कृपा करै श्री हरि हा।
ए भुइयाँ के हीरा बेटा, हे लक्ष्मण मस्तुरिहा।

- चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, छत्तीसगढ़
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(9) छप्पय छंद - आशा देशमुख

हे माटी के लाल ,अमर लक्ष्मण मस्तुरिया।
सुन्ना होगे गीत ,टूट गे साँस बसुरिया।
उड़े कहाँ तँय हंस ,उहाँ हव काकर छइहाँ।
सच बोले हव आप ,मोर हे छइहाँ भुइयाँ।
मोला अइसे लागथे ,हवव देवता लोक मा।
स्वर्ग पाय हे अउ रतन ,धरती हावय शोक मा।

- आशा देशमुख, छत्तीसगढ़
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(10) दोहा - चौपाई - आशा देशमुख

दोहा -मस्तुरिया होगे अमर,कालजयी हे गीत।
सबो जिनिस के भाव ला, समझे बनके मीत।।

छोड़ चले लक्ष्मण मस्तुरिया ।सुन्ना होगे सुर के कुरिया।।
कण कण मा तँय बसे दुलरवा।खेत खार घर नदिया नरवा।। 1

घुनही होगे तोर बँसुरिया।तैंहर चलदे सबले दुरिहा।।
छलकत रहिथे धान कटोरा।तँय बइठे धरती के कोरा।। 2।

लाल रतन धन छतीसगढ़िया।सबले सुघ्घर सबले बढ़िया।।
बगरय जग मा चिटिक चँदैनी।आप चढ़े हव सरग निसैनी।।3।

रस घोले रे माघ फगुनवा।बिरहिन के तब आय सजनवा।।
अमर गीत ला रचके लक्ष्मण।बसगे भुइयाँ के तँय कण कण।।4।

ले चल रे चल गाड़ी वाला।धरे मरारिन भाजी पाला।
सबके पीरा दुःख चिन्हैया।अइसन नइहे लोक गवैया।।5।

दोहा-कतका करँव बखान मँय,हे माटी के लाल।
जन जन मा तैंहर बसे,रहिबे तीनों काल।।

छंदकार -आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा (छत्तीसगढ़)
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(11) घनाक्षरी - दिलीप कुमार वर्मा

भाखा के ओ मान राखे, आन बान शान राखे,
जग पहिचान राखे, नाम ओ कमाये हे।
सब ला मिलाये बर, संग मा चलाये बर,
जग ला जगाये बर, गीत मीठ गाये हे।  
बड़ा मीठ मीठ बोली, करे ओ हँसी ठिठोली,
शब्द रस घोली घोली, सब ला पिलाये हे।
नाम लछिमन रहे, सब मस्तूरिहा कहे,  
जन जन के मयारू, तेन याद आये हे।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
जिला बलौदा बाजार छत्तीसगढ़
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(12) सरसी छंद गीत - इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

याद जमाना जुग जुग करही,मस्तुरिहा के नाम।
माथ नवाँ के महूँ करत हँव,बारंबार प्रणाम।।

धरम धाम भारत भुइँया के,चौरा गोंदा फूल।
देख सुखागे काँटा बनके,हिरदे भर दिस शूल।।

मोर गंवई गंगा सूखे,बंजर परगे खेत।
दया मया हा जुल्मी होगे,कोंन करय अब चेत।।
पड़की मैना बोलत नइहे,राम इहाँ घनश्याम।
याद जमाना जुग जुग करही,मस्तुरिहा के नाम।।1

दुनिया मड़ई मेला जइसे,लगे मोह बाजार।
एक नदी के दू किनार कस,सुख दुख हे संसार।।

माघ फगुनवा मन नइ डोलय,फीका होली रंग।
गाड़ी वाला रद्दा देखय,कोनों नइहे संग।।
झूठ डगर मा झन चलिहौ जी,सत रसदा सुखधाम।
याद जमाना जुग जुग करही,मस्तुरिहा के नाम।।2

संत कबीरा के सँगवारी,श्याम बाँसुरी तान।
छत्तीसगढ़ी भाखा के जे,खूब बढाइस मान।।

सुमता के जे बिरवा बोइस,रुनझुन खेती खार।
बनके छत्तीसगढ़िया बेटा,बाँटिस मया दुलार।।
भेद तोर आँखी के कहिगे,कर लौ नेकी काम।
याद जमाना जुग जुग करही,मस्तुरिहा के नाम।।3

इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर,जिला बिलासपुर (छ.ग.)
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(13) कुकुभ छंद गीत - इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

भारत माँ के राज दुलरुवा, तँय जुग जुग नाम कमाबे ।
लक्ष्मन मस्तुरिहा गा भइया, तँय भुइँया पूत कहाबे ।।

लोक कला के अमर पुरोधा, प्रेम भरे छइँहा माटी ।
छत्तीसगढ़ स्वाभिमान खातिर, तहीं चलाये परिपाटी ।।
भक्ति भजन हरि ज्ञान लखाये, आ  निरगुन भाव जगाबे ।
भारत माँ के राज दुलरुवा, तँय जुग जुग नाम कमाबे ।।1

गाड़ी वाला रद्दा जोहय, मुरझाये गोंदा चौंरा ।
भुकुर भुकुर ये जिंवरा लागे, अउ उठे नहीं मुँह कौंरा ।।
रुनझुन खेती खार सजाके, भुइँया के मान बढ़ाबे ।।
भारत माँ के राज दुलरुवा, तँय जुग जुग नाम कमाबे ।।2

क्रांति दूत तँय हक के खातिर, शांति दूत भाईचारा ।
लाये नवा बिहान इहाँ तँय, चमकाये भाग सितारा ।।
दया मया के सोर धरे गा, तँय लौट चले जग आबे ।
भारत माँ के राज दुलरुवा, तँय जुग जुग नाम कमाबे ।।3

छंदकार- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
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(14) कुण्डलिया छंद - इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

मस्तुरिहा के याद मा, नैन नीर बोहाय ।
तोर कमी ला कोंन जी, अब पूर्ती कर पाय ।।
अब पूर्ती कर पाय, कहाँ अब अइसे मनखे ।
देश धरम के भाव, भला अब कोंन सरेखे ।।
करे अस्मिता बात, बने जे छत्तीसगढ़िहा ।
ये भुइयाँ के शान, रहिंन लक्ष्मण मस्तुरिहा ।।

इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
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(15) कुण्डलिया छन्द - कन्हैया साहू 'अमित'

बेटा  छत्तीसगढिय़ा,  लक्ष्मण जेखर नाँव।
हाथजोड़ सरधा सहित, आज परत हँव पाँव।
आज  परत हँव  पाँव, लाल तैं  रतन कबीरा।
सिरतों  धरती पूत,  लिखे गाए परपीरा।।
करय  'अमित'  गोहार, कहाँ  बिलमे दुलहेटा।
'मस्तुरिया'  जयकार, अमर तैं  सिधवा बेटा।।

- कन्हैया साहू 'अमित'
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(16) मत्तगयंद सवैया - सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

संग चलौ घुनही बँसुरी अस गीत अनेक रचे अउ गाये।
भाव भरे गहिरा उँचहा सुन के मन अंतस हा हरसाये।
मान मया बड़ई अपनापन लोक असीस दुलार ल पाये।
लक्ष्मण मस्तुरिया कस लाल कहाँ भुँइ मा बहु बार ग आये।

रचना - सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''
गोरखपुर,कबीरधाम छत्तीसगढ़
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(17) हरिगीतिका छंद - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

माने नही मन मोर जी,मस्तूरिहा के गीत बिन।
सुनके जिया मा जोश आथे,मन अघाथे जीत बिन।
सरसर करे पुरवा पवन मस्तूरिहा के गीत गा।
सबके सहारा गंग धारा वो मया अउ मीत गा।।
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(18) हरिगीतिका छंद - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

चारो दिशा रोवत हवै,रोवत हवै घर खेत हा।
सुरता म आँसू नित ढरकथे,छिन हराथे चेत हा।
पानी पवन जब तक रही,तब तक रही मस्तूरिहा।
रहही जिया मा घर बना,होवय  कभू नइ दूरिहा।।
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(19) हरिगीतिका छंद - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

हीरा असन सिरजाय हे,छत्तीसगढ़ के धूल ला।
माली बने  महकाय हे,साहित्य के वो फूल ला।
भभकाय हे जे धर कलम,आगी ल सोना खान के।
नँदिया  लबालब जे  भरे,संगीत अउ सुर तान के।।
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(20)  हरिगीतिका छंद - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

हारे  थके मन गीत सुन,रेंगें मया धर संग मा।
सँउहत दिखे छत्तीसगढ़,संगीत के सतरंग मा।
कतको चिरैया चार दिन,खिलके इहाँ मतवार हे।
महके   हवै मस्तूरिहा, छत्तीसगढ़  गुलजार हे।।
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(21) हरिगीतिका छंद - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

अतका  करे कोनो नहीं,जतका  करे हे काम वो।
बाँटिस मया ममता सदा,माँगिस कहाँ पद नाम वो।
हे  लेखनी  जादू भरे,अउ का कहँव सुर ताल के।
मधुरस असन सब गीत हे, छत्तीसगढ़ के लाल के।5।
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(22) हरिगीतिका छंद - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

कइसे उदासी छाय हे,मन के सुवा मा देख ले।
नइहे भले तन हा इँहा,पर नाँव जीतै लेख ले।
वो नाँव के सूरज सदा,चमकत रही आगास मा।
दुरिहाय हावै तन भले,सुरता रही नित पास मा।6।
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(23) हरिगीतिका छंद - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

जब जब खड़े कविता पढ़े,बाँटे मया अउ मीत ला।
कतको  घरी देखे  हवँव,बाढ़े हवँव  सुन गीत ला।
कर खैरझिटिया जोड़ के,पँउरी परै वो लाल के।
अन्तस् बसाके नाँव ला,नैना म सुरता पाल के।7।

- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा) छत्तीसगढ़
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(24) गीत - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

छत्तीसगढ़ के शान, मस्तूरिहा।
गायक कवि महान, मस्तूरिहा।
सत सुम्मत सिरजाइस, माटी के गुण गाइस।
जन जन के अभिमान, मस्तूरिहा।

नइ हो सकै ये दुनिया मा,
ओखर जइसन कोई।
माटी महतारी ह रोवै,
अइसन बेटा खोई।
दया मया के सागर, गुण ज्ञान मा आगर।
छेड़िस सुर अउ तान, मस्तूरिहा।
छत्तीसगढ़ के शान, मस्तूरिहा।
गायक कवि महान, मस्तूरिहा।

अमर गीत हे माटी पूत के,
अमर हे ओखर काया।
अन्तस् मन म सबके रइही,
मया मीत के छाया।
गूँजे गली गली मा,जल थल पेड़ कली मा।
गावै जरा जवान,मस्तूरिहा।
छत्तीसगढ़ के शान, मस्तूरिहा।
गायक कवि महान, मस्तूरिहा।

शब्द शब्द मा गूढ़ गोठ हे,
थेभा छोट बड़े के।
मस्तूरिहा के शब्द निसेनी,
उप्पर डहर चढ़े के।
बोहय मधुरस धार, भागय आलस हार।
नइ माँगिस सम्मान, मस्तूरिहा।
छत्तीसगढ़ के शान, मस्तूरिहा।
गायक कवि महान, मस्तूरिहा।

- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा) छत्तीसगढ़
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(25) कुण्डलिया छन्द - अजय अमृतांशु

बाना धरिन कबीर के,बेटा रतन कहाय।
कालजयी संदेश दिन, अंतस सोझ समाय।
अंतस सोझ समाय, बात गंभीर कहिन जी।
पीरा अउ अन्याय, देख नइ कभू सहिन जी।
खुल के करिन विरोध, सहिन नइ ककरो ताना।
मस्तुरिहा हे नाँव, धरिन उन जगहित बाना।।

- अजय अमृतांशु
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
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(26) कुकुभ छंद - ज्ञानुदास मानिकपुरी

कहाँ लुकाये दिखय नही अब, गिरे परे के सँगवारी।
अलख जगाये ज्ञान दीप के, मेटे बर वो अँधियारी।।

दया मया अउ करम धरम के, गीत रोज के उन गावै।
सुनके अंतस हिलोर मारय, दुख पीरा बिसरा जावै।।

करय रातदिन बेटा हितवा, भाखा माटी के सेवा।
जनकवि तब वो नाम धराये, मिलगे जीते जी मेवा।।

ढोंग धतूरा आडंबर के, रहय विरोघी वो भारी।
देख नैन ले आँसू छलके, दीन दुखी अउ लाचारी।।

अमर नाम होगे दुनियाँ मा, हे लक्ष्मण मस्तुरिया जी।
आज कहाँ तँय पाबे अइसन, छत्तीसगढ़िया बढ़िया जी।।

छंदकार-ज्ञानुदास मानिकपुरी
चंदेनी-कबीरधाम
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(27) लावणी छंद गीत- मोहन लाल वर्मा

लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता, कइसे गा हम बिसराबो ।
जब-जब सुनबो अमर गीत ला, आगू मा सउँहे पाबो ।।1।
लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता,------

ये माटी के स्वाभिमान के, गीत सदा जे गाइस हे।
मँय छत्तीसगढ़िया अँव कहिके, जग मा अलख जगाइस हे।।2।
दया-मया के परवा छानी, सुरता मा ओकर छाबो ।।
लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता,------

बन गरीब के हितवा-मितवा, संग चले बर जे बोलय ।
माघ-फगुनवा मा सतरंगी, मया- रंग ला जे घोरय ।।3।
देश मया के भारत गीता, संदेशा ला बगराबो ।।
लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता,-----

महानदी-अरपा-पइरी मा, जब- तक पानी हा रइही ।
अपन दुलरवा ये बेटा के, अमर कहानी ला कइही ।।4।
परके सेवा मोर सिखानी, बात कहे ला दुहराबो ।।
लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता,------

सुवा-ददरिया-करमा-पंथी, गुरतुर सुर मा जे गावै ।
सुरुज-जोत मा करय आरती, छइयाँ भुइँया दुलरावै ।।5।
अइसन जनकवि के चरनन मा, श्रद्धा के फूल चढ़ाबो ।।
लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता,------

लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता, कइसे गा हम बिसराबो ।
जब-जब सुनबो अमर गीत ला, आगू मा सउँहे पाबो ।।

छंदकार - मोहन लाल वर्मा
पता:- ग्राम-अल्दा,तिल्दा,रायपुर (छत्तीसगढ़)
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(28) लावणी छन्द- बोधन राम निषादराज

गिरे परे मनखे मन के तैं, दुख ला अपन बनाए गा।
लक्ष्मण मस्तुरिया भइया तँय, उँकर पीर ला गाए गा।।

मस्तूरी मा जनम धरे तैं, महतारी भुइँया खातिर।
जन-जन मा बिस्वास भरे तैं, गीत बने दुनिया खातिर।।
संग चलौ कहिके मनखे ला, अपन संग रेंगाए गा।
गिरे परे मनखे मन के तैं...............

दया मया के गीत रचइया, सुग्घर भाखा अउ बोली।
गुरतुर राग सुनाए तैं हा, झूमै नाचै हमजोली।
छइँहा भुइँया के सिरजइया, माटी गंगा लाए गा।
गिरे परे मनखे मन के तैं.................

अंतस सबके रचे बसे तैं, कइसे आज भुलाबो गा।
सुरता करके तोर गीत ला, तोर राग मा गाबो गा।
सुन्ना परगे तोर बिना अब, आवव आस बँधाए गा।
गिरे परे मनखे मन के तैं................

छंदकार - बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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(29) त्रिभंगी छंद - श्रीमती आशा आजाद

लक्ष्मण मस्तुरिया,गीत रचइया,देश राज सब,छोड़ दिये।
सुग्घर सब बानी,अमिट कहानी,सुग्घर तँय हा,राज किये।
अमरित ला छोड़े,मुख ला मोड़े,रोवत सबला,छोड़ चले।
हिरदे हा रोवय,हीरा खोवय,तोर जाय ले,दिल ह जले।।

छंदकार-श्रीमती आशा आजाद
पता-मानिकपुर,कोरबा,छत्तीसगढ़
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(30) अमृतध्वनि छंद - आशा आजाद

हीरा बेटा राज के,मस्तुरिया हे सान।
सुघ्घर सुघ्घर गीत ले,अंतस भरदिन ज्ञान।
अंतस भरदिन-ज्ञान कहय ये,संग चलव रे।
दीन दुखी के,पीर हरौ नित,संग बढ़व रे।
मस्तुरिया जी,गिरे थके के,समझिन पीरा।
अमिट गीत हा,दमकिस जइसे,चमकै हीरा।।
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(31) अमृतध्वनि छंद - आशा आजाद

बानी अमरित कस रहै,गीत सबो अनमोल।
आसा आस्था ला लिखिन,सुघर गीत के बोल।
सुघर गीत के-बोल राज बर,काज करिन ओ।
छत्तीसगढ़ म,नेक करम के,भाव धरिन ओ।
छत्तीसगढ़ी,भाखा के ओ,राहिन ज्ञानी।
मस्तुरिया जी,चलदिन देके,अमरित बानी।।

छंदकार - आशा आजाद
कोरबा छत्तीसगढ़
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(32) "गीत" - बलराम चंद्राकर

गाना लक्ष्मण मस्तुरिया के, गूँजय गाँव-गाँव मा ।
बस्ती-बस्ती पारा-पारा, घर-घर ठाँव-ठाँव मा।।
गाना लक्ष्मण................

फिटिक अँजोरी निरमल छइहाँ, गीत सुहावय सुग्घर जी।
छइहाँ भुइयाँ छोड़ जवइया, सुन पछतावय अब्बड जी।।
तन डोले रे माँग फगुनुवा, जादू करय पाँव मा।
गाना लक्ष्मण................

नीक चँदैनी गोंदा कारी, बिधुन रहय गा नर नारी।
रामचंद के गाँव बघेरा, लगै मया के फुलवारी।।
संग चलव रे का लिख डारे, होगे अमर नाँव मा।
गाना लक्ष्मण............

झुके नहीं गा थके नहीं गा, अउ अनीत ला सहे नहीं।
स्वाभिमान ले रहे सदा तँय, लिखे खरा गा सहीं सहीं ।।
स्वारथ बर तँय कभू कलम ला, डारे नहीं दाँव मा।
गाना लक्ष्मण..............

बस्ती-बस्ती पारा-पारा, घर-घर ठाँव-ठाँव मा।
गाना लक्ष्मण मस्तुरिया के, गूँजय गाँव-गाँव मा ।।

*गीत/छंदकार*
बलराम चंद्राकर  भिलाई
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(33) कुण्डलिया - जगदीश 'हीरा' साहू

लक्ष्मण मस्तुरिया हवय, छत्तीसगढ़ के शान।।
माटी के बेटा रतन, जनकवि अबड़ महान।
जनकवि अबड़ महान, लिखे माटी के पीरा।
पावय सुग्घर मान, हमर भुइँया के हीरा।।
महल बरोबर जान, अपन माटी घर कुरिया।
हे साहित के प्राण,  शान लक्ष्मण मस्तुरिया।।

- जगदीश "हीरा" साहू
भाटापारा, छत्तीसगढ़
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(34) आल्हा छन्द -  मोहन कुमार निषाद

महतारी के सिधवा बेटा , लक्ष्मण मस्तुरिहा जी नाँव ।
आके  महतारी के कोरा , पाइस  हावय सुग्घर छाँव ।।

जन्म धरिन हे ये माटी मा , माटी के जी गीत सुनाय ।
जन जन के  हितकारी बेटा , आशीर्वाद सबो के पाय ।।

दया  मया के  बाँधे बाना , सबला  लेके जावय संग ।
गीत धरोहर के जी गाके , मनला सबके करिस उमंग ।।
छँइहा भुइँया संग चलव जी , गाना इंकर हे पहिचान ।
माटी महतारी के महिमा , गाके जग मा पाइस मान ।।

लोगन मन के रहिस दुलरवा , भारत माता के जी लाल ।
हितवा मन के संगी बनके , बैरी  मन बर सउहत काल ।।

आनी बानी के जी गाना , मन ला सब लोगन के भाय ।
भारत  माँ के  हीरा बेटा ,  लोगन मन के पीरा गाय ।।

नमन करत हँव उनला सादर , हाथ जोड़ के बारम्बार ।
महतारी  के रतन अमर हे , जाके  भवसागर ले पार ।।

रचनाकार - मोहन कुमार निषाद
गाँव - लमती , भाटापारा, जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)
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(35) गीत - रामकुमार चंद्रवंशी

जनमानस के भाव के रंग मा
                गीत ला अपन रँगाये तैं,
वाह-वाह ! लक्ष्मण मस्तुरिया जी,
                 का सुग्घर गीत रचाये तैं।।

माटी के गाथा,माटी के महिमा,
        गीत माटी के,माटी के वंदना;
जनमानस ला दिए संदेसा,
माटी के छोड़ कहूँ नइ हे अउ रहेना;
गुन इही अपनाके गीत मा,
                     चार चाँद लगाये तैं,
वाह-वाह ! लक्ष्मण मस्तुरिया जी,
               का सुग्घर गीत रचाये तैं।।

बड़े बिहनिया सोन चिरई ला
             फुदकाये सब के दुवरिया;
गिरे थके अउ परे डरे के,
          गीत ला बनाये रद्दा देखइया;
गुन इही गीत मा संजोके,
            जन-जन तक पहुँचाये तैं,
वाह-वाह ! लक्ष्मण मस्तुरिया जी,
              का सुग्घर गीत रचाये तैं।।

बादर,बिजली,खेती-बाड़ी,
            नांगर,बइला,रापा-कुदारी;
तरिया-नदिया,जंगल-झाड़ी;
      गाँव के गोठ अउ बइला गाडी;
गीत मा अपन सब ला संजोके,
              गीत ला अमर बनाये तैं,
वाह-वाह ! लक्ष्मण मस्तुरिया जी,
               का सुग्घर गीत रचाये तैं।।

- राम कुमार चन्द्रवंशी
बेलरगोंदी (छुरिया) जिला-राजनांदगाँव
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(36) सार छन्द - महेंद्र देवांगन माटी

सुरता आथे रहि रहि मोला, तोर गीत ला गावँव।
छत्तीसगढ़ के मयारु बेटा,  तोला माथ नवावँव।।

जनम धरे तैं मस्तुरी म , मस्तूरिहा कहाये।
बचपन बीतिस खेलकूद मा, लक्ष्मण नाम धराये।।

तोर गीत हा सुघ्घर लागे, जन मन मा बस जाथे।
संग चलव जब कहिथस तैंहा, कतको झन हा आथे।।

अमर करे तैं नाम इँहा के,  माटी के तैं हीरा।
गिरे परे हपटे मनखे के, जाने तैंहर पीरा।।

अरपा पैरी महानदी कस, निरमल हावय बानी।
सब ला मया लुटाये तैंहर, हरिशचंद कस दानी।।

छछलत हावय तुमा नार हा, घर घर मा तैं बोंये।
सुरता करके आज सबोझन,  अंतस ले गा रोये।।

महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया कबीरधाम
छत्तीसगढ़
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(37) कुण्डलिया छन्द - महेंद्र कुमार बघेल

भुॅइया के सम्मान बर, गहन भाव मा डूब।
वंचित बर संसो करत , कलम चलाये खूब।
कलम चलाये खूब, रतन तॅय छतीसगढ़िया।
समदर्शी कस सोच, रिहिस सब्बो बर बढ़िया।
सुनत उही सब गीत, बइठ के दीदी भइया।
अंंतस गजब सुहाय, गुनत वो छइँया भुॅइया।।1।।
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(38) कुण्डलिया छन्द - महेंद्र कुमार बघेल

पेटी सुगम बजाय बर, फेरे हाथ खुमान।
रामचंद के कल्पना, छत्तीसगढ़ी आन।
छत्तीसगढ़ी आन, हवय लक्ष्मण मस्तुरिया।
संग चलव रे मोर, गीत मा समझ नजरिया।
सब रचना हे पोठ,गीत सब गावॅय बेटी।
गावत सुनलव गीत,बजे जब बाजा पेटी।।2।।
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(39) कुण्डलिया छन्द - महेंद्र कुमार बघेल

रइपुर इसटेशन बजे, रखे रेडियो आॅट।
घर मा सब गाना सुने, सबके रहय सुराॅट।
सबके रहय सुराॅट,गीत हा गुरतुर बाजे ।
कविता गावय गीत,बोल मस्तुरिया साजे।
फूलिस गोंदा फूल, सबों झन गाइन सुर मा।
मिलिस आत्म सम्मान,गांव गॅवई रइपुर मा।।3।।
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(40) कुण्डलिया छन्द - महेंद्र कुमार बघेल

सुरता मा सबके रही, कल परसों अउ आज।
मस्तुरिया ला छीन के,लेगे जी यमराज।
लेगे जी यमराज, गिरे ला कोन उठाही।
घपटे हे अॅधियार,कोन हा राह बताही।
साहित उॅकर सहेज,पहिन सतसंगी कुरता।
करलव नीक उपाय, रखव पुरखा के सुरता।।4।।

छन्दकार - महेंद्र कुमार बघेल
डोंगरगांव राजनांदगांव
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(41) मनहरण घनाक्षरी छंद - डॉ. मीता अग्रवाल

मस्तूरी हे नाव गाँव, लोक गीत जुड़  ठाँव।
लक्ष्मण बेटा जिहा,जनम धराय हे।
डोले माघ फगुनवा,राजा सरीख अमुवा,
गाड़ी वाला के ठिकाना, पता ला बताय हे।
हे घुनही बँसुरिया,मोर संग चलइया,
दलित खुमान संग,जस बगराय हे।
रामचन्द्र देशमुख, चंदैनी गोंदा के सुख,
मोर गवई गंगा गा,सुर बरसाय हे।।
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(42) मनहरण घनाक्षरी छंद - डॉ. मीता अग्रवाल

हाक पार के बलाव,सुने नही मोर भाव,
बखरी के तुमानार, कइसे रिसाय हे।
माटी कहे कुम्हार से, स्तंभ लिखइया भैया,
सून्ना करे माटी कोरा,बड सुसताय हे।
छइहाँ भुइयाँ संग,गुत्तुर बानी दबंग,
छत्तीसगढ़ी चंदा हा,पार मा लुकाय हे।
लोकगीत धुन सुन,सुरता के भुनभुन,
लक्ष्मण मस्तूरिहा,गीत ममहाय हे।।

रचनाकार - डाॅ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़
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(43)  छप्पय छंद - द्वारिका प्रसाद लहरे

दया मया के गीत, लिखय अउ गावय बढ़िया।
अमर हवय गा नाँव, हमर लक्ष्मन मस्तुरिया।
परे डरे ला संग, लगाये बनके दानी।
ए माटी के लाल, अमर हे तोर कहानी।
जन जन मा तँय छाय जी, सुरता करथें रोज गा।
जल्दी आजा तँय इहाँ, तोर करँय सब खोज गा।।
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(44) छप्पय छंद - द्वारिका प्रसाद लहरे

गुत्तुर तोर अवाज, गीत मा सुमता लाये।
सदा नीत के गोठ, तोर चोला ला भाये।
छत्तीसगढ़ के शान, रोज तोला हे वंदन।
लक्ष्मन हवस महान, तोर पवरी हे चंदन।
श्रद्धा सुमन चढ़ाँय सब, तोला सौ- सौ बार जी।
हमर गाँव अउ राज मा, अउ लेबे अवतार जी।।2।।
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(45) छप्पय छंद - द्वारिका प्रसाद लहरे

भारत माँ के लाल,हमर लक्ष्मण मस्तुरिहा।
रहिबे सबके पास,कभू नइ जावस दुरिहा।
कालजयी हर गीत,सुने मा अति मनभावन।
लोककला के साज,करे तँय जुग-जुग पावन।
छतीसगढ़ के शान तँय,जनकवि हमर महान जी।
जब तक सूरज चाँद हे,होही जग मा मान जी।।

छंदकार - द्वारिका प्रसाद लहरे
बायपास रोड़ कवर्धा छत्तीसगढ़
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(46 ) कुकुभ छंद - राजकुमार बघेल

गाॅऺंव गाॅऺंव ले सबले  बढ़िया, गाॅऺंव हवे जी मस्तूरी ।
ममहावत हे धरती कोरा,हावय जइसे कस्तूरी ।।
छत्तीसगढ़िया बेटा बढ़िया,नाम कमाये तॅऺंय भारी ।
गाय सदा गुणगान हृदय ले,पावन धरती महतारी ।।1।।

पर पीरा ला अपने जाने,बोंय खुशी जिनगानी मा ।
धरती दाई के कण कण ला,बाॅऺंधे मया मितानी मा ।।
खेत खार अउ बहरा डोली, हावय तोर अगोरा मा ।
बोहे नांगर देख किसनहा,फाॅऺंदे बइला जोरा मा ।।2।।

तोर गीत हा अंतस छूथे, सुख दुख आॅऺंखी छलकाथे ।
पंछी बाॅऺंधे साहस पाॅऺंखी,फुर ले सुन के उड़ जाथे ।।
पान पतेरा तोरे सुध मा, मुड़ी अपन डोलाथे जी ।
सरर सरर चलथे पुरवाई,बादर ला डरुवाथे जी ।।3।।

तोर मया मा कुलकत हावय, सिरतो कोला बारी गा ।
जन जन अब ये नइ तो जाने, कखरो चुगरी चारी गा ।।
डोलत हावय मांघ फगुनवा, बने हवय अमुवा राजा ।
परसा रानी करे सियानी, गीत बसंती आ गा जा ।।4।।

चिटिक अॅऺंजोरी निरमल छॅऺंइहा, गली गली बगराये गा ।
बखरी के ये नार तुमा मन, झुमरे नाचे गाये गा ।।
चौंरा मा गोंदा रसिया अउ, सुरता मन भॅऺंवरा गाये ।
दया मया लेजा रे कहिके, शोर पता ला पहुॅऺंचाये ।।5।।

घुनही बजे बसुरिया अइसन, रोवत पड़की अउ मैंना ।
मंगनी मा मांगे नइ मिलय,बोहत सब के ये नैना ।।
धनी बिना ये जग हा लागे,ओना कोना हे सूना ।
काय समाये जियरा बइरी, तन ला खावत हे घूना ।।6।।

करमा ददरिया सुवा बोल ये,मन ला बड़ हरसाथे जी ।
गीत सुने बर कान घलो अउ, सबो जीव लुलवाथे जी ।।
रामचंद्र मस्तुरिहा कोदू , दलित खुमान ग हे साथी ।
राग रागिनी जग मा फइले, जन बल राहिस जस हाथी ।।7।।

बने रहय ये छॅऺंइहा भुॢॅऺंइया, मोर गॅऺंवई ग गंगा ये ।
खाय कमाय कभू झन जावव,राखय जांगर चंगा ये ।।
बंदत जुर मिल धरती मॅऺंइया,हावन तोर निहोरा मा ।
आव जनम ले गाॅऺंव दुबारा, मस्तुरहिन के कोरा मा ।।8।।

- राज कुमार बघेल
ग्राम सेन्दरी बिलासपुर (छ. ग.)
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(47) कुण्डलिया छंद - राजकुमार बघेल

बेटा तहूॅऺं किसान के, जग मा नाम कमाय ।
गली गली मा शोर हे, जन मानस सब भाय ।।
जन मानस सब भाय, अबड़ तोला मस्तुरिहा ।
साहित के सम्मान, बढ़ाये दुरिहा दुरिहा ।।
सुग्घर सरल सुभाव, बाॅऺंध तॅऺंय गर मा फेटा ।
सुख दुख जन जन बाॅऺंट, कहाये माटी बेटा ।।

- राज कुमार बघेल
ग्राम सेन्दरी जिला बिलासपुर (छ.ग.)
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(48)  दोहा छन्द - अशोक धीवर जलक्षत्री

लक्ष्मण मस्तुरिया हवय, ये माटी के शान।
साहित अउ संगीत के, रखे हवय जी मान।1।

छत्तीसगढ़ी गीत ला, गाँव गाँव मा गाय।
बोली भाखा के बने, सुग्घर मान बढ़ाय।2।

दया मया के गोठ ला, गुरतुर शब्द सुनाय।
लोगन के अंतस छुये, जनकवि वो कहलाय।3।

संग चलव कहिके अपन , बढ़िया गीत बनाय।
परे डरे ला संग मा, लेके सँघरा जाय।4।

गाड़ी वाला लेग जा, पता अपन दे जाव।
मस्तुरिया जी हा कहे, मोर संग सब आव।5।

बंदत हँव दिन रात वो, कहत करे जयकार।
छत्तीसगढ़ के पूत बन, सेवा करे अपार।6।

छत्तीसगढ़ के तँय रतन, बेटा बने कहाय।
अढ़िया समझे तँय खुदे, सब ला बढ़िया भाय।7।

पार पाय नइ हम सकन, भाव गीत के तोर।
नइ भूलन उपकार ला, श्रद्धांजलि हे मोर।8।

खाली रइही वो जघा, जेमा लक्ष्मण जाय।
भाषा के सम्मान बर, जिनगी अपन खपाय।9।

रइही मस्तुरिया अमर, जुग जुग चलही नाम।
वोकर नाम लिए बिना, सुन्ना साहित धाम।10।

"जलक्षत्री" हा गीत के, पार  पाय ना तोर।
माटी महिमा गाय हव, दया मया ला जोर।11।

छंदकार - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
ग्राम - तुलसी (तिल्दा नेवरा) जिला - रायपुर (छत्तीसगढ़)
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(49) "लावणी छंद"-अश्वनी कोसरे

तोर नाव ला रोजे लेवँय, भुइँया के बने नँगरिया|
दया मया के गीत सुनादे, आ तँय लछिमन मस्तुरिया||

किंदरावँय भवँरा ला कोनो, खेती बर धनहा परिया|
कहाँ लुका गे जाके भैया, मोर सुमत के मस्तुरिया||

कोन बताही रस्ता हमला, कोन उठाही परे डरे|
तोर सुमत के सरग निसेनी, कोन चढा़ही संग धरे||

पड़की मैना के वो गाना, कोन सुनाहीं तान भरे|
नैना ला कजरेली करके, बान चलाहीं पीर परे||

झुूलत हावय अँखियन मोरे , छत्तीसगढ़ के माटीहा|
भारत माँ के रतन बेटा, बाना बांधे छाती हा||

तोर गीत संगीत अमर हे, रहि-रहि के सुरता आही|
फिटिक अँजोरी के बगरे ले, छइँहा भुइँया ममहाही||

गावत झूँमय सावन भादो, नाचे फागुन जहूँरिया|
लोक धून मा थिरकँय तोरे, करमा बड़ झोर ददरिया||

दीन दुखी के मरम समझ के, फुलगी पानी अमराये|
गुरुतुर भाखा बोली बानी, राज -राज तँय बगराये||

छंदकार -अश्वनी कोसरे
रहँगी पोड़ी कवर्धा कबीरधाम
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(50) दोहा छंद - रामकली कारे

कवि लक्ष्मण जी ला नमन, जन्मदिवस के आज।
जनमानस नायक हवै, गीत कार सुर साज।।

अनुपम सिरजन लेखनी, मस्तुरिया के गीत।
संग चलव अभियान ले, बनगे हे सब मीत।।

अरपा पैरी धार हर, होय हमर अभिमान।
राज गीत बनगे हवै, छत्तीसगढ़ी शान।।

रचे बसे हे गाॅव मा, गुरतुर हावय बोल।
अंतस ला छू जाय जी, तनमन जावय डो़ल।।

लोक कला संगीत ले, जन जन दय संदेश।
चंदैनी गोंदा बना, हरै सबों के क्लेश।।

बेटा छत्तीसगढ़ के, कण कण बसथव आप।
सहज सरल समभाव ले, छोड़िन हिरदय छाप।।

हीरा अस चमकत रहै, कवि लक्ष्मण के नाम।
हवै धरोहर लेखनी, मस्तुरिया निज धाम।।

छंदकार - रामकली कारे
बालको नगर कोरबा, छत्तीसगढ़
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(51) रोला छंद - विरेन्द्र कुमार साहू

माटी के तैं लाल , नाव लक्ष्मण मस्तुरिया।
सिरतों मा तैं आस , राज के गहना गुरिया।
बंजर ला हरियाय , घटा घन बदरा बनके।
कभू बने आवाज , बाँसुरी माँदर मनके।।
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(52) रोला छंद - विरेन्द्र कुमार साहू

साधे सुमत बिचार , गीत मा सूर कबीरा।
छोड़ सबे पद मान , लिखे तैं जन के पीरा।
माँगे जब संसार , कला के बदला धन ला।
बन माटी के दास , लगाये लक्ष्मण तन ला।।
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(53) रोला छंद - विरेन्द्र कुमार साहू

गिरे परे के यार , गीत मा बधे मितानी।
भूखा ला दे भोग , पिया प्यासा ला पानी।
बतलाये तँय बात , मयारू माई भुँइया।
इनकर ले अउ खास ,नहीं हे जग मा गुँइया।।
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(54) रोला छंद - विरेन्द्र कुमार साहू

आज जरूरत तोर , मान बर महतारी के।
आस पुरोबे घात , राज के नर नारी के।
पाँव परत हे वीर , तोर लक्ष्मण मस्तुरिया।
आबे हमरे राज , जनम धर छत्तिसगढ़िया।।4।।

छंदकार - विरेन्द्र कुमार साहू , बोड़राबाँधा (राजिम) जिला - गरियाबंद(छत्तीसगढ़) 492109 , मो. 9993690899
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(55) सार छंद - कवि लक्ष्मण मस्तुरिया - विरेन्द्र कुमार साहू

माई भुँइया के  माटी ला, चंदन सहीं लगावय।
मान करे बर ए भुँइया के, काया फूल चढ़ावय।

समझय सौंहत के महतारी, उन भाखा अउ माटी।
बन के रहिना चाहय लक्ष्मण, महतारी के साँटी।

अपन आप मा गीतमहल जे, नोहय छितका कुरिया।
माटी पीरा गीत लिखइया, कवि लक्ष्मण मस्तुरिया।

गिरे परे के हितवा बनके, छाती मा लोटावय।
बानी बनके बइरी मन ला, बघवा कस गुर्रावय।

स्वाभिमान ला जिंदा राखय, लालच मा नइ आवय।
परदेशी जुठलँगरा मन ला, लात मार लतियावय।

कँदरत हावय भोरमदेवा, रोवत हे तुरतुरिया।
काहाँ पावँव तोर सहीं सुत, कवि लक्ष्मण मस्तुरिया।

संझा अउ बिहना मिहनत के, भजन आरती गावय।
तन तूमा ला तमुरा छाके, गुरतुर राग बजावय।

अपन कला हथियार बनाके, जग ले लड़ भिड़ जावय।
रतन लाल बन महतारी के, मान जगत मा पावय।

खुद हाँसत जग ला रोवाके, हो गय हमले दुरिया।
सफल जनम कर डारे तँय हा, कवि लक्ष्मण मस्तुरिया।

छंदकार - विरेन्द्र कुमार साहू, ग्राम - बोड़राबाँधा (पाण्डुका), जिला - गरियाबंद(छ.ग.) 9993690899
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(56) रोला छंद - श्लेष चन्द्राकर

हमर राज के शान, रिहिन कवि मस्तुरिया जी।
इहाँ बनाइन खास, अपन छवि मस्तुरिया जी।।
लिखे बने जसगीत, राज मा जन-जन गाथें।
उनकर गुरतुर गीत, सबो ला अबड़ सुहाथें।।
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(57) रोला छंद - श्लेष चन्द्राकर

दीनन मन ला देख, आह अब्बड़ ओ भरतिन।
जनता मन के पीर, गीत मा प्रस्तुत करतिन।।
लक्ष्मण जी के बोल, सबो के छूवय अंतस।
ओ जन कवि के गीत, कभू नइ लागय नीरस।।2।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुन्द, छत्तीसगढ़
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(58)  आल्हा छंद - श्लेष चन्द्राकर

जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया ला, सुरता रखही हमर समाज।
अमर इहाँ ओ होगिन हे जी, जन-मानस के बन आवाज।।

सुग्घर-सुग्घर गीत रचिन हे, रखिन हवय गा नवा विचार।
अमर गीत मन ले ओला जी, सुरता रखही ये संसार।।

रचना मन हा महापुरुष के, ढले साज मा बने अमोल।
रोवत हावय उनकर बिन गा, झांझ मँजीरा माँदर ढोल।।

सदा करिन हे रचना मन मा, लक्ष्मण जी भुँइया के गोठ।
ध्येय बनाके चलत रिहिन हे, महतारी भाखा हो पोठ।।

छत्तीसगढ़ी भाखा ला गा, मस्तुरिया जी दिन सम्मान।
घूम-घूम के रचना पढ़के, विश्व मंच मा दिन पहिचान।।

लोकगीत के परंपरा ला, करिन बचाये के ओ काम।
अपन लिखाइन मस्तुरिया जी, सोना के आखर मा नाम।।

विषय उठाइन गाँव गली के, मनखे मनके ओ बन बोल।
नव पीढ़ी ला सुनना चाही, हरदम उनकर गीत अमोल।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुन्द(छ.ग.)
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(59) रोला छन्द - बृजलाल दावना

संग चलव जी मोर  , कहे लक्ष्मण मस्तुरिया।
अइसन गाये गीत , बसे हर दिल के कुरिया ।।
बंदत हॅव दिन रात , मयारु छत्तीसगढ़िया।
भारत मां के रतन , पूत  सबले जी बढ़िया।।
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(60) रोला छन्द - बृजलाल दावना

छॅइहा भुॅइयाॅ छोड़ , कहां कोई सुख पाये।
झन जाहू परदेश ,   सबो ला तै चेताये।।
अपन ठाॅव झन छोड़ ,सॅगी दुख मिलथे भारी ।
आनी  बानी रोग  , घेर लेथे  बीमारी।।
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(61) रोला छन्द - बृजलाल दावना

पॅड़की मैना गीत , मया के धार बहाये।
बइरी बर जी तोर , कलम आगी बन जाये।।
बड़ सिधवा जी रूप, बचन भाखा अउ  बोली।
अतियाचारी देख , कलम ले निकलै गोली।।
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(62) रोला छन्द - बृजलाल दावना

फागुन के वो गीत , गाय तॅय सुग्घर बानी।
राजा आमा मउर, फूल परसा हे रानी।।
अमर लेखनी तोर , आज सब सुरता आथे।
गाना सुनके तोर , नवा सब गीत बनाथे।।
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(63) रोला छन्द - बृजलाल दावना
अउ कब आबे फेर , गीत तॅय नावा गढ़के।।
तोर बिना हे सून , कोख ह छत्तीसगढ़ के।।
बहथे आंसू धार ,सिहरगे अंतस कुरिया।
नमन करॅव कर जोर , देव लक्ष्मण मस्तुरिया।।

- परमानंद बृजलाल दावना
 भैंसबोड़, जिला धमतरी
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(64) कुण्डलिया छन्द - सुकमोती चौहान

होगिन मस्तुरिहा अमर,अमर कर्म के गीत।
ओकर अब्बड़ नाम हे, जन जन के मनमीत।।
जन जन के मनमीत,महा गायक मस्तुरिहा।
सरल रहिस व्यवहार,रखिन दुखिया ला जुरिहा।।
सुनलव रुचि के गोठ,मया के बिरवा बों गिन।
सबो करत हें याद,अमर मस्तुरिहा होगिन।।

- सुकमोती चौहान "रुचि"
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.
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(65) आल्हा छंद- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

भारत माँ के रतन ग बेटा, अउ जे छत्तीसगढ़ सपूत ।
लक्ष्मन मस्तुरिहा गा भइया, रहिस मया क़े सुग्घर दूत ।।

संग चलव सब कहिके मितवा, दिये अकेल्ला हमला छोड़ ।
सुरता आथे रहि रहि तोरे, गीत मया गाये बेजोड़ ।।

आँख बदरिया सावन बरसे, मन रइथे जी मोर उदास ।
घर कुरिया सुन्ना रे मितवा, तोर बिना नइ आवय रास ।।

रंग फगुनवा देख उड़ागे, बखरी तूमा नार सुखाय ।
नाम पता अब कोंन बतावय, गाड़ीवाला घर धुँधवाय ।।

पुन्नी चंदा बदरी छुपगे, मया पिरित होगे अँधियार ।
नइ तो कोई देवय अब गा, मँगनी माँगे मया उधार ।।

चौरा गोंदा फूल सुखागे, बारी के जी मोर पताल ।
छइहाँ भुइयाँ छोड़ जवइया, देख जरा अब आके हाल ।।

मोल करव कुछ नेकी संगी, ये जिनगी हे हाट बजार ।
चलव कमाबो जुरमिल भइया, रुनझुन लागय खेती खार ।।
 
जाने वाले ओ जी ज्ञानी, छोड़ गये परहित गुन वेद ।
देख कोंन कतका समझत हे, तोर बसे अंतस के भेद ।।

अहो गजानन स्वामी सुन ले, लउटा दे गुदड़ी के लाल ।
पड़की मैना फिर से गावय, मया पिरित के बइठे डाल ।।

छंदकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
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संकलनकर्ता - अरुण कुमार निगम
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