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Sunday, February 2, 2020

वासंती फरवरी


कम-उम्र बदन से छरहरी
लाई वसंत फिर फरवरी।

शायर कवियों का दिल लेकर
शब्दों का मलयानिल लेकर
गाती है करमा ब्याह-गीत
पंथी पंडवानी भरथरी
लाई वसंत फिर फरवरी।

गुल में गुलाब का दिवस लिए
इक प्रेम-दिवस भी सरस लिए
है पर्यावरण प्रदूषित पर
बातें इसकी हैं मदभरी
लाई वसंत फिर फरवरी।

इसकी भी अपनी हस्ती है
इसमें मेलों की मस्ती है
नमकीन मधुर कुछ खटमीठी
थोड़ी तीखी कुछ चरपरी
लाई वसंत फिर फरवरी।

यह बारह भाई-बहनों में
इकलौती सजती गहनों में
यूँ आती यूँ चल देती है
बस नजर डाल कर सरसरी
लाई वसंत फिर फरवरी।

सुख शेष कहाँ अब जीवन में
घुट रही साँस वातायन में
कुछ राहत सी दे जाती है
बन स्वप्न-लोक की जलपरी
लाई वसंत फिर फरवरी।

रचनाकार - अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग छत्तीसगढ़

12 comments:

  1. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार ४ फरवरी २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  3. शानदार रचना।
    आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ। ब्लॉग जगत में गिनचुन कर इनमिन साढ़े तीन जने ही है जो लाजवाब लिखते है। उनमें से एक आप हैं।
    मेरे ब्लॉग तक भी पहुंचिए, लिंक लोकतंत्र 

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    Replies
    1. आपका आभार। 2009 से 2013 तक ब्लॉगिंग में सक्रिय रहा। उस दौर में बहुत अच्छे लिखने वाले थे, माहौल भी अच्छा था। फिर उनकी सक्रियता धीरे धीरे कम होती गई और मेरी भी उपस्थिति कम हो गई। कई बार कोशिश की किन्तु जीवन की आपाधापी ने पहले जैसी उपस्थिति नहीं रखने दी।

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  4. वाह बहुत ही बढ़िया ...

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  5. वाह
    बहुत सुंदर

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  6. बहुत सुन्दर सरस एवं अप्रतिम सृजन
    वाह!!!

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