दोहा-गीत
वन उपवन खोते गए, जब से हुआ विकास ।
सच पूछें तो हो गया, जीवन कारावास ।।
पवन विषैली आज की, पनप रहे हैं रोग ।
जल की निर्मलता गई, आये जब उद्योग ।।
अजगर जैसे आज तो, शहर निगलते गाँव ।
बुलडोजर खाने लगे, अमराई की छाँव ।।
वर्तमान में हैं सभी, सुविधाओं के दास ।
सच पूछें तो हो गया, जीवन कारावास ।।
रही नहीं मुंडेर अब, रहे नहीं अब काग ।
पाहुन अब आते नहीं, मिटा स्नेह-अनुराग ।।
वन्य जीव की क्या कहें, गौरैया भी लुप्त ।
रहा नहीं वातावरण, जीने को उपयुक्त ।।
उत्सव की संख्या बढ़ी, मन का गया हुलास ।
सच पूछें तो हो गया, जीवन कारावास ।।
पुत्र पिता-हन्ता हुआ, माँ के हरता प्राण ।
मनुज मशीनों में ढला, कौन करे परित्राण ।।
भाई भाई लड़ रहे, कैसा आया दौर ।
राम-राज दिखता नहीं, रावण हैं सिरमौर ।।
प्रतिदिन होता जा रहा, मानवता का ह्रास ।
सच पूछें तो हो गया, जीवन कारावास ।।
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग
छत्तीसगढ़
वन उपवन खोते गए, जब से हुआ विकास ।
सच पूछें तो हो गया, जीवन कारावास ।।
पवन विषैली आज की, पनप रहे हैं रोग ।
जल की निर्मलता गई, आये जब उद्योग ।।
अजगर जैसे आज तो, शहर निगलते गाँव ।
बुलडोजर खाने लगे, अमराई की छाँव ।।
वर्तमान में हैं सभी, सुविधाओं के दास ।
सच पूछें तो हो गया, जीवन कारावास ।।
रही नहीं मुंडेर अब, रहे नहीं अब काग ।
पाहुन अब आते नहीं, मिटा स्नेह-अनुराग ।।
वन्य जीव की क्या कहें, गौरैया भी लुप्त ।
रहा नहीं वातावरण, जीने को उपयुक्त ।।
उत्सव की संख्या बढ़ी, मन का गया हुलास ।
सच पूछें तो हो गया, जीवन कारावास ।।
पुत्र पिता-हन्ता हुआ, माँ के हरता प्राण ।
मनुज मशीनों में ढला, कौन करे परित्राण ।।
भाई भाई लड़ रहे, कैसा आया दौर ।
राम-राज दिखता नहीं, रावण हैं सिरमौर ।।
प्रतिदिन होता जा रहा, मानवता का ह्रास ।
सच पूछें तो हो गया, जीवन कारावास ।।
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग
छत्तीसगढ़
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 09/01/2019 की बुलेटिन, " अख़बार की विशेषता - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सटीक दोहा गीत ...
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (11-01-2019) को "विश्व हिन्दी दिवस" (चर्चा अंक-3213) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह बहुत सुदर दोहे .
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