"कृषक पर एक गीत"
कृषक रूप में हर प्राणी को, धरती का भगवान मिला।
कृषि-प्रधान यह देश किन्तु क्या,कृषकों को सम्मान मिला ?
(1)
सुख सुविधा का मोह त्याग कर, खेतों में ही जीता है।
विडम्बना लेकिन यह देखो, उसका ही घर रीता है।
कर्म भूमि में उसके हिस्से, मौसम का व्यवधान मिला।
कृषि-प्रधान यह देश किन्तु क्या,कृषकों को सम्मान मिला ?
(2)
चाँवल गेहूँ तिलहन दलहन, साग-सब्जियाँ फल देता।
अन्न खिलाता दूध पिलाता, बदले में वह क्या लेता?
भ्रष्ट व्यवस्था में चलते क्या, कभी उचित अनुदान मिला।
कृषि-प्रधान यह देश किन्तु क्या,कृषकों को सम्मान मिला ?
(3)
उद्योगों ने खेत निगल कर, शक्तिहीन कर डाला है।
भूमि माफिया को सत्ता ने, बड़े जतन से पाला है।
देख दुर्दशा भूमि पुत्र की, रोता हिन्दुस्तान मिला।
कृषि-प्रधान यह देश किन्तु क्या,कृषकों को सम्मान मिला ?
रचनाकार - अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग
छत्तीसगढ़
कृषक रूप में हर प्राणी को, धरती का भगवान मिला।
कृषि-प्रधान यह देश किन्तु क्या,कृषकों को सम्मान मिला ?
(1)
सुख सुविधा का मोह त्याग कर, खेतों में ही जीता है।
विडम्बना लेकिन यह देखो, उसका ही घर रीता है।
कर्म भूमि में उसके हिस्से, मौसम का व्यवधान मिला।
कृषि-प्रधान यह देश किन्तु क्या,कृषकों को सम्मान मिला ?
(2)
चाँवल गेहूँ तिलहन दलहन, साग-सब्जियाँ फल देता।
अन्न खिलाता दूध पिलाता, बदले में वह क्या लेता?
भ्रष्ट व्यवस्था में चलते क्या, कभी उचित अनुदान मिला।
कृषि-प्रधान यह देश किन्तु क्या,कृषकों को सम्मान मिला ?
(3)
उद्योगों ने खेत निगल कर, शक्तिहीन कर डाला है।
भूमि माफिया को सत्ता ने, बड़े जतन से पाला है।
देख दुर्दशा भूमि पुत्र की, रोता हिन्दुस्तान मिला।
कृषि-प्रधान यह देश किन्तु क्या,कृषकों को सम्मान मिला ?
रचनाकार - अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग
छत्तीसगढ़
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (28-12-2018) को "नव वर्ष कैसा हो " (चर्चा अंक-3199)) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
कटु सत्य को उजागर करती बहुत मर्मस्पर्शी रचना...
ReplyDeleteइतिहास के पन्ने पलटें तो पता लगता है कि कृषकों के साथ न्याय सदियों से नहीं हुआ है .हर व्यवस्था ने लाचार जान कर उन्हें ुपेक्षित किया .
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