एक श्रृंगार गीत -
कजरे गजरे झाँझर झूमर चूनर ने उकसाया था
हार गले के टूट गए कुछ ऐसे अंक लगाया था ।
हरी चूड़ियाँ टूट गईं क्यों सुबह सुबह तुम रूठ गईं
कल शब तुमने ही तो मुझको अपने पास बुलाया था।
हाथों की मेंहदी न बिगड़ी और महावर ज्यों की त्यों
होठों की लाली को तुमने खुद ही कहाँ बचाया था।
जितनी करवट उतनी सलवट इस पर काहे का झगड़ा
रेशम की चादर को बोलो किसने यहाँ बिछाया था।
झूठ कहूँ तो कौआ काटे मैंने दिया जलाया था
खता तुम्हारी थी तुमने तो खुद ही दिया बुझाया था।
नई चूड़ियाँ ले लेना तुम हार नया बनवा लेना
अभी अभी तो पिछले हफ्ते ही इनको बनवाया था।
*अरुण कुमार निगम*
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
कजरे गजरे झाँझर झूमर चूनर ने उकसाया था
हार गले के टूट गए कुछ ऐसे अंक लगाया था ।
हरी चूड़ियाँ टूट गईं क्यों सुबह सुबह तुम रूठ गईं
कल शब तुमने ही तो मुझको अपने पास बुलाया था।
हाथों की मेंहदी न बिगड़ी और महावर ज्यों की त्यों
होठों की लाली को तुमने खुद ही कहाँ बचाया था।
जितनी करवट उतनी सलवट इस पर काहे का झगड़ा
रेशम की चादर को बोलो किसने यहाँ बिछाया था।
झूठ कहूँ तो कौआ काटे मैंने दिया जलाया था
खता तुम्हारी थी तुमने तो खुद ही दिया बुझाया था।
नई चूड़ियाँ ले लेना तुम हार नया बनवा लेना
अभी अभी तो पिछले हफ्ते ही इनको बनवाया था।
*अरुण कुमार निगम*
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (24-08-2017) को "नमन तुम्हें हे सिद्धि विनायक" (चर्चा अंक 2706) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार आदरणीय
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