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Tuesday, July 30, 2013

गज़ल : मेरा भी दौर था.....



इसी  आंगन  सदा  साया रहा हूँ
भरे  सावन में  भी  सूखा रहा हूँ ||

नज़र की रोशनी जिस पर लुटाई
उसी की आँख  में  चुभता रहा हूँ ||

जवानी खो  गई थी परवरिश में
सदा   तेरे   लिये   बूढ़ा  रहा  हूँ ||

मुझे  तू  भूल  कर  परदेश  बैठा
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ ||

मशीनों आज का है दिन तुम्हारा
मेरा भी  दौर था  चरखा रहा हूँ ||

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट,विजय नगर,जबलपुर (मध्यप्रदेश)

(ओबीओ लाइव तरही मुशायरा में शामिल मेरी गज़ल)

12 comments:

  1. 'मेरा भी दौर था चरखा रहा हूँ'
    कितनी अद्भुत बात प्रगट हो आई है!
    वाह!

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  2. बहुत उम्दा पेशकश...!
    साझा करने के लिए आभार!

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  3. यूं तो चरखा भी एक मशीन का ही रूप है ॥बस वो हाथ से चलाया जाता है ....

    गहन भाव लिए खूबसूरत गज़ल

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  4. आपने लिखा....
    हमने पढ़ा....और लोग भी पढ़ें;
    इसलिए बुधवार 031/07/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in ....पर लिंक की जाएगी.
    आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    लिंक में आपका स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  5. वाह....
    नज़र की रोशनी जिस पर लुटाई
    उसी की आँख में चुभता रहा हूँ ||
    बेहतरीन ग़ज़ल...

    सादर
    अनु

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  6. जवानी खो गई थी परवरिश में
    सदा तेरे लिये बूढ़ा रहा हूँ ||..वाह क्या बात है ,बहुत सुन्दर..

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  7. सुन्दर-
    शुभकामनायें-आदरणीय-

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  8. मशीनों आज का है दिन तुम्हारा
    मेरा भी दौर था चरखा रहा हूँ ||

    बहुत खूब,लिखा अरुण जी,,,बधाई,,,

    RECENT POST: तेरी याद आ गई ...

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  9. आदरणीय श्रीमान जी,
    सादर प्रणाम
    बहुत ही खूबसूरत गजल |
    अभी मैं खुद ,गजल का विद्यार्थी हूँ ...और ओ बी ओ जैसे मंच पर
    आपकी गजलो से काफी सीख मिलती रही हैं |
    एक शाम संगम पर {नीति कथा -डॉ अजय }

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  10. मशीनों आज का है दिन तुम्हारा
    मेरा भी दौर था चरखा रहा हूँ ||
    ......बेहतरीन ग़ज़ल... बधाई

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  11. मुझे तू भूल कर परदेश बैठा
    तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ || sacchi bat do took kah dee ....

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