प्राची से चली प्रतीची तक
प्रणय तृषित व्याकुल वसुधा
कब क्षितिज मिलन का द्वार हुआ
आकाश-मिलन बस एक क्षुधा.
तारावलियाँ चंचल किरणें
बारात सजी आभास हुआ
जब स्वप्न टूट कर बिखर गये
पतझर जैसा मधुमास हुआ.
वह सुधा-कलश सी चंद्रकला
सौतन जीवन की क्षणिकायें
वसुधा का रुदन, तृण का आँचल
उस पर बिखरी जल कणिकायें
नक्षत्रों से पलकें झपकीं
विस्मृत सारा उल्लास हुआ
जब स्वप्न टूट कर बिखर गये
पतझर जैसा मधुमास हुआ.
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)
(रचना वर्ष-1974)
नक्षत्रों से पलकें झपकीं
ReplyDeleteविस्मृत सारा उल्लास हुआ
जब स्वप्न टूट कर बिखर गये
पतझर जैसा मधुमास हुआ.
Gahan Bhav....
बहुत ही बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
नक्षत्रों से पलकें झपकीं
ReplyDeleteविस्मृत सारा उल्लास हुआ
जब स्वप्न टूट कर बिखर गये
पतझर जैसा मधुमास हुआ.
वाह .. बहुत सुन्दर रचना ..
बहुत ही बढ़िया ........
ReplyDeleteतारावलियाँ चंचल किरणें
बारात सजी आभास हुआ
जब स्वप्न टूट कर बिखर गये
पतझर जैसा मधुमास हुआ..
सुन्दर...
ReplyDeleteजब स्वप्न टूट कर बिखर गये
पतझर जैसा मधुमास हुआ.
बहुत खूब...
नक्षत्रों से पलकें झपकीं
ReplyDeleteविस्मृत सारा उल्लास हुआ
जब स्वप्न टूट कर बिखर गये
पतझर जैसा मधुमास हुआ... नक्षत्रों से पलकें , क्या कल्पना है ! सपने टूट जाते हैं तो ऐसा ही होता है
//नक्षत्रों से पलकें झपकीं
ReplyDeleteविस्मृत सारा उल्लास हुआ
जब स्वप्न टूट कर बिखर गये
पतझर जैसा मधुमास हुआ.
bahut bahut sundar kavita sir..
bahut hi sundar ...!!
ReplyDeleteअरुण भाई धन्यवाद कविता के युग में पहुंचा दिया है आपने
ReplyDeleteकबीर से लेकर गुप्त काल सभी प्रकार की विधा है
माँ सरस्वती की कृपा बनी रहे आप पे
आज जहाँ कविता के क्षेत्र में फूहडता पद्मश्री लुट रही है
उन्हें एक बार यहाँ आ कर देखना चाहिए.
नक्षत्रों से पलकें झपकीं
ReplyDeleteविस्मृत सारा उल्लास हुआ
जब स्वप्न टूट कर बिखर गये
पतझर जैसा मधुमास हुआ..........बहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 30-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
जब स्वप्न टूट कर बिखर गये
ReplyDeleteपतझर जैसा मधुमास हुआ.
सुंदर शब्दों और भावों से सजी कविता|
वह सुधा-कलश सी चंद्रकला
ReplyDeleteसौतन जीवन की क्षणिकायें
वसुधा का रुदन, तृण का आँचल
उस पर बिखरी जल कणिकायें
सुन्दर चित्रण.......
क्या बात है ...वाह
ReplyDeleteवह सुधा-कलश सी चंद्रकला
ReplyDeleteसौतन जीवन की क्षणिकायें
वसुधा का रुदन, तृण का आँचल
उस पर बिखरी जल कणिकायें
प्राची से चली प्रतीची तक ...काव्य सौन्दर्य देखते ही बनता है इन पंक्तियों में ...उत्कृष्ट रचना .
कितनी खूबसूरत है रचना ... ह्रदयस्पर्शी पंक्तियाँ .
ReplyDeleteअनुपम भाव संयोजन लिए हुए बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
ReplyDeleteह्रदयस्पर्शी पंक्तियाँ ..सुन्दर भाव लिए लाजवाब अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...गज़ब की भाषा
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...गज़ब की भाषा
ReplyDeletethanx. mere blog ka smarthan karne hetu .anupam bhav mai rachna hae aaj aapki.
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