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Saturday, January 7, 2012

गज़ल


ये मेहनत गाँव में करते तो अपना घर बना लेते
या  बूढ़े बाप की लाठी को , ताकतवर बना लेते.

इबादत काम की करते औ होता खेत ही मंदिर
कुदाली , हल को अपनी देह का जेवर बना लेते.

अगर  सूखा  पड़ा होता ,  पसीना यूँ बहाते हम
कभी  गेहूँ  बना  देते  , कभी  अरहर  बना लेते.

लुटाते गाँव में खुशियाँ , बहाते प्यार का अमृत
जहर पी -पी के अपने आप को शंकर बना लेते.

सुबह गाते भजन औ रात को कजरी सुनाते हम
अरुण गर शहर ना आते तो अपना घर बना लेते.

("ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में शामिल)

 

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग ( छत्तीसगढ़ )
विजय नगर , जबलपुर ( मध्य प्रदेश )

24 comments:

  1. agar shahar na aate to apna ghar bana lete....bahut sachchaai chupi hai in shabdon me.bahut achchi ghazal.

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  2. ्बहुत शानदार प्रस्तुति।

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  3. अगर सूखा पड़ा होता , पसीना यूँ बहाते हम
    कभी गेहूँ बना देते , कभी अरहर बना लेते...waah waah

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  4. लुटाते गाँव में खुशियाँ , बहाते प्यार का अमृत
    जहर पी -पी के अपने आप को शंकर बना लेते.

    शानदार गज़ल अरुण भईया....
    सादर.

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  5. बेहतरीन गजल।

    सादर

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  6. वाह वाह...
    बेहतरीन...

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  7. ***रश्मि प्रभा... has left a new comment on your post "गज़ल":

    अगर सूखा पड़ा होता , पसीना यूँ बहाते हम
    कभी गेहूँ बना देते , कभी अरहर बना लेते...waah waah
    Posted by रश्मि प्रभा... to अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ) at January 7, 2012 11:59 AM

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  8. एक अदद छत की तलाश में दर-दर भटकता आदमी।

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  9. अगर सूखा पड़ा होता , पसीना यूँ बहाते हम
    कभी गेहूँ बना देते , कभी अरहर बना लेते.

    बिल्कुल नई भावभूमि पर रची गई सुंदर रचना।

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  10. ईमानदार कसक और टीस.

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  11. इबादत काम की करते औ ‘ होता खेत ही मंदिर
    कुदाली , हल को अपनी देह का जेवर बना लेते.

    बहुत खूब ।

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  12. लुटाते गाँव में खुशियाँ , बहाते प्यार का अमृत
    जहर पी -पी के अपने आप को शंकर बना लेते.

    सुबह गाते भजन औ रात को कजरी सुनाते हम
    अरुण गर शहर ना आते तो अपना घर बना लेते.
    badhai Nigam sahab ....bhai Vah kya khoob likha hai apne.

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  13. bahut sundar gazal..kitne sundar aur haqiqat se jude she'r .. Badhai.. Navvarsh par shubhkaamnayen

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  14. शब्दों की अनवरत और गहन अभिवयक्ति........ और सार्थक पोस्ट.....

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  15. सुबह गाते भजन औ रात को कजरी सुनाते हम
    अरुण गर शहर ना आते तो अपना घर बना लेते.

    अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति ..

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  16. बहुत सुन्दर भाव
    आशा

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  17. सुंदर रचना।
    गहरे भाव।

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  18. बहुत अच्छी गजल...अच्छे भावों से सजी|
    ओ बी ओ पर दोहे भी पढ़े-'श्रद्धा के दो फूल' ये दोहा बहुत पसंद आया|
    सभी दोहे अच्छे थे|

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  19. बेहद ख़ूबसूरत एवं उम्दा अभिव्यक्ति ! बधाई !

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  20. *****संगीता स्वरुप ( गीत ) has left a new comment on your post "गज़ल":

    खूबसूरत गज़ल

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  21. bahu hi sundar sir is gajal ne to dil jeet liya !!

    ये मेहनत गाँव में करते तो अपना घर बना लेते
    या बूढ़े बाप की लाठी को , ताकतवर बना लेते.

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