ये मेहनत गाँव में करते तो अपना घर बना लेते
या बूढ़े बाप की लाठी को , ताकतवर बना लेते.
इबादत काम की करते औ ‘ होता खेत ही मंदिर
कुदाली , हल को अपनी देह का जेवर बना लेते.
अगर सूखा पड़ा होता , पसीना यूँ बहाते हम
कभी गेहूँ बना देते , कभी अरहर बना लेते.
कभी गेहूँ बना देते , कभी अरहर बना लेते.
लुटाते गाँव में खुशियाँ , बहाते प्यार का अमृत
जहर पी -पी के अपने आप को शंकर बना लेते.
सुबह गाते भजन औ रात को कजरी सुनाते हम
अरुण गर शहर ना आते तो अपना घर बना लेते.
("ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में शामिल)
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग ( छत्तीसगढ़ )
विजय नगर , जबलपुर ( मध्य प्रदेश )
agar shahar na aate to apna ghar bana lete....bahut sachchaai chupi hai in shabdon me.bahut achchi ghazal.
ReplyDelete्बहुत शानदार प्रस्तुति।
ReplyDeleteअगर सूखा पड़ा होता , पसीना यूँ बहाते हम
ReplyDeleteकभी गेहूँ बना देते , कभी अरहर बना लेते...waah waah
बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteलुटाते गाँव में खुशियाँ , बहाते प्यार का अमृत
ReplyDeleteजहर पी -पी के अपने आप को शंकर बना लेते.
शानदार गज़ल अरुण भईया....
सादर.
बेहतरीन गजल।
ReplyDeleteसादर
वाह वाह...
ReplyDeleteबेहतरीन...
***रश्मि प्रभा... has left a new comment on your post "गज़ल":
ReplyDeleteअगर सूखा पड़ा होता , पसीना यूँ बहाते हम
कभी गेहूँ बना देते , कभी अरहर बना लेते...waah waah
Posted by रश्मि प्रभा... to अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ) at January 7, 2012 11:59 AM
एक अदद छत की तलाश में दर-दर भटकता आदमी।
ReplyDeleteअगर सूखा पड़ा होता , पसीना यूँ बहाते हम
ReplyDeleteकभी गेहूँ बना देते , कभी अरहर बना लेते.
बिल्कुल नई भावभूमि पर रची गई सुंदर रचना।
ईमानदार कसक और टीस.
ReplyDeleteइबादत काम की करते औ ‘ होता खेत ही मंदिर
ReplyDeleteकुदाली , हल को अपनी देह का जेवर बना लेते.
बहुत खूब ।
लुटाते गाँव में खुशियाँ , बहाते प्यार का अमृत
ReplyDeleteजहर पी -पी के अपने आप को शंकर बना लेते.
सुबह गाते भजन औ रात को कजरी सुनाते हम
अरुण गर शहर ना आते तो अपना घर बना लेते.
badhai Nigam sahab ....bhai Vah kya khoob likha hai apne.
bahut sundar gazal..kitne sundar aur haqiqat se jude she'r .. Badhai.. Navvarsh par shubhkaamnayen
ReplyDeleteशब्दों की अनवरत और गहन अभिवयक्ति........ और सार्थक पोस्ट.....
ReplyDeleteसुबह गाते भजन औ रात को कजरी सुनाते हम
ReplyDeleteअरुण गर शहर ना आते तो अपना घर बना लेते.
अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति ..
खूबसूरत गज़ल
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव
ReplyDeleteआशा
सुंदर रचना।
ReplyDeleteगहरे भाव।
बहुत अच्छी गजल...अच्छे भावों से सजी|
ReplyDeleteओ बी ओ पर दोहे भी पढ़े-'श्रद्धा के दो फूल' ये दोहा बहुत पसंद आया|
सभी दोहे अच्छे थे|
arthpurn gahre bhaav, aabhar.
ReplyDeleteबेहद ख़ूबसूरत एवं उम्दा अभिव्यक्ति ! बधाई !
ReplyDelete*****संगीता स्वरुप ( गीत ) has left a new comment on your post "गज़ल":
ReplyDeleteखूबसूरत गज़ल
bahu hi sundar sir is gajal ne to dil jeet liya !!
ReplyDeleteये मेहनत गाँव में करते तो अपना घर बना लेते
या बूढ़े बाप की लाठी को , ताकतवर बना लेते.