ना है मंझधार, ना तूफां, मजा क्या ऐसे जीने से.
जिन्हें साहिल की हसरत हो, उतर जाये सफीने से.
कहाँ कोई गुल चढ़ाता है , ये पत्थर की खदानें हैं
गुलाबों की महक आती है, मेहनत के पसीने से.
कहीं उलझे हुए रिश्ते, कहीं ज़ुल्फों में खम देखे
सुलझ जाती हैं गाँठें सब, जो सुलझायें करीने से.
ये दौलत दरिया जादू का, पियो तो प्यास बढ़ती है
हमारी प्यास बुझती है , पराये अश्क पीने से.
सभी कुछ पा लिया तूने, सुकूनेदिल नहीं पाया
लगा कर देख ले नादां कभी हमको भी सीने से.
(ओ.बी.ओ.तरही मुशायरा में शामिल)
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)
बहुत खूब ...
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
ना है मंझधार, ना तूफां, मजा क्या ऐसे जीने से.
ReplyDeleteजिन्हें साहिल की हसरत हो, उतर जाये सफीने से... बेजोड़ , क्या बात कही है !
सुन्दर सार्थक पोस्ट, आभार.
Deleteकहीं उलझे हुए रिश्ते, कहीं ज़ुल्फों में खम देखे
ReplyDeleteसुलझ जाती हैं गाँठें सब, जो सुलझायें करीने से.
बहुत खूब ....
मुबारक काबुल करें |
शुभकामनाएँ!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति है आपकी
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..
सुलझ जाती हैं गाँठें सब, जो सुलझायें करीने से....
लाजवाब.
वाह!!!!!अरुण जी क्या बात है
ReplyDeleteबहुत अच्छी सुंदर प्रस्तुति,बढ़िया अभिव्यक्ति रचना अच्छी लगी.....
new post--काव्यान्जलि : हमदर्द.....
समर्थक बन गया हूँ आप भी भी फालो करे तो मुझे हार्दिक खुशी होगी,....
कहाँ कोई गुल चढ़ाता है , ये पत्थर की खदानें हैं
ReplyDeleteगुलाबों की महक आती है, मेहनत के पसीने से
सुंदर अभिव्यक्ति
बेहतरीन पोस्ट।
ReplyDeleteसादर
her panktiyan mashha -allah
ReplyDeleteकहाँ कोई गुल चढ़ाता है , ये पत्थर की खदानें हैं
गुलाबों की महक आती है, मेहनत के पसीने से.
bahut -bahut hi behatreen
badhai
poonam
वाह अरुण जी क्या बात है ... बहुत खूब लिखा है आपने ...समय मिले आपको तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://aapki-pasand.blogspot.com/
ReplyDeletehttp://mhare-anubhav.blogspot.com/
ना है मंझधार, ना तूफां, मजा क्या ऐसे जीने से.
ReplyDeleteजिन्हें साहिल की हसरत हो, उतर जाये सफीने से.भावों से नाजुक शब्द......बेजोड़ भावाभियक्ति....
bhaut hi acchi gazal kahi arun ji.... dil ko chu gayi panktiya.....
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति...
ReplyDeleteआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 16-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
ना है मंझधार, ना तूफां, मजा क्या ऐसे जीने से.
ReplyDeleteजिन्हें साहिल की हसरत हो, उतर जाये सफीने से.
हर एक शेर बेजोड है और कोई भी दाद दिए बिना नहीं रह सकता.
आदरणीय पाबला जी और अशोक सलूजा जी का आभार जो नाट स्पैम का रास्ता बताया.
ReplyDeleteकहाँ कोई गुल चढ़ाता है , ये पत्थर की खदानें हैं
ReplyDeleteगुलाबों की महक आती है, मेहनत के पसीने से.
शानदार ग़ज़ल।
श्रम को कथ्य बनाता यह शेर अच्छा लगा।
बहुत ही सार्थक व सटीक लेखन| मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ|
ReplyDeleteMAN GAYE NIGAM SAHAB APKA YE SHER TO LAKH TAKE KA NIKALA ............कहीं उलझे हुए रिश्ते, कहीं ज़ुल्फों में खम देखे
ReplyDeleteसुलझ जाती हैं गाँठें सब, जो सुलझायें करीने से.
BAHUT BAHUT ABHAR KE SATH HI POORI GAZAL KE LIYE HARDI BADHAI .
ज़िन्दगी की उलझनों को रूपायित करती हल समझाती रचना .
ReplyDeleteकहाँ कोई गुल चढ़ाता है , ये पत्थर की खदानें हैं
ReplyDeleteगुलाबों की महक आती है, मेहनत के पसीने से.
वाह बहुत खूबसूरत गज़ल .
बेहतरीन,लाजबाब.
ReplyDeleteआपका लेखन गजब का है.
आभार अरुण जी.