निगोड़े ध्यान से पढ़ते तो चारागर बना लेते
जरा कमजोर रह जाते तो कम्पाउंडर बना लेते.
शरारत खूब करते हैं,ऊधम मस्ती भी करते हैं
ये अच्छा खेलते होते तो तेंदुलकर बना लेते.
ये अपनी बात मनवाने को हाई पिच में चिल्लाते
अगर सुर साधते थोड़ा , इन्हें सिंगर बना लेते.
पसारें पाँव ना ज्यादा, अकल इतनी सी आ जाती
ये अपने बाप की तनख्वाह को चादर बना लेते
शहर की वादियों में रह जरा बिगड़े हैं शहजादे
ये मेहनत गाँव में करते तो अपना घर बना लेते.
(ओ.बी.ओ.तरही मुशायरा में शमिल)
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर , जबलपुर (मध्य प्रदेश)
शहर की वादियों में रह जरा बिगड़े हैं शहजादे
ReplyDeleteये मेहनत गाँव में करते तो अपना घर बना लेते.
...sachchiiiiiiiii
रश्मि प्रभा... has left a new comment on your post "निगोड़े ध्यान से पढ़ते......( हास्य)":
ReplyDeleteशहर की वादियों में रह जरा बिगड़े हैं शहजादे
ये मेहनत गाँव में करते तो अपना घर बना लेते.
...sachchiiiiiiiii
वाह...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..
शहर की वादियों में रह जरा बिगड़े हैं शहजादे
ReplyDeleteये मेहनत गाँव में करते तो अपना घर बना लेते.
sundar bahut sundar
बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति ||
ReplyDeletebahut khoob...!
ReplyDeleteपसारें पाँव ना ज्यादा, अकल इतनी सी आ जाती
ReplyDeleteये अपने बाप की तनख्वाह को चादर बना लेते
शहर की वादियों में रह जरा बिगड़े हैं शहजादे
ये मेहनत गाँव में करते तो अपना घर बना लेते.
एक -एक पंक्तियाँ सच्चाई को कहती हुई ...
और क्या क्या बना लेते भाई ?
ReplyDeleteक्या बात है सर! :)
ReplyDeleteहास्य के साथ गंभीर बातें भी उठाई हैं आपने.
ReplyDeleteबहुत बड़ी बात कह दी आपने मजाक मजाक में । सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteमेरी नई कविता देखें । और ब्लॉग अच्छा लगे तो जरुर फोलो करें ।
मेरी कविता:मुस्कुराहट तेरी
शहर की वादियों में रह जरा बिगड़े हैं शहजादे
ReplyDeleteये मेहनत गाँव में करते तो अपना घर बना लेते...
वाह अरुण जी ... बातों ही बातों में क्या बात कह दी ... मज़ा आ गया इस शेर पे ...
मजाकिया अंदाज में गंभीर बातों का बहुत सुंदर चित्रण,....
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति.
welcome to new post --काव्यान्जलि--यह कदंम का पेड़--
वाह!!! सच को कहती सारगर्भित रचना....
ReplyDelete**** दिगम्बर नासवा has left a new comment on your post "निगोड़े ध्यान से पढ़ते......( हास्य)":
ReplyDeleteशहर की वादियों में रह जरा बिगड़े हैं शहजादे
ये मेहनत गाँव में करते तो अपना घर बना लेते...
वाह अरुण जी ... बातों ही बातों में क्या बात कह दी ... मज़ा आ गया इस शेर पे ...
वाह!! बेहतरीन सच्चे उद्गार!!
ReplyDeletebahut sundar prastuti...!
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा मंच-756:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
वाह! बहुत बढ़िया लगा! सुन्दर प्रस्तुती!
ReplyDeleteहास्य की फुहार से लबरेज़
ReplyDeleteबहुत सुन्दर काव्य ... !
हज़ल... पसंद आई !!
शहर की वादियों में रह जरा बिगड़े हैं शहजादे
ReplyDeleteये मेहनत गाँव में करते तो अपना घर बना लेते.very nice.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति ...सुन्दर..
ReplyDeleteबेहतरीन व्यंग्य सामिजक विद्रूप पर .परिवेश पर .बधाई .आपकी हर रचना खूबसूरत है लगा कई दिनों बाद आया कॉफ़ी कुछ छूत गया .अब क्षति पूर्ती कर रहा हूँ .
ReplyDeleteहास्य के साथ गंभीर चिंतन .. बहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteक्या बात है,अरुण जी.
ReplyDeleteवाह ...वाह... वाह...
निगोड़े ध्यान से पढ़ते तो चारागर बना लेते
ReplyDeleteजरा कमजोर रह जाते तो कम्पाउंडर बना लेते.
शरारत खूब करते हैं,ऊधम मस्ती भी करते हैं
ये अच्छा खेलते होते तो तेंदुलकर बना लेते.
WAH NIGAM SAHAB BILKUL DHAMAKEDAR PRSTUTI HAI ....BADHAI SWEEKAREN