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Monday, November 6, 2023

"सूरत पानीदार रखो जी"

 "सूरत पानीदार रखो जी"

तोहफों की भरमार रखो जी

भाषण लच्छेदार रखो जी


लॉलीपॉप-रेवड़ी जैसे

आकर्षक उपहार रखो जी


जनता चाहे रोये-कलपे

खुश अपना परिवार रखो जी


जोड़-तोड़ में धन फूँको पर

अपनी ही सरकार रखो जी


जय जयकार कराने खातिर

कुछ-बन्दे  तैयार रखो जी


पौने पाँच साल अकड़ो और

तीन माह व्यवहार रखो जी


तिनके काम नहीं आएंगे

हाथों में पतवार रखो जी


कौन कसौटी पर कसता है

वादों का अंबार रखो जी


अरुण रहे कैसी भी सीरत

सूरत पानीदार रखो जी


रचना - अरुण कुमार निगम 

4 comments:

  1. वाह...बेहतरीन समसामयिक गज़ल..लाज़वाब लेखन सर।
    सादर।
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १० नवम्बर २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. बहुत ही सार्थक रचना अरुण जी... बेहतरीन ग़ज़ल...👍👍👍

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  3. बहुत खूब शानदार तंज ।
    दीपोत्सव पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।

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