हमर भाखा ला खा डारिन….
लहू चुहकिन हमर तन के, हमर हाड़ा ला खा डारिन।
हमर जंगल हमर खेती, हमर नदिया ला खा डारिन।
हमीं मन मान के पहुना, उतारेन आरती जिनकर,
उही मन मूड़ मा चघ के, हमर भाषा ला खा डारिन।।
अरुण कुमार निगम
सुंदर सृजन।
Great 👍
सुन्दर रचना
जबरदस्त गुरुवर,,सुनिल शर्मा नील
सुंदर सृजन।
ReplyDeleteGreat 👍
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteजबरदस्त गुरुवर,,सुनिल शर्मा नील
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