गजल -
सत्य जेल में पड़ा हुआ है
झूठ द्वार पर खड़ा हुआ है।।
बाँट रहा वह किसकी दौलत
कहाँ खजाना गड़ा हुआ है।।
उस दामन का दाग दिखे क्या
जिस पर हीरा जड़ा हुआ है।।
अब उससे उम्मीदें कैसी
वह तो चिकना घड़ा हुआ है।।
पाप कमाई, बाप कमाए
बेटा खाकर बड़ा हुआ है।।
लोकतंत्र का पेड़ अभागा
पत्ता पता झड़ा हुआ है।।
सत्ता का फल दिखता सुंदर
पर भीतर से सड़ा हुआ है।।
नर्म मुलायम दिल बेचारा
ठोकर खाकर कड़ा हुआ है।।
उसे राष्ट्रद्रोही बतला दो
"अरुण" अभी तक अड़ा हुआ है।।
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग, छत्तीसगढ़
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (17-07-2018) को "हरेला उत्तराखण्ड का प्रमुख त्यौहार" (चर्चा अंक-3035) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत दिन बाद आपके ब्लॉग पर आया....बहुत अच्छा लगा बेहतरीन पंक्तियाँ....!!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना गुरुजी
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई
वाह गुरुदेव वाह।
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