क्या होगा भगवान !
अधजल गगरी करवाती है, अपना ही सम्मान
भरी गगरिया पूछ रही है, क्या होगा भगवान !!
(1)
काँव काँव का शोर मचाते, दरबारों में काग
बहरे राजा जी का उन पर, उमड़ रहा अनुराग।
अवसर पाकर उल्लू भी अब, छेड़ रहे हैं तान
भरी गगरिया पूछ रही है, क्या होगा भगवान !!
(2)
भूसे को पौष्टिक बतलाकर, बेच रहे हैं ख्वाब
जिसको खाकर नवपीढ़ी की, सेहत हुई खराब।
परम्परागत खानपान का, होता अब अपमान
भरी गगरिया पूछ रही है, क्या होगा भगवान !!
(3)
मातु पिता को त्याग बढ़ रहे, अब एकल परिवार
सुविधाओं के लेनदेन को, समझ रहे हैं प्यार।
आया पाल रही बच्चों को, स्वयं पालते श्वान
भरी गगरिया पूछ रही है, क्या होगा भगवान !!
(4)
लखपति अब दिख रहे कबाड़ी, निर्धन दिखें सुनार
पनप रहे उद्योग लौह के, भूखे रहे लुहार।
गल्ले के व्यापारी खुश हैं, रोते दिखें किसान
भरी गगरिया पूछ रही है, क्या होगा भगवान !!
(5)
राजनीति में साँड़ घुस गए, डाले कौन नकेल
जिलाधीश को डाँट रहे हैं, नेता चौथी फेल।
सच्चों की तो शामत आई, झूठों की है शान
भरी गगरिया पूछ रही है, क्या होगा भगवान !!
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग
छत्तीसगढ़
अधजल गगरी करवाती है, अपना ही सम्मान
भरी गगरिया पूछ रही है, क्या होगा भगवान !!
(1)
काँव काँव का शोर मचाते, दरबारों में काग
बहरे राजा जी का उन पर, उमड़ रहा अनुराग।
अवसर पाकर उल्लू भी अब, छेड़ रहे हैं तान
भरी गगरिया पूछ रही है, क्या होगा भगवान !!
(2)
भूसे को पौष्टिक बतलाकर, बेच रहे हैं ख्वाब
जिसको खाकर नवपीढ़ी की, सेहत हुई खराब।
परम्परागत खानपान का, होता अब अपमान
भरी गगरिया पूछ रही है, क्या होगा भगवान !!
(3)
मातु पिता को त्याग बढ़ रहे, अब एकल परिवार
सुविधाओं के लेनदेन को, समझ रहे हैं प्यार।
आया पाल रही बच्चों को, स्वयं पालते श्वान
भरी गगरिया पूछ रही है, क्या होगा भगवान !!
(4)
लखपति अब दिख रहे कबाड़ी, निर्धन दिखें सुनार
पनप रहे उद्योग लौह के, भूखे रहे लुहार।
गल्ले के व्यापारी खुश हैं, रोते दिखें किसान
भरी गगरिया पूछ रही है, क्या होगा भगवान !!
(5)
राजनीति में साँड़ घुस गए, डाले कौन नकेल
जिलाधीश को डाँट रहे हैं, नेता चौथी फेल।
सच्चों की तो शामत आई, झूठों की है शान
भरी गगरिया पूछ रही है, क्या होगा भगवान !!
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग
छत्तीसगढ़
आभार आदरणीय दिलबाग जी
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत खूब बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteछंद पढ़ने को अब कहां मिलते हैं...बहुत अच्छे छंद लिखे हैं अरुण जी ने
ReplyDeleteबहुत अच्छे, प्रभावशाली छंद !
ReplyDeleteलाजवाब प्रस्तुति !! बहुत खूब आदरणीय ।
ReplyDeleteसमसामयिक मुद्दों को बख़ूबी अभिव्यक्त करती बेहतरीन छंद बद्ध रचना।
ReplyDeleteबधाई एवं शुभकामनाएं।
बहुत बढ़िया सरसी छंद गीत गुरुदेव।
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