भारत बनाम इण्डिया
बाबूजी जब डैड हो गये , माता हो गई माम
पूरब में उस दौर से छाई, एक साँवली शाम
अब गुरुकुल गुरु-शिष्य कहाँ, बस कागज के अनुबंध
सर-मैडम, अंकल-आंटी में, सरसे कहाँ सुगंध
कहाँ कबड्डी, गिल्ली-डंडा, छुआ छुऔवल खेल
कहाँ अखाड़े कंदुक-क्रीड़ा, छुक-छुक करती रेल
खेल फिरंगी अब क्रिकेट का,दिखलाता है शान
समय-शक्ति का नाश कर रहा,फिर भी पाता मान
एबीसीडी सिर चढ बैठी , पश्चिम वाली डॉल
असहाय - सी अआइई , भटक रही बदहाल
गोरे - मैकाले से आहत , संस्कार हैं मौन
भारत को इण्डिया कर गया,खुद से पूछूँ कौन
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
क्या बात अरुण जी ... मज़ा आ गया सुबह सुबह ...
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (17-12-2014) को तालिबान चच्चा करे, क्योंकि उन्हें हलाल ; चर्चा मंच 1829 पर भी होगी।
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बढ़िया लिखा है..बधार्इ
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