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Tuesday, November 18, 2014

गीत : बन्धन



बहुत कठिन है साथी मेरे , बंधन को परिभाषित  करना
बंधन सुख का कहीं सरोवर और कहीं है दु:ख का झरना ...

कोई बंधन रेशम जैसा,
कोमलता बस चुनता जाये
बिन फंदे के अंतर्मन तक ,
मीठे नाते बुनता जाये

कोई  बंधन  नागपाश-सा ,
कसता जाये - डसता जाये
विष बनकर फिर धीमे-धीमे,
नस-अन्तस् में बसता जाये

कोई  बंधन में  सुख पाये , कोई  चाहे  सदा उबरना  
बहुत कठिन है साथी मेरे, बंधन को परिभाषित करना .......

नन्हें तिनकों वाला बंधन ,
नीड़ बुने ममता बरसाये
नन्हें चूजे  रहें सुरक्षित ,
हर पंछी को बहुत सुहाये

लोभ-मोह दिखला कर फाँसे,
बाँगुर का बंधन दुखदाई
जो फँसता माया-बंधन में
कब होती है भला रिहाई

कोई  चाहे  नाव  न छूटे, कोई  चाहे  पार  उतरना
बहुत कठिन है साथी मेरे, बंधन को परिभाषित करना........

मृदा-मूल का बंधन गहरा ,
तरुवर को देता ऊँचाई
पूछ लता से देखे कोई ,
बंधन है कितना सुखदाई

अभिभूत कर देता सबको,
सात जनम का बंधन प्यारा
निर्धारित  करता  सीमायें ,
वरना  जीवन तो  बंजारा

कोई  बँधकर  रहना चाहे , कोई चाहे  मुक्त विचरना
बहुत कठिन है साथी मेरे, बंधन को परिभाषित करना....


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर दुर्ग [छत्तीसगढ़]

3 comments:

  1. बहुत ही प्यारा गीत लिखा है और सकल परिभाषा दी है बंधन की आपने.

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  2. बंधन को आज तो शब्दों में बाँध लिया अरुण जी ...
    बहुत ही प्यारा, लाजवाब और सुन्दर शब्द संयोजन ... बधाई इस गीत की ...

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