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Sunday, October 5, 2014

छंद - दुर्मिल सवैया :कविता




छंद - दुर्मिल सवैया


।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ( सगण यानि सलगा X 8 )


मन की सुनिये मन से लिखिये, बरखा बन मुक्त झरे कविता
जन - मानस के मन में पहुँचे , तुलसी सम रूप धरे कविता
यह मन्त्र बने सुख - यंत्र बने , सब दु:ख समूल हरे कविता 
इतिहास  गवाह  रहा सुनिये ,  युग में बदलाव करे कविता

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग [छत्तीसगढ़]

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (06-10-2014) को "स्वछता अभियान और जन भागीदारी का प्रश्न" (चर्चा मंच:1758) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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