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Tuesday, October 8, 2013

लघु कथा :



“सांत्वना”
अस्पताल से जाँच की रिपोर्ट लेकर घर लौटे द्वारिका दास जी अपनी पुरानी आराम कुर्सी पर निढाल होकर लेट से गये. छत को ताकती हुई सूनी निगाहों में कुछ प्रश्न तैर रहे थे . रिपोर्ट के बारे में बेटे को बताता हूँ तो वह परेशान हो जायेगा.यहाँ आने के लिये उतावला हो जायेगा. पता नहीं  उसे छुट्टियाँ  मिल पायेंगी या नहीं. बेटे के साथ ही बहू भी परेशान हो जायेगी. त्यौहार भी नजदीक ही है.
बेटे को बता ही देता हूँ, कम से कम उसकी सांत्वना तो मुझे अंदर से मजबूत कर देगी. इतनी जल्दी मर थोड़े ही जाऊंगा. मैं ही अभी उसे आने के लिये  मना कर दूंगा. द्वारिका दास जी ने मोबाइल निकाला और बेटे को कॉल लगा ही लिया. हैलो पापा......हाँ बेटा मैं बोल रहा हूँ. कुशल-मंगल तो हो ना ? डॉक्टर साहब के पास से आ रहा हूँ, उन्होंने बताया है कि हार्ट का ऑपरेशन करना पड़ेगा. अभी तुम्हारी माँ को नहीं बताया है, बेचारी परेशान....बेटे ने बीच में ही बात काट कर कहा कितने पैसे भेज दूँ ?
द्वारिका दास जी के हाथ से मोबाइल फिसलकर गोद में आ गिरा.कानों में गूँज रही थी आवाज....कितने पैसे भेज दूँ......उनकी आँखें फिर से छत को ताकने लगीं. सूनी आँखों में  अब भी कुछ प्रश्न तैर रहे थे , मगर इस बार नमी भी साथ में थी.
 
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजयनगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)

4 comments:

  1. आज कल माँ बाप से बढ़ कर पैसे की कीमत ज्यादा है..

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  2. ऐसे ही निसिदिन गुर्राते हैं आर्थिक सम्बन्ध ,,

    सुन पाते नहीं ये कुछ हैं ऐसे (सम्बन्ध )होतें हैं अनुबंध।

    सशक्त लघुकथा तदानुभूति कराती आर्थिक आँखें गुर्राती।

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  3. ऐसे ही निसिदिन गुर्राते हैं आर्थिक सम्बन्ध ,,

    सुन पाते नहीं ये कुछ हैं ऐसे (सम्बन्ध )होतें अनुबंध।

    सशक्त लघुकथा तदानुभूति कराती आर्थिक आँखें गुर्राती।

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