-अरुण कुमार निगम
ओ बसंत ! तुम बतलाओ, कैसे आदर-सत्कार करूँ
प्रियतम मेरे परदेस बसे, मैं किस मन से श्रृंगार करूँ.....?
फिर पवन - बसंती झूमेगी,
हर कलि, भ्रमर को चूमेगी
चुन-चुन मीठे -मीठे गाने
कोयलिया मारेगी ताने
मधुगंध बसाये पोर-पोर
चंदा संग खेलेगा चकोर
तुम उनके देस चले जाना
धर बाँह, यहाँ पर ले आना
मेरे बचपन के साथी !! तुमसे ,इतना ही मनुहार करूँ
प्रियतम मेरे परदेस बसे, मैं किस मन से श्रृंगार करूँ.....?
जिस क्षण प्रियतम मिल जायेंगे
मन के पलाश खिल जायेंगे
सरसों झूमेगी अंग-अंग
चहुँ ओर बजेगी जल-तरंग
लिपि नयन-पटल पर उभरेगी
अंतस की भाषा सँवरेगी
हम आम्र-मंजरी जायेंगे
सेमल से सेज सजायेंगे
तुम आना मत अमराई में,मैं जब प्रियतम से प्यार करूँ
प्रियतम मेरे परदेस बसे, मैं किस मन से श्रृंगार करूँ.....?
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ओ बसंत ! तुम बतलाओ, कैसे आदर-सत्कार करूँ
प्रियतम मेरे परदेस बसे, मैं किस मन से श्रृंगार करूँ.....?
फिर पवन - बसंती झूमेगी,
हर कलि, भ्रमर को चूमेगी
चुन-चुन मीठे -मीठे गाने
कोयलिया मारेगी ताने
मधुगंध बसाये पोर-पोर
चंदा संग खेलेगा चकोर
तुम उनके देस चले जाना
धर बाँह, यहाँ पर ले आना
मेरे बचपन के साथी !! तुमसे ,इतना ही मनुहार करूँ
प्रियतम मेरे परदेस बसे, मैं किस मन से श्रृंगार करूँ.....?
जिस क्षण प्रियतम मिल जायेंगे
मन के पलाश खिल जायेंगे
सरसों झूमेगी अंग-अंग
चहुँ ओर बजेगी जल-तरंग
लिपि नयन-पटल पर उभरेगी
अंतस की भाषा सँवरेगी
हम आम्र-मंजरी जायेंगे
सेमल से सेज सजायेंगे
तुम आना मत अमराई में,मैं जब प्रियतम से प्यार करूँ
प्रियतम मेरे परदेस बसे, मैं किस मन से श्रृंगार करूँ.....?
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क्या कहूँ शब्द नहीं है इतनी अच्छी कविता है |सुन्दर श्रृंगार है मन में एवं आँखों के सामने दृश्य घुमने लगते हैं.दर्शन है कविता में ,विरह है, मिलन है|
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 03-10 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में ...किस मन से श्रृंगार करूँ मैं
शानदार!
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना...!आभार!
ReplyDeleteकल 09/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
utkrisht ...bahut sunder rachna ....badhai .
ReplyDeleteसुन्दर रचना....
ReplyDeleteबधाई!
वाह अरुण भईया... बहुत ही सुन्दर गीत...
ReplyDeleteसादर.
वाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteलिपि नयन-पटल पर उभरेगी
ReplyDeleteअंतस की भाषा सँवरेगी
हम आम्र-मंजरी जायेंगे
सेमल से सेज सजायेंगे.....बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
बहूत हि प्यारी और भावूक रचना है...
ReplyDeleteलाज़वाब भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeletebahut hi sundar rachna :)
ReplyDeleteWelcome to मिश्री की डली ज़िंदगी हो चली
बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति भाई! सुंदर रचना।
ReplyDeleteखूबसूरत प्रस्तुति ।
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