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Tuesday, April 30, 2013

अनकहा पैगाम...


अनकहा पैगाम...

बहुरिया के हाथ कच्चा आम है
सास खुश है, अनकहा पैगाम है |

वो समझता ही नहीं संकेत को
क्या कहूँ वो पूरा झण्डू बाम है |

झुनझुने के शोर से चुप हो गया
आम इंसां का यही तो काम है |

काम धंधे से मिली फुरसत हमें
साँझ पूजा , सुबह प्राणायाम है |

छोड़ आए हम जमाने की फिकर
अब कहीं जाकर मिला आराम है  |

अरुण कुमार निगम
आदित्यनगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)

13 comments:

  1. बहुरिया के हाथ कच्चा आम है
    सास खुश है, अनकहा पैगाम है |

    बहुत बेहतरीन सुंदर गजल ,,,वाह !!! क्या बात है,अरुण जी,बधाई

    RECENT POST: मधुशाला,

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  2. झुनझुने के शोर से चुप हो गया
    आम इंसां का यही तो काम है |

    bahut badhiyan!

    -Abhijit (Reflections)

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  3. जमाने की फिक्र छूट जाये तो सच ही आराम ही आराम है .... खूबसूरत प्रस्तुति

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  4. काम धंधे से मिली फुरसत हमें
    साँझ पूजा , सुबह प्राणायाम है ..

    प्रणाम है इस गज़ल पे ... हर शेर अरुण जी कमाल है ... मस्त है ... जुदा है ...
    बहुत उम्दा है ..

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  5. बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल की प्रस्तुति.

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  6. काम धंधे से मिली फुरसत हमें
    साँझ पूजा , सुबह प्राणायाम है |
    ye meri pasand baki chakachak
    abhar

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  7. काम धंधे से मिली फुरसत हमें
    साँझ पूजा , सुबह प्राणायाम है वाह बहुत बढिया गजल..आभार

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  8. बहुरिया के हाथ कच्चा आम है,
    सास खुश है, अनकहा पैगाम है ।

    लाज़वाब और ख़ूबसूरत बात कही है !

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  9. छोड़ आए हम जमाने की फिकर
    अब कहीं जाकर मिला आराम है |

    बहुत ही बढ़िया

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  10. वाह आदरणीय गुरुदेव श्री वाह मज़ा आ गया सभी के सभी अशआर ह्रदय स्पर्शी लाजवाब धारदार जोरदार हुए हैं वाह इस शानदार ग़ज़ल हेतु दिली दाद के साथ साथ हार्दिक बधाई भी स्वीकारें. जय हो .

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  11. sundar rachna ...........aaram nahi milne vaala hai aapko kyonki agli rachna ka hame intjar hai

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  12. छोड़ आए हम जमाने की फिकर
    अब कहीं जाकर मिला आराम है |
    b ahut accha ..ye bhi jaruri hai ..

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