(चित्र ओबीओ/गूगल से साभार)
ओपन बुक्स ऑनलाइन ,चित्र से
काव्य तक छंदोत्सव,
अंक-२५ में मेरी रचना
(वीर छंद या आल्हा सजता, अतिशयोक्ति से बड़ा नफीस
मात्राओं की गणना इसमें , सोलह-पन्द्रह कुल इकतीस ॥
अन्त
में गुरु,लघु )
महूँ पूत हौं भारत माँ के, अंग - अंग मा भरे उछाँह
छाती का नापत हौ साहिब , मोर कहाँ तुम पाहू थाह ॥
देख गवइहाँ झन हीनव तुम, अन्तस मा बइठे महकाल
एक नजर देखवँ तो तुरते,
जर जाथय बइरी के खाल ॥
सागर - ला छिन - मा पी जाथवँ,
छर्री-दर्री करवँ पहार
पट-पट ले दुस्मन मर जाथयँ,मन-माँ लाववँ कहूँ बिचार ॥
भगत सिंग के बाना दे दौ , अंग - भुजा फरकत हे मोर
डब-डब डबकय लहू लालबम, अँगरा हे आँखी के कोर ॥
मयँ हलधरिया सोन उगाथवँ, बखत परे धरिहौं बन्दूक ॥
उड़त चिरैया मार गिराथवँ , मोर निसाना बड़े अचूक ॥
बजुर बरोबर हाड़ा - गोड़ा , बीर दधीची के अवतार
मयँ अर्जुन के राजा बेटा , धनुस -बान हे मोर सिंगार ॥
चितवा कस चुस्ती जाँगर- मा, बघुआ कस मोरो हुंकार
गरुड़ सहीं मयँ गजब जुझारू, नाग बरोबर हे फुफकार ॥
अड़हा अलकरहा दिखथवँ मयँ, हाँसव झन तुम दाँत निपोर
भारत-माता के पूतन ला , झन समझव साहि ब कमजोर ॥
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शब्दार्थ : महूँ = मैं भी, उछाँह
= उत्साह, मोर = मेरा, पाहू = पाओगे,
हीनव = उपेक्षित करना, जर जाथय = जल जाती है, अँगरा
= अंगार, छर्री-दर्री करवँ पहार = पर्वत को चूर
चूर करता हूँ, बजुर = वज्र, चितवा
= चीता, जाँगर = देहयष्टि, मोरो =
मेरी भी, अड़हा = गँवार, अलकरहा
= विचित्र -सा, दाँत निपोर = दाँत दिखा कर हँसना, झन = मत
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महूँ पूत हौं भारत माँ के, अंग - अंग मा भरे उछाँह
ReplyDeleteछाती का नापत हौ साहिब , मोर कहाँ तुम पाहू थाह ॥
bahut khoob exceelent
हवा में रहेगी मेरे ख्याल की बिजली..,
ReplyDeleteयह मुश्ते खाक है फानी रहे न रहे.....
----- ।। भगत सिंह ।। -----
सुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरणीय
भगत सिंग के बाना दे दौ , अंग - भुजा फरकत हे मोर
ReplyDeleteडब-डब डबकय लहू लालबम, अँगरा हे आँखी के कोर ॥
वाह ,,वाह !!! अरुण जी आप तो हर विधा के छंद लिखने में माहिर है ,,,बहुत खूब बधाई ,,,
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आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल २३ /४/१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अरुण जी ...पर समझने में थोड़ी दिमागी कसरत करनी पड़ी..
ReplyDeleteसमझने में ज़रा कष्ट हुआ मगर बढ़िया लगा...
ReplyDeleteसादर
अनु
बहुत बढ़िय....
ReplyDelete*बढ़िया
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अरूण भाई! जितनी बार पढ़ा रस की मात्रा उतनी ही बढ़ती गयी। बहुत बधाई।
ReplyDeleteवाह !!! क्या बात है,बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,
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