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Wednesday, May 1, 2013

मजदूर दिवस – 1 मई पर...............



नहीं खुद को बसा पाये, सभी का घर बनाते हैं |
 
(चित्र गूगल से साभार)

कुदाली - फावड़ा लेकर , सृजन के गीत गाते हैं
नहीं है पास कुछ अपने  , मगर हम मुस्कुराते हैं |
जहाँ टपका है श्रम-सीकर,वहाँ जीवित हुये पत्थर
नहीं खुद को बसा पाये  , सभी का घर बनाते हैं |
नहीं है पास कुछ अपने  , मगर हम मुस्कुराते हैं ||

ये खानें औ खदानें हैं, ये कल औ कारखाने हैं
हमारे  दम से  चलते हैं   ,  इन्हें हम ही चलाते हैं |
सड़क  हमने  सजाई  है  ,  नहर  हमने बनाई है
नदी पर बाँध - पुल देखो,सभी के काम आते हैं |
नहीं है पास कुछ अपने , मगर हम मुस्कुराते हैं ||

जमाना  पेट भरता  है  ,  हमें  कब याद करता है
भुलाकर भूख को अपनी,फसल हम ही उगाते हैं |
सभी के घर यहाँ रोशन, ये दुनियाँ जगमगाती है
अंधेरा  पी  लिया  हमने  , उजाले  हम  ही लाते हैं |
नहीं है पास कुछ अपने  , मगर हम मुस्कुराते हैं ||

बिछाई  रेल की पटरी ,  किये टॉवर खड़े लाखों
मिटा कर दूरियाँ सबको , घड़ी भर में मिलाते हैं |
वो  सरकारी भवन देखो , या देखो ये दवाखाने
शहर घर गाँव बस्ती को , बड़े श्रम से सजाते हैं |
नहीं है पास कुछ अपने , मगर हम मुस्कुराते हैं ||

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजय नगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)

12 comments:

  1. बहुत सटीक बात कही आपने आदरणीय और बहुत ही सुन्दर ढंग से। मजदूरों के श्रम को आज के दिन इससे बेहतर नमन नहीं हो सकता।
    सादर!

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  2. सच है , खुद बदहाल हैं और औरों का जीवन सरल बनाते हैं

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  3. आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के (१ मई, २०१३, बुधवार) ब्लॉग बुलेटिन - मज़दूर दिवस जिंदाबाद पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |

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  4. वाह आदरणीय गुरुदेव श्री वाह मजबूर दिवस पर मनभावन प्रस्तुति, पंक्ति पंक्ति हृदय स्पर्शी सुन्दर सत्य एवं सटीक. इस लाजवाब प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकारें.

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  5. लाजबाब हृदय स्पर्शी सटीक. पंक्तियाँ, इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई . अरुण जी,,,,,

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  6. सुंदर गीत
    गजब का अहसास
    मजदूरों के जीवन को सच्ची तौर पर बयां करती रचना
    मजदूर दिवस पर सार्थक
    उत्कृष्ट प्रस्तुति


    विचार कीं अपेक्षा
    आग्रह है मेरे ब्लॉग का अनुशरण करें
    jyoti-khare.blogspot.in
    कहाँ खड़ा है आज का मजदूर------?

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  7. बिना मजदूर के विकास और सुविधा भोगने के आदि हो चुके लोगों के लिए जीना संभव नहीं ..
    मजदूर दिवस पर बहुत बढ़िया प्रभावशाली चिंतन से भरी कविता ....आभार

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  8. और वैसी मुस्कराहट हमारे होठों पर कभी नहीं आते हैं और उनके आगे नतमस्तक हो जाते हैं..

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  9. मजदूरों का बहुत मार्मिक और सटीक चित्रण किया है..

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  10. आपकी यह सुन्दर प्रस्तुति ''निर्झर टाइम्स'' पर लिंक की गई है।
    http//:nirjhat-times.blogspot.com पर आपका स्वागत है।कृपया अवलोकन करें और सुझाव दें।
    सादर

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  11. मजदूर की ज़िंदगी को सटीक शब्द दिये हैं ।

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